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घुटने के दर्द की समस्या से जूझ रहे हैं तो यह खबर आपको दे सकती है राहत Kanpur News

अब घुटना प्रत्योरापण के बिना भी आर्थराइटिस के मरीज दौड़ सकेंगे।

By Edited By: Published: Sun, 13 Oct 2019 02:01 AM (IST)Updated: Sun, 13 Oct 2019 10:04 AM (IST)
घुटने के दर्द की समस्या से जूझ रहे हैं तो यह खबर आपको दे सकती है राहत Kanpur News
घुटने के दर्द की समस्या से जूझ रहे हैं तो यह खबर आपको दे सकती है राहत Kanpur News

कानपुर, [ऋषि दीक्षित]। घुटने की समस्या से जूझ रहे बुजुर्गो के लिए राहत भरी खबर है। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) के संयुक्त शोध को सफलता मिली तो घुटना प्रत्योरापण के बिना आर्थराइटिस के मरीज दौड़ सकेंगे। फिलहाल जानवरों पर इसका प्रयोग सफल हो चुका है, उम्मीद है कि जल्द ही आम लोगों को भी इस तकनीक से राहत मिलेगी।

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उम्र बढऩे पर घुटने के दर्द की समस्या आम

जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के आर्थोपेडिक विभाग की ओपीडी में आर्थराइटिस के मरीज बड़ी संख्या में आते हैं। दरअसल उम्र बढऩे के साथ घुटने के कार्टिलेज खराब या क्षतिग्रस्त होने की समस्या आम है। इस वजह से मरीज को भीषण दर्द होता है और वह चलने-फिरने में असमर्थ हो जाता है। उनकी इस समस्या को देखते हुए आर्थोपेडिक विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रगनेश कुमार ने आइआइटी के बायोटेक्नोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. डीएस कट्टी से कार्टिलेज की कोशिकाएं (सेल) क्षतिग्रस्त होने से बचाने के प्रोजेक्ट पर चर्चा की। उनकी सहमति के बाद मेडिकल कॉलेज के एथिकल कमेटी से रिसर्च के लिए अनुमति हासिल की गई।

जानवरों पर हो रहा प्रयोग

पिछले चार माह से दोनों संस्थानों के विशेषज्ञ इस पर रिसर्च कर रहे हैं। फिलहाल इसकी शुरुआत जानवरों पर की गई है। उनके कार्टिलेज के नमूने लेकर लैब में टिश्यू कल्चर से विकसित करने के बाद मॉलीक्यूल (दवाओं के रसायन) के प्रयोग का प्रभाव देखा। इस प्रयोग से क्षतिग्रस्त कार्टिलेज की सेल्स (कोशिकाएं) दोबारा से स्वस्थ हो गई। टिश्यू कल्चर से विकसित कर रहे कार्टिलेज आर्थराइटिस पीडि़तों के घुटने प्रत्यारोपण के बाद उनके घुटने के कार्टिलेज का ऊपरी हिस्सा काटकर हटाया जाता है। इसमें खराब एवं अच्छी दोनों कार्टिलेज होती है। उनके नमूने लेकर आइआइटी के बायोटेक्नोलॉजी विभाग की लैब में टिश्यू कल्चर से कार्टिलेज उगाए जा रहे हैं। इसके बाद उन पर मॉलीक्यूल का असर देखा जाएगा।

टिश्यू कल्चर हो रहे विकसित

जीएसवीएम आर्थोपेडिक विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रगनेश कुमार कहते हैं कि अब तक 4 कार्टिलेज के नमूने लिए जा चुके हैं। लैब में टिश्यू कल्चर से उन्हें विकसित किया जा रहा है। इस रिसर्च प्रोजेक्ट में 15 नमूने लिए जाने हैं। सात नमूने का टिश्यू कल्चर पूरा होते ही दवाओं का असर देखा जाएगा। यह जानने का प्रयास होगा कि कौन सा मॉलीक्यूल कार्टिलेज कोशिकाओं को सुरक्षित रखता है। इसका प्रयोग सफल होने पर इस तकनीक का इस्तेमाल मरीजों पर किया जा सकेगा।


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