18 मार्च का इतिहास: वर्ष 1818 में मराठाें ने रखा था कानपुर में कदम, पढ़िए - आंदाेलन से जुड़ा यह वृत्तांत
Role Of Maratha Warriors In Freedom Fight स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन से जुड़ी एक प्रमुख घटना में 25 जून को पुरानी पनचक्की और गंगा के बीच के मैदान में नाना साहब का दरबार लगा। दो दिन बाद ही 27 जून को सत्तीचौरा कांड हुआ ।
कानपुर, [जागरण स्पेशल]। Role Of Maratha Warriors In Freedom Fight स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन का जब भी जिक्र होगा, उसमें कानपुर का नाम जरूर होगा और जब कानपुर का नाम आएगा तो उसमें मराठों का भी जिक्र आएगा। नाना साहब ने अंग्रेजों से युद्ध भी लड़ा और उन्हें हराया भी। उस दौरान कानपुर वह हिस्सा था जो अंग्रेजों से मुक्त करा दिया गया था और यहां नाना साहब का शासन था। हालांकि मराठों का आगमन इससे भी करीब चार दशक पहले हुआ। 18 मार्च 1818 यानी अब से 203 वर्ष पहले पेशवा बाजीराव द्वितीय कानपुर में बिठूर में रहने के लिए आए थे। उनके साथ उस समय करीब 15 हजार लोग थे। एक साथ इतनी बड़ी संख्या में मराठों के आने से बिठूर काफी चहल-पहल का स्थान बन गया था।
पेशवा बाजीराव द्वितीय ने 11 विवाह किए थे। उनके दो पुत्रियां थीं। अपनी पेशवाई को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने नाना धोंडू पंत (नाना साहब) को गोद लिया था। कानपुर आने के 33 वर्ष बाद 28 जनवरी को उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु के पांच वर्ष बाद 1856 में पेशवा बाजीराव द्वितीय के भाई की पुत्री के पुत्र चिम्मा जी राव अप्पा ने 16 मई को नाना साहब के दत्तक ग्रहण को चुनौती दी। इसमें उनके साथ बलवंत राव भी थे। यह दावा 3,04,70,000 रुपये का था। बलवंत राव इससे पहले 26 मार्च को भी 10 हजार रुपये का एक दावा कर चुके थे। 16 अप्रैल 1857 को आला सदर मौलवी अब्दुल रहमान ने नाना साहब के विरुद्ध दाखिल दावे खारिज कर दिए। इसके डेढ़ माह बाद चार जून को विद्रोह हो गया। उस समय कानपुर में कलेक्टर सीजी हिलसर्डन और मेजर जनरल ह्यू व्हीलर कमांडर थे।
एक जुलाई को नाना साहब को सिंहासन पर बैठाया गया
स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन से जुड़ी एक प्रमुख घटना में 25 जून को पुरानी पनचक्की और गंगा के बीच के मैदान में नाना साहब का दरबार लगा। दो दिन बाद ही 27 जून को सत्तीचौरा कांड हुआ और इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज) जाने के लिए नावों पर बैठे अंग्रेजों पर हमला कर दिया गया। इसमें व्हीलर समेत बड़ी संख्या में लोग मारे गए। आखिरकार एक जुलाई को बिठूