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कोराना संकट में घर लौटे प्रवासियों ने गांव की माटी में तलाशी रोजी-रोटी, 50 दिन वाली फसल कराएगी कमाई

कोरोना संकट के चलते घर लौटे प्रवासी कामगार अब खेतों में पसीना बहाकर मूंग और उड़द की बोआई करने में जुट गए हैं।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Wed, 13 May 2020 10:57 PM (IST)Updated: Thu, 14 May 2020 08:28 AM (IST)
कोराना संकट में घर लौटे प्रवासियों ने गांव की माटी में तलाशी रोजी-रोटी, 50 दिन वाली फसल कराएगी कमाई
कोराना संकट में घर लौटे प्रवासियों ने गांव की माटी में तलाशी रोजी-रोटी, 50 दिन वाली फसल कराएगी कमाई

औरैया, जेएनएन। कोरोना संकट में गैर प्रांतों से घर लौटे प्रवासी अब गांव की माटी में रोजी-रोटी तलाश रहे हैं। आम तौर पर आलू की खोदाई और सरसों व गेहूं की मड़ाई के बाद किसान करीब डेढ़ माह के लिए खेत खाली छोड़ देते हैं। ऐसे खाली खेतों को देखकर प्रवासियों ने रोजगार तलाश लिया है और अब खेतों में पसीना बहाकर 50 दिन में तैयार होने वाली मूंग-उड़द की खेती में जुट गए हैं। जून में फसल तैयार होने के बाद वह खरीफ की फसल भी ले सकेंगे। एक दूसरे की देखा-देखी अन्य प्रवासी मजूदर भी फसल की बुवाई कर रहे हैं। इसकी बानगी के लिए ये दो मामले ही काफी हैं...।

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दृश्य-1

सहायल के पुर्वा बले निवासी योगेंद्र सिंह कानपुर में चमड़ा फैक्ट्री में काम करते थे। लॉकडाउन में घर आने पर कृषि विज्ञान से संपर्क कर आठ बीघे खेत में मूंग-उड़द की बोआई की। 50 दिन में फसल तैयार होने पर अच्छी आय होगी।

दृश्य-2

अछल्दा के पुर्वा उजैनी निवासी रामकुमार फीरोजाबाद में चूड़ी फैक्ट्री में काम करते थे। 15 अप्रैल को घर आए तो कृषि विज्ञान केंद्र से बेहतर उत्पादन के गुर सीखे। चार बीघे में मूंग-उड़द की बुआई की है। वह पहला पानी भी लगा चुके हैं।

मूंग की सम्राट और उड़द की कल्याणी पर जोर

कृषि विज्ञान केंद्र के डॉ. संदीप कुमार ने बताया कि मूंग की सम्राट (पीडीएम-139) व वाराणसी के कुदरत कृषि शोध संस्था की कल्याणी प्रजाति और उड़द की शेखर (आइसीयू-243) प्रजाति 50 से 55 दिन में तैयार हो जाती है। बीते साल सहार के गांव गुलरिहा निवासी दीप चंद्र ने तीन हेक्टेयर में 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मूंग की पैदावार की थी। इसके लिए उन्हें सम्मानित भी किय गया था।

आम के आम गुठलियों के भी दाम

वह बताते हैं कि उड़द-मूंग की खेती से फसल चक्र का भी पालन होता है। फली कटाई के बाद खेत में ही पत्तियों के रह जाने से मिट्टी में पोषक तत्वों के साथ जीवांश की भी वृद्धि होती है, जिससे मिट्टी का स्वास्थ्य बेहतर होता है और खरीफ फसल के उत्पादन में भी वृद्धि होती है।

कम समय में आय का बेहतर विकल्प

कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि विज्ञानी डॉ. संदीप सिंह कहते हैं किसानों की आय बढ़ाने को यह फसल कम समय में बेहतर विकल्प है। बाहर से आए मजदूरों ने इसका फायदा उठाया। जो नहीं बो सके हैं वह सब्जी की फसल कर लें। 30 दिन बाद कमाई होने लगेगी।


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