आईआईटी की ये तकनीक दुर्घटना से पहले कराएगी हेलीकॉप्टर की सुरक्षित लैंडिंग Kanpur News
आईआईटी में दो साल शोध के बाद मानवरहित हेलीकॉप्टर में परीक्षण सफल हुआ है।
कानपुर, [विक्सन सिक्रोडिय़ा]। आईआईटी ने अब एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे हेलीकॉप्टर हादसों पर अंकुश लगाया जा सकेगा। अब दुर्घटना के खतरे को पहले ही भांपते हुए हेलीकॉप्टर की सुरक्षित लैंडिंग कराई जा सकेगी।
भले ही यह दुर्घटना टेल रोटर, इंजन या ट्रांसमिशन में से किसी के फेल होने पर ही क्यों न होने वाली हो? आइआइटी कानपुर के एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग ने ऑटो पायलट कंट्रोलर विकसित किया है, जो दुर्घटना से पहले हेलीकॉप्टर को जमीन पर उतारने की प्रक्रिया प्रारंभ कर देगा। दो साल के शोध के बाद 15 किलो के मानवरहित हेलीकॉप्टर में इसका सफल परीक्षण किया जा चुका है।
इस तरह का ऑटो पायलट कंट्रोलर
ऑटो पायलट कंट्रोलर में ऑनबोर्ड कंप्यूटर, इनर्शियल मेजरमेंट यूनिट व लीडार सेंसर लगाए गए हैं। एयरोस्पेस इंजीनियङ्क्षरग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर अभिषेक के निर्देशन में पूर्व पीएचडी छात्र सागर सेतु ने यह तकनीक विकसित की। आइआइटी की एयर स्ट्रिप पर सफल परीक्षण होने के बाद अब इस तकनीक का इस्तेमाल हेलीकॉप्टर में किए जाने की तैयारी है।
पायलट की तरह निर्णय लेता है ऑनबोर्ड कंप्यूटर
ऑटो पायलट कंट्रोलर में लगी इनर्शियल मेजरमेंट यूनिट हेलीकॉप्टर की अवस्था बताने के साथ खतरे को भी भांपती है। लेजर टेक्नोलॉजी पर काम करने वाला लीडार सेंसर जमीन से हेलीकॉप्टर की ऊंचाई बताता है। दुर्घटना का अंदेशा होने पर ऑनबोर्ड कंप्यूटर एक पायलट की तरह काम करने लगता है और हेलीकॉप्टर की ऑटो रोटेशन प्रक्रिया प्रारंभ कर देता है। इसके बाद पायलट का काम केवल लैंडिंग के लिए सुरक्षित जमीन तलाशना रह जाता है।
निर्णय लेने के लिए दो सेकेंड का समय
हेलीकॉप्टर को नियंत्रित करने के लिए पायलट को दो सेकेंड का समय मिलता है। इतने समय में नियंत्रण न कर पाने पर उसके दुर्घटनाग्रस्त होने की आशंका बढ़ जाती है। डॉ. अभिषेक ने बताया कि नियंत्रण खो देने पर हेलीकॉप्टर का ऑटो रोटेशन शुरू किया जाता है। इसमें पायलट पंखे अथवा ब्लेड के पिच एंगल बदलकर उसे निगेटिव एंगल पर ले जाता है।
इससे उसके पंखे अथवा ब्लेड पवनचक्की की तरह काम करने लगते हैं। इस प्रक्रिया में इंजन व पॉवर के बिना रोटर चलते रहते हैं और वह हवा को ऊपर की ओर फेंकते हैं। जिससे हेलीकॉप्टर नीचे की ओर आने लगता है। जमीन के करीब आने पर उसे दोबारा पॉजिटिव एंगल में ले जाया जाता है जिससे उसकी गति धीमी हो जाती है और वह नीचे उतर जाता है। अब यह सभी प्रक्रिया ऑटो पायलट कंट्रोलर करेगा।