Atal Bihari Vajpayee Birthday: ठंडाई पीने के बाद अटल जी बोले और है.., जब कन्नौज आए थे पूर्व प्रधानमंत्री
यह बात वर्ष 1983-84 की होगी जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी थे और कन्नौज के मकरन्द नगर में संघ कार्यकर्ता सराफ के घर जलपान कार्यक्रम में पहुंचे थे और युवा कार्यकर्ता से ठंडाई मांगी थी।
कन्नौज, [जागरण स्पेशल]। भारत रत्न भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ईमानदारी, शालीनता, सादगी और सौम्यता हर किसी का दिल जीत लेती थी। उनकी इसी सादगी और शालीनता ने इत्र नगरी का भी दिल जीत लिया था। उनकी सरलता और सुलभता का हर कोई कायल था। उन्हें जो चाहिए होता था, उसके लिए वो तनिक भी संकोच नहीं करते थे। ऐसा ही एक किस्सा इत्र नगरी से जुड़ा हुआ है।
भाजपा नेता के दिल को छू गए थे वो पल
बात सन 1983 की रही होगी। जब अटल जी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे। वो कन्नौज के मकरन्द नगर निवासी संघ कार्यकर्ता अमर सिंह सराफ के घर आये थे। यहां जलपान का कार्यक्रम था। भाजपा और व्यापारी नेता अनिल कुमार गुप्ता बताते हैं अटल जी के तो दर्जनों किस्से हैं। एक किस्सा उनके दिल को छू गया। किस्सा याद कर बताते हैं कि वो भाजपा के कार्यकर्ता हुआ करते थे। उनकी उम्र 24-25 साल रही होगी। अटल जी जब आए तो अमर सिंह ने उनसे नाश्ता लाने के लिए कहा। वो कमरे से घर के अंदर गए और एक प्लेट में नाश्ता सजा लाए। प्लेट में सीताराम की मिठाई के साथ-साथ मुरादाबादी एक गिलास ठंडाई का भी भरा हुआ रखा हुआ था।
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एक तो मुरादाबादी गिलास, ऊपर से दो बार पी ली.. अब नहीं
इस पर अटल जी ने ठंडाई का गिलास उठाया और ठंडाई पी गए। इसके बाद काफी देर तक खाली गिलास हाथ में पकड़े रहे। अटल जी ने देखा कि गिलास को लेकर किसी ने कुछ नहीं पूछा तो उन्होंने धीरे से मेरी तरफ इशारा किया। मैं झुका तो वो गिलास को ऊपर उठाते हुए बोले ...और है क्या? इस पर उन्होंने उनसे गिलास लिया और ठंडाई भरकर फिर उन्हें दी। अनिल बताते हैं कि जब अटल जी ने दूसरा गिलास भी खत्म कर लिया तो हमने पूछा कि और ले आएं। इस पर वो मुस्कुराते हुए बोले..नहीं, नहीं...एक तो मुरादाबादी गिलास, ऊपर से दो गिलास पी गया, अब नहीं। अनिल बताते हैं कि अमरनाथ को अटल जी के बारे में सब पता था कि वो क्या खाते हैं क्या पीते हैं, इसीलिए उन्होंने पहले से ही ठंडाई की व्यवस्था घर में रखी थी।
गुलाब व केवड़ा का इत्र था पसंद
अटल जी को गुलाब और केवड़ा से बना इत्र बेहद पसंद था। जब भी वो कन्नौज से जाते तो ये दोनों इत्र उन्हें विदाई स्वरूप दिए जाते थे। जिन्हें वो रुई के फाहे से अपने कपड़ों में लगा लिया करते थे।