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जिन पौधों से आदिवासी करते पेट का उपचार, उससे बनेगी अल्सर की दवा

सफेद चूहों पर किए जा रहे परीक्षण में सकारात्मक परिणाम आए सामने अरुणाचल प्रदेश व असम से लाए गए पौधों पर सीएसजेएमयू में हो रहा शोध

By Edited By: Published: Fri, 15 Mar 2019 09:40 AM (IST)Updated: Sat, 16 Mar 2019 12:33 PM (IST)
जिन पौधों से आदिवासी करते पेट का उपचार, उससे बनेगी अल्सर की दवा
जिन पौधों से आदिवासी करते पेट का उपचार, उससे बनेगी अल्सर की दवा
विक्सन सिक्रोड़िया, कानपुर। अरुणाचल प्रदेश और असम की वादियों को प्रकृति ने न केवल हरित श्रृंगार से संवार खूबसूरती दी है बल्कि यहां ऐसे औषधीय पौधों की भी सौगात दी है जो कई मर्ज में कारगर हैं। इन गुणकारी पौधों पर अब वैज्ञानिक शोध जारी है और इनसे दवाएं बनाने पर काम चल रहा है।
छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय (सीएसजेएमयू) के फार्मेसी विभाग में पूर्वोत्तर के कुछ ऐसे पौधों पर शोध किया जा रहा है जो अल्सर का उपचार करने में सहायक हैं। शोध के सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं। आने वाले समय में पौधों से बनीं दवाएं सामने होंगी। फार्मेसी प्रयोगशाला के बाद इन पौधों के अर्क का परीक्षण सफेद चूहों पर किया जा रहा है। अरुणाचल प्रदेश व असम के जंगलों से चुनकर विश्लेषण के लिए ऐसे 25 से 30 पौधों पर विभागाध्यक्ष डॉ. अजय कुमार गुप्ता व प्रिंसिपल इंवेस्टिगेटर डॉ. प्रकाश चंद्र गुप्ता शोध कर रहे हैं। उनके साथ इस टीम में रिसर्च एसोसिएट प्रशांत पांडेय व प्रशांत सिंह शामिल हैं।
इन पौधों से आदिवासी करते पेट का इलाज पूर्वोत्तर में रहने वाले जनजातीय व आदिवासी वहां पर होने वाले औषधीय पौधों का इस्तेमाल अल्सर व पेट दर्द के इलाज के लिए करते हैं। वहां के आदिवासी सिंथेटिक मेडिसिन के बारे में नहीं जानते हैं। डॉ. अजय कुमार गुप्ता ने बताया कि केंद्र सरकार से पूर्वोत्तर को जैविक खेती का दर्जा भी मिला है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट भी बताती है कि 70 से 80 फीसद आबादी भारतीय पारंपरिक औषधीय विज्ञान पर निर्भर है।
हाईटेक मशीनें बता रहीं पौधों के गुण
सीएसजेएमयू व एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट टेरी गुवाहाटी मिलकर इन पौधों से हर्बल दवाइयां बनाने के प्रोजेक्ट में काम कर रहे हैं। सीएसजेएमयू के फार्मेसी विभाग में हाई परफार्मेस थिन लेयर क्रोमेटोग्राफी व हाई परफार्मेस लिक्विड क्रोमेटोग्राफी इन मशीनों से शोध कार्य किया जा रहा है। डॉ. अजय कुमार गुप्ता ने बताया कि इन पौधों का अर्क निकालकर माइक्रो से भी सूक्ष्म भाग से परीक्षण किया गया। अब सफेद चूहों पर क्लीनिकल ट्रायल किया जा रहा है। क्लीनिकल ट्रायल से लेकर दवा बनाने की प्रक्रिया में कम से कम दस वर्ष लगते हैं।

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