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लॉकडाउन में बदले वातावरण के बाद एक बार फिर फेफड़ों पर हमले को तैयार वायु प्रदूषण

त्वचा और सांस संबंधी रोगियों के लिए बनेंगे खतरनाक हालात औद्योगिक क्षेत्र में बिना मानक फैक्ट्रियों के संचालन से बढ़ा खतरा पिछले साल प्रदूषण कम करने को लेकर कार्रवाई होने के बाद भी पुराने ढर्रे पर चल पड़े हैं लोग

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Thu, 01 Oct 2020 06:46 PM (IST)Updated: Thu, 01 Oct 2020 06:46 PM (IST)
लॉकडाउन में बदले वातावरण के बाद एक बार फिर फेफड़ों पर हमले को तैयार वायु प्रदूषण
वायु प्रदूषण के प्रभाव को दर्शाती प्रतीकात्मक तस्वीर

कानपुर देहात, जेएनएन। औद्योगिक क्षेत्रों में बिना मानक चल रहीं हजारों फैक्ट्रियों के कारण फैल रहा घातक प्रदूषण फेफड़ों पर हमला करने को तैयार है। कोरोना की मार से जूझने के बाद लोगों को इसके लिए तैयार रहना होगा। त्वचा और सांस संबंधी मरीजों के लिए हालात खतरनाक बनेंगे।

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कानपुर देहात के रनियां से लेकर अकबरपुर व आसपास तेजी से औद्योगिक क्षेत्र बढ़े हैं। यहां दिन पर दिन वायु प्रदूषण का दायरा बढ़ रहा है। प्रमुख कारक फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआं, राख, पराली जलाना व टूटी सड़कों पर उडऩे वाली धूल है। इससे अस्थमा, टीबी, त्वचा रोग से लेकर कैंसर जैसी घातक बीमारियां लोगों को घेर रही हैं। लॉकडाउन के बाद अब फिर से सबकुछ खुलने पर प्रदूषण और तेजी पकडऩे की दिशा में कदम बढ़ा चुका है। कोरोना संक्रमण के दौरान लॉकडाउन से कुछ हद तक वायु प्रदूषण रुका था, लेकिन अब फिर भयावह स्थिति बन रही है। पिछले साल प्रदूषण कम करने को लेकर पराली, कूड़ा जलाने वालों के खिलाफ जिला प्रशासन ने कार्रवाई की थी, लेकिन सचेत होने की बजाय पुराने ढर्रे पर चल पड़े हैं। इससे भविष्य में हालात बेहद खतरनाक होंगे। लोग वायु प्रदूषण जनित बीमारियों की चपेट में आएंगे, जो कोरोना से भी बड़ा खतरा साबित होगा।

फैक्ट्रियों का धुआं ज्यादा घातक

अपर मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ वीपी सिंह के मुताबिक, फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं में कार्बनडाई आक्साइड व कार्बन मोनो आक्साइड की अधिकता से फेफड़े कमजोर होते हैं। इससे सांस संबंधी बीमारियां होती हैं। इसके बाद ये टीबी का रूप भी ले लेती हैं। इसके साथ ही शरीर में हीमोग्लोबिन भी कम हो जाता है, जो घातक बीमारियों को जन्म देता है।

दिमाग पर भी पड़ता गहरा असर

जिला अस्पताल के डॉ. अशोक जटारिया बताते हैं कि कोरोना के चपेट में आने वाले अधिकतर मरीजों की फेफड़े की झिल्ली कमजोर होने से उनके लिए वायु प्रदूषण ज्यादा खतरनाक साबित होगा। लकड़ी, धातु व पॉलीथिन के धुएं से कार्बन डाई आॅक्साइड के साथ ही अन्य जहरीली गैसें निकलती हैं। इससे आंखों में जलन, एलर्जी के साथ ही कैंसर जैसी घातक बीमारियां घेरती हैं। इसका असर दिमाग तक भी पहुंचता है।

प्रदूषण से बचने के लिए यह करें

  • लोग मास्क लगाकर ही घर से बाहर निकलें।
  • फैक्ट्री संचालक चिमनी में फिल्टर लगाएं और नियमित नजर रखें।
  • प्रदूषण से ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों में लगातार मानीटरिंग की जरूरत।  

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