कानपुर : रामजानकी मंदिर का ट्रस्टी बन बैठा मौला बख्श, 18 दुकानों पर काबिज थे हिंदू दुकानदार और अब बाबा बिरियानी का कब्जा
कानपुर में बेकनगंज में रामजानकी मंदिर परिसर में बाबा बिरियानी रेस्टोरेंट बन गया। शत्रु संपत्ति को लेकर एसडीएम की जांच में पुष्टि हुई थी। 1927-53 तक भगवानदीन के पास ट्रस्ट की जिम्मेदारी थी और फिर 1948-53 के बीच मौला बख्श का नाम ट्रस्टी में दर्ज रहा।
कानपुर, जागरण संवाददाता। बेकनगंज के डा. बेरी चौराहा पर स्थित रामजानकी मंदिर के पीछे का इतिहास अब खुलकर सामने आने लगा है। मंदिर ट्रस्ट की जिम्मेदारी संभालने वाले और यहां की 18 दुकानों के हिंदू किरायेदारों को कब बाहर किया गया, इससे पर्दा नगर निगम के पंचशाला रिकार्ड ने उठा दिया। पूरे खेल का मास्टरमाइंड जरूर मुख्तार का पिता हाजी इशहाक बाबा था लेकिन तत्कालीन प्रशासन और नगर निगम के कर्मचारी भी कहीं न कहीं इसमें शामिल रहे। क्योंकि मंदिर ट्रस्ट की जिम्मेदारी संभाल रहे हिंदू ट्रस्टी का नाम हटाकर अचानक पाक नागरिक का नाम बिना किसी कारण दर्ज होना जिम्मेदारों की भूमिका को कठघरे में खड़ा करता है।
मंदिर ट्रस्ट की 18 दुकानों में काबिज थे हिंदू दुकानदार : रामजानकी मंदिर ट्रस्ट का संचालन ठाकुर द्वारा मैनेजर भगवानदीन हलवाई के हाथ में था। पंचशाला रजिस्टर में वर्ष 1927 से 53 तक भगवानदीन द्वारा ही ट्रस्ट संचालन का जिक्र है। मंदिर ट्रस्ट में 18 दुकानें थीं जो आगे की ओर थीं जबकि अंदरूनी हिस्से में मंदिर था। इन सभी दुकानों पर हिंदू लोग ही काबिज थे। दुकानों में कपड़ा, रेडीमेड, ज्वैलरी, लांड्री, मंदिर की पूजा अर्चना और प्रसाद आदि की दुकाने थी। नगर निगम के वर्ष 1927 के पंचशाला रजिस्टर में इन सभी दुकानदारों के नाम दर्ज हैं जो वर्ष 1938 तक दर्ज रहे। इनके नाम क्रमश: मन्ना, नाथू, रामभरोसे, गज्जू, नत्था, सतनारायन, बंशीधर, महादेव, बसेसर, मिश्रा, छेदा, विश्वनाथ, अजोध्या, केशव, सुखलेन, धर्मा और मखत थे।
1948-53 के बीच चढ़ा मौला बख्श का नाम : नगर निगम के पंचशाला रजिस्टर की सत्यापित प्रतियों का परीक्षण करने पर पता चला कि वर्ष 1948-53 के बीच अचानक पुराने संचालक के कालम में भगवानदीन का नाम दर्ज रहा लेकिन नए संचालक के रूप में मौला बख्श का नाम भी दर्ज हो गया। दस्तावेजों में मौला बख्श का नाम दर्ज करने का कोई कारण नगर निगम के अधिकारियों ने इंद्राज नहीं किया है।
1953-58 के बीच भगवानदीन का नाम पूरी तरह हटा दिया गया। इसके बाद मौला बख्श के बेटे नाबालिग आबिद रहमान का नाम वर्ष 1968 की पंचशाला में दर्ज हो गया जो 1978 तक दर्ज रहा। इसके बाद मुख्तार के पिता हाजी मो. इशहाक बाबा की पत्नी हाजरा खातून का नाम 1978 में दर्ज हुआ। अब तक सभी हिंदू किरायेदार भाग चुके थे जबकि मुस्लिम किरायेदारों की संख्या भी छह से सात ही बची थी। इन मुस्लिम किरायेदारों को डरा धमकाकर भगा दिया गया।
तो इसलिए शत्रु संपत्ति हो गया रामजानकी मंदिर : मौला बख्श के बेटे आबिद रहमान का नाम पंचशाला रजिस्टर में दर्ज होने से यह संपत्ति शत्रु संपत्ति मानी जा रही है। दरअसल आबिद का नाम नाबालिग रहते दर्ज हुआ था। बालिग होने पर वह पाकिस्तान चला गया। इसी आधार पर रामजानकी मंदिर को शत्रु संपत्ति माना जा रहा है।