जानिए, क्या है महिलाओं के अधिकार, किस तरह लें कानून की मदद
कानून व सुप्रीम कोर्ट के बनाए नियमों की जानकारी न होने के कारण परेशान होती है आधी आबादी।
By AbhishekEdited By: Published: Fri, 11 Jan 2019 12:57 PM (IST)Updated: Sat, 12 Jan 2019 11:48 AM (IST)
कानपुर [जागरण स्पेशल]। महिलाओं के प्रति अपराध दिन पर दिन बढ़ते जा रहे हैं। अपराध का दर्द बर्दाश्त कर रहीं महिलाओं को इंसाफ के लिए दर-दर भटकना पड़ता है। सर्वप्रथम स्वयं के साथ हुए अपराध का दंश झेलना और फिर पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने से लेकर कोर्ट में गवाही देने तक की परिस्थितियां उन्हें सालती रहती हैं और भीतर से कमजोर कर देती हैं। इसकी वजह भी है। दरअसल महिलाएं आइपीसी (भारतीय दंड संहिता), सीआरपीसी (दंड प्रक्रिया संहिता), भारतीय साक्ष्य अधिनियम के प्रावधानों और सुप्रीम कोर्ट के उन निर्णयों से अनभिज्ञ हैं जिन्हे उनकी सुरक्षा के लिए बनाया गया है। ऐसे ही कुछ प्रावधानों की जानकारी आज हम भी दे रहे हैं।
सूर्यास्त के बाद गिरफ्तारी नहीं
-सीआरपीसी की धारा 46 (4) में प्रावधान है कि पुलिस किसी भी महिला की सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले गिरफ्तारी नहीं करेगी। सीआरपीसी की धारा 46 (1) का परंतुक कहता है कि महिला को गिरफ्तार करने के समय शरीर को छुआ नहीं जाएगा। गिरफ्तारी के समय महिला पुलिस होना अनिवार्य है। महिला पुलिस के बिना गिरफ्तारी नहीं होगी।
-सीआरपीसी की धारा 154 में प्रावधान है कि सूचना मात्र पर ही पुलिस अधिकारी संज्ञेय अपराध की रिपोर्ट दर्ज करेगा। फिर भले ही घटना का कोई वादी हो अथवा नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने ललिता कुमारी बनाम उप्र राज्य के मामले में भी सूचना मात्र पर ही रिपोर्ट दर्ज करने के आदेश दिए हैं।
-सीआरपीसी की धारा 160 में प्रावधान है कि पुलिस को पीडि़त महिला के बयान लेने घर जाना होगा। वह थाने पर पीडि़त महिलाओं को नहीं बुला सकते।
-सीआरपीसी की धारा 164 (ए) में पीडि़त महिलाओं को मेडिकल का अधिकार दिया गया है। मेडिकल करने से पूर्व डाक्टर को पीडि़ता की सहमति लेना आवश्यक है। इसके साथ ही घटना के 24 घंटे के भीतर मेडिकल कराया जाना जरुरी है।
-आइपीसी 166 (ए) कहती है कि यदि पुलिस रिपोर्ट दर्ज नहीं करती तो उन्हें आरोप साबित होने पर दो वर्ष तक कैद और जुर्माना या दोनों हो सकता है।
-आइपीसी 166 (बी) में प्रावधान है यदि महिला अपराध पीडि़ता है तो सरकारी अथवा गैर सरकारी चिकित्सालय या डाक्टर इलाज से इस बात पर इंकार नहीं कर सकते कि महिला के पास इलाज के लिए पैसे नहीं हैं।
-आइपीसी की धारा 228 (ए) में है कि अपराध पीडि़ता की पहचान गुप्त रखी जाएगी। पहचान उजागर करने वाले को दो वर्ष कैद और जुर्माना अथवा दोनों हो सकता है।
-भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 146 में स्पष्ट है कि दुष्कर्म की धारा 367 और उपधाराएं ए, बी, सी, डी और ई के तहत महिलाओं से अनैतिक चरित्र और पूर्व लैंगिक अनुभवों की पूछताछ नहीं की जाए।
