Kanpur Moharram 2022: कर्बला के शहीदों की याद में निकले अलम के जुलूस, राष्ट्रीय ध्वज बढ़ाता रहा शान
कानपुर में कर्बला के शहीदों की याद में ताजिया और अलम के जुलूस निकाले गए। कर्बलाओं में भीड़ के बीच ताजिया दफन किए गए। वहीं दिन भर मातम व मजलिस का सिलसिला चलता रहा। इसके साथ ही हजरत इमाम हुसैन की नजर दिला तबर्रुक बांटा गया।
कानपुर, जागरण संवाददाता। दुनिया हुसैन की है जन्नत हुसैन की, जन्नत का रास्ता है मोहब्बत हुसैन की...हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों की कर्बला के मैदान में हुई शहादत की याद में यौम-ए-आशूरा पर मंगलवार को पूरे शहर से ताजिया व अलम के जुलूस निकाले गए। कर्बलाओं में ताजिया दफन किए गए। दिन भर मजलिस व मातम का सिलसिला जारी रहा। पैकियों ने बड़ी कर्बला में पहुंच कर अपनी कमर खोली।
पैगंबर-ए-इस्लाम के नवासे तथा हजरत अली के बेटे हजरत इमाम हुसैन की शहादत यौम-ए-आशूरा (मोहर्रम की दस तारीख) को हुई थी। सुन्नी व शिया मुस्लिमों ने अपने-अपने हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद किया। इस दौरान दिन भर ताजिया व अलम के जुलूस निकलते रहे। जुलूस में शामिल लोग हजरत इमाम हुसैन को नजराना-ए-अकीदत पेश( श्रद्धा सुमन अर्पित) करते चल रहे थे।
नवाबगंज स्थित बड़ी कर्बला, ग्वालटोली स्थित बड़ी कर्बला, बगाही कर्बला सहित शहर की सभी कर्बला में ताजिया दफन किए गए। हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों की नजर दिलाई गई। कोरोना संक्रमण की वजह से पिछले दो वर्षों से यौम-ए-आशूरा पर जुलूस निकालने पर पाबंदी थी। इस वर्ष जुलूसों में काफी भीड़ रही। बड़ी कर्बला व छोटी कर्बला में सुबह से शाम तक अकीदतमंदों की तांता लगा रहा। इमाम हुसैन की याद में खिचड़ा, खीर व जर्दा का तबर्रुक बांटा गया। सबील लगाकर शरबत पिलाया गया।
राष्ट्रीय ध्वज के साथ निकाले जुलूस
आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर मोहर्रम के जुलूस में अलम व ताजिया के साथ राष्ट्रीय ध्वज भी शामिल रहा। ताजिया का जुलूस निकालने वाली अंजुमनें अलम के साथ तिरंगा झंडा भी लेकर चल रही थी। तिरंगा ताजिया के साथ भी तिरंगा झंडा था। वहीं जुलूस में केसरिया, सफेद व हरे रंग के अलग-अलग झंडों के एक साथ लेकर चला गया। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि तीनों झंडों से तिरंगा बन गया हो।
छुरियों व जंजीरों का मातम किया
हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में शिया मातमी अंजुमनों ने ग्वालटोली स्थित इमामबारगाह आगामीर में तलवारों, जंजीरों व छुरियों का मातम किया। अजादारों (गम मनाने वालों ने )ने अपने सिर पर कमा (छोटी तलवार से सिर को काटना) लगाई। अंजुमन मोईनुल मोमिनीन, अंजुमन रिजविया, अंजुमन रजा-ए- मुस्तफा, अंजुमन जुल्फिकार-ए-हैदरी, अंजुमन मोहम्मदी मोइनुल आदि के मातमी जुलूस कर्बला पहुंचे।
पैकियों ने बड़ी कर्बला में खोली कमर
इस वर्ष पैकियों का जुलूस नहीं निकाला गया। मन्नत के तौर पर काफी संख्या में बच्चे व बड़े पैकी बने। मंगलवार को उन्होंने बड़ी कर्बला पहुंच कर अपनी कमर खोली। इसके बाद घर वापस आए।
सुन्नी मुस्लिमों का रोजा, शिया फाके से रहे
यौम ए आशूरा को सुन्नी मुस्लिमों ने रोजा रखा। शिया मुस्लिम फाके से रहे। सुन्नी मुस्लिमों ने मगरिब की अजान होने पर इफ्तार किया जाता है। शिया मुस्लिम कर्बला के भूखे-प्यासे शहीदों की याद में दिन भर भूखे-प्यासे रहे। शाम 4.30 बजे कर्बला के 72 शहीदों की नजर दिलाकर फाका तोड़ा गया।
घुप अंधेरे में शाम-ए-गरीबा
हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों पर किए गए जुल्म-ओ-सित्म की याद मेंं सूरज डूबने के बाद छोटी कर्बला स्थित इमामबारगाह आगामीर में घुप अंधेरे में मजलिस शाम-ए-गरीबा हुई। मौलाना सैफ अब्बास ने हजरत इमाम हुसैन की शहादत के बाद उनके घरवालों पर गयी मुसीबतें बयान की तो लोगों की आंखों से आंसू बहने लगे। इसके बाद मोमबत्ती जलता एक थाल व सीनी में कुछ रोटियां लाकर शाम-ए-गरीबा का मंजर पेश किया गया। इसके बाद मातम हुआ। मजलिस व मातम में बाकर मेहंदी, हसन मेहंदी, हाजी मुंसिफ अली रिजवी, नवाब नादिर हुसैन, अदीब आजमी, डा.जुल्फिकार अली रिजवी आदि रहे।