कानपुर के रंग कर्मियों से भी था गिरीश करनाड का जुड़ाव
40 साल पहले गिरीश करनाड कानपुर आए थे साथ काम करने वाले शहर के रंगकर्मियों ने याद किया।
कानपुर, जेएनएन। मशहूर अभिनेता एवं लेखक-निर्देशक गिरीश करनाड का कानपुर से कोई गहरा संबंध तो नहीं रहा मगर, 40 साल पहले वह एक बार कानपुर आए थे। यह उनका यहां एकमात्र दौरा था, हालांकि, शहर के कई रंगकर्मियों ने उनके साथ काम जरूर किया।
कानपुर रंगमंच के द्रोणाचार्य कहे जाने वाले राधेश्याम दीक्षित ने बताया कि गिरीश कर्नाड एक संगोष्ठी में भाग लेने के लिए 40 साल पहले कानपुर आए थे जब यूपी हैंडलूम सभागार में संगोष्ठी थी। तब उन्हें ज्यादा ख्याति नहीं मिली हुई थी। दीक्षित ने बताया कि गिरीश करनाड के लिखे नाटक 'तुगलकÓ में उन्होंने तुगलक का किरदार का निभाया था। उन्होंने उनके नाटक 'हयवदन' में भी उनके साथ काम किया। रंगमंच के प्रति वह पूरी तरह से समर्पित थे।
वरिष्ठ रंगकर्मी डॉक्टर ओमेंद्र कुमार ने बताया कि 1987 या 88 की बात है, जब राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नई दिल्ली में पहली बार गिरीश करनाड से मुलाकात हुई थी। वह अपने किसी नाटक के मंचन या वर्कशॉप के सिलसिले में आए थे। उनसे फिल्म उत्सव और उनके नाटकों तुगलक व नागमंडल के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा हुई। उन्होंने उत्सव में तत्कालीन परिवेश का दर्शाने के लिए सेट, कास्ट्यूम, प्रापर्टी पर कई साल रिसर्च वर्क किया था। इतने वरिष्ठ रंगकर्मी/अभिनेता होने के बावजूद कर्नाड साहब में सादगी और विनम्रता थी।
रंगकर्मी रमेश पाठक बताते हैं कि उन्होंने अपने शुरुआती दिनों में मुंबई में कई थियेटर किए। मोटेराम का सत्याग्रह, भारत भाग्य विधाता और त्रिशंकु नाटक में उन्होंने गिरीश कर्नाड के साथ काम किया। इस दौरान पाया कि कर्नाड साहब रंगमंच के लिए बने हैं।
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