जीरो एफआइआर
वर्मा कमेटी की रिपोर्ट पर केंद्र सरकार ने जीरो एफआइआर का प्रावधान किया था। इसके तहत घटना की रिपोर्ट किसी भी थाने में बिना क्राइम नंबर के दर्ज हो सकेगी। बाद में रिपोर्ट संबंधित थाने को विवेचना के लिए भेज दी जाएगी।
(वरिष्ठ अधिवक्ता कौशल किशोर शर्मा, अधिवक्ता अजय सिंह भदौरिया और अधिवक्ता शरद त्रिपाठी से प्राप्त जानकारी के आधार पर)
सूर्यास्त के बाद गिरफ्तारी नहीं
-सीआरपीसी की धारा 46 (4) में प्रावधान है कि पुलिस किसी भी महिला की सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले गिरफ्तारी नहीं करेगी। सीआरपीसी की धारा 46 (1) का परंतुक कहता है कि महिला को गिरफ्तार करने के समय शरीर को छुआ नहीं जाएगा। गिरफ्तारी के समय महिला पुलिस होना अनिवार्य है। महिला पुलिस के बिना गिरफ्तारी नहीं होगी।
-सीआरपीसी की धारा 154 में प्रावधान है कि सूचना मात्र पर ही पुलिस अधिकारी संज्ञेय अपराध की रिपोर्ट दर्ज करेगा। फिर भले ही घटना का कोई वादी हो अथवा नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने ललिता कुमारी बनाम उप्र राज्य के मामले में भी सूचना मात्र पर ही रिपोर्ट दर्ज करने के आदेश दिए हैं।
-सीआरपीसी की धारा 160 में प्रावधान है कि पुलिस को पीडि़त महिला के बयान लेने घर जाना होगा। वह थाने पर पीडि़त महिलाओं को नहीं बुला सकते।
-सीआरपीसी की धारा 164 (ए) में पीडि़त महिलाओं को मेडिकल का अधिकार दिया गया है। मेडिकल करने से पूर्व डाक्टर को पीडि़ता की सहमति लेना आवश्यक है। इसके साथ ही घटना के 24 घंटे के भीतर मेडिकल कराया जाना जरुरी है।
-आइपीसी 166 (ए) कहती है कि यदि पुलिस रिपोर्ट दर्ज नहीं करती तो उन्हें आरोप साबित होने पर दो वर्ष तक कैद और जुर्माना या दोनों हो सकता है।
-आइपीसी 166 (बी) में प्रावधान है यदि महिला अपराध पीडि़ता है तो सरकारी अथवा गैर सरकारी चिकित्सालय या डाक्टर इलाज से इस बात पर इंकार नहीं कर सकते कि महिला के पास इलाज के लिए पैसे नहीं हैं।
-आइपीसी की धारा 228 (ए) में है कि अपराध पीडि़ता की पहचान गुप्त रखी जाएगी। पहचान उजागर करने वाले को दो वर्ष कैद और जुर्माना अथवा दोनों हो सकता है।
-भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 146 में स्पष्ट है कि दुष्कर्म की धारा 367 और उपधाराएं ए, बी, सी, डी और ई के तहत महिलाओं से अनैतिक चरित्र और पूर्व लैंगिक अनुभवों की पूछताछ नहीं की जाए।
जीरो एफआइआर
वर्मा कमेटी की रिपोर्ट पर केंद्र सरकार ने जीरो एफआइआर का प्रावधान किया था। इसके तहत घटना की रिपोर्ट किसी भी थाने में बिना क्राइम नंबर के दर्ज हो सकेगी। बाद में रिपोर्ट संबंधित थाने को विवेचना के लिए भेज दी जाएगी।
(वरिष्ठ अधिवक्ता कौशल किशोर शर्मा, अधिवक्ता अजय सिंह भदौरिया और अधिवक्ता शरद त्रिपाठी से प्राप्त जानकारी के आधार पर)
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