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Vijay Diwas Special: दुश्मन की छाती पर चढ़ जाओ.., रामबाबू की जुबानी कारगिल की कहानी

कारगिल की लड़ाई में शामिल रहे कानपुर के रामबाबू ने आंखों देखा मंजर बयां किया और बताया सिर के उपर से मोर्टार और राकेट लांचर गुजर रहे थे। दो महीने तक युद्धक्षेत्र में और रातें बार्डर की पेट्रोलिंग में बिताई फिर जीत का सेहरा बांधकर ही लौटे।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Mon, 26 Jul 2021 07:59 AM (IST)Updated: Mon, 26 Jul 2021 07:59 AM (IST)
Vijay Diwas Special: दुश्मन की छाती पर चढ़ जाओ.., रामबाबू की जुबानी कारगिल की कहानी
कानपुर के रामबाबू ने बयां किया कारगिल युद्ध का मंजर।

कानपुर, जेएनएन। एक ही मिशन लेकर करगिल की ओर कूच किया था। दुश्मन की छाती पर चढ़ जाओ, उसके सिर पर तोपें गरजती रहें। मौत से आंखें चार करनी पड़ी थीं। अपनी ओर आते राकेट लांचर और मोर्टार देखकर डर भी लगा, लेकिन दुश्मन को अपनी जमीन से खदेडऩे की सोच के सामने दुबक गया। इसी हौसले के साथ आपरेशन विजय में हरजिंदर नगर, लालबंगला के रामबाबू यादव ने दो महीने दिन युद्धक्षेत्र में और रात बार्डर की पेट्रोलिंग में गुजारी। 26 जुलाई 1999 को जीत का सेहरा बांधकर वापस लौटे।

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रामबाबू बताते हैं, छह मई 1999 की रात हेडक्वार्टर से आदेश आया कि सुबह सभी को कारगिल के लिए निकलना है। बार्डर में चल रहे तनाव से वाकिफ कानपुर में तैनात फोर इंफेंट्री डिवीजन इलाहाबाद के जवानों ने रात में ही तैयारी कर ली। इसी में उनकी तैनाती थी। सुबह होते ही चकेरी स्टेशन पर स्पेशल ट्रेन लग गई। ट्रेन पर टैंक, तोप और बार्टिलरी रख पठानकोट के लिए रवाना हुए। 14 मई को कारगिल के सांबा सेक्टर में उनकी एमआरटी (मेन रिपेयर टीम) में तैनाती की गई। टीम का काम बोफोर्स तोप, अर्जुन टैंक, टी-72 समेत अन्य टैंकों और तोपों की आपरेशन एरिया मेें जाकर मरम्मत करना था। सूचना आने पर दूसरे सेक्टरों में भी गए। दूसरे सेक्टर में तोप तक पहुंचने के लिए कवर फायर दिया गया। बंकर से आगे बढ़े तो सिर के उपर से राकेट लांचर और मोर्टार गुजरकर आगे फटे। तोप तक जल्द पहुंचना था तो रुके नहीं।

बार्डर एरिया में दुश्मनों पर गोले बरसा रहा टैंक अचानक खराब होने पर उसे ठीक कर रहे थे, तभी एयर अटैक की सीङ्क्षलग आई तो बचने के लिए 8-10 फीट नीचे कूदे तो घायल हो गए। युद्ध के दौरान कई बार के-2, दराक्ष, सांबा, छम्म और जोरिया सेक्टर में गोलियों और तोप के गोलों की बौछार के बीच सीना ताने रहे। वह कहते हैं, मौत से आंखें मिलाने में बड़ा मजा आता था। कई बार डर भी लगा। काम के दौरान डिवीजन के चार साथी शहीद हुए। 48-48 घंटे बिस्किट खाकर गुजारे। एक बार गलती से सांबा सेक्टर के डीप कम बार्डर एरिया तक चले गए थे। पीछे से आ रही बीएसएफ की पेट्रोङ्क्षलग पार्टी ने दुश्मन का एरिया होने की जानकारी दी तो उनकी टीम वापस लौटी। दोनों ओर से तोपें दिन भर गरजती थीं, जिससे रण का मैदान खून से लाल हो गया था। पाकिस्तानी सैनिक व आतंकवादी ऊपर से गोलियां बरसा रहे थे, जबकि हम नीचे थे। हमारी गोलियां उन तक टारगेट नहीं कर पा रही थीं, फिर भी हमारे सैनिकों ने हौसला नहीं खोया। कारगिल से लेह तक 12 से 13 प्वाइंट पर हमने फतेह हासिल की और तिरंगा फहराया।


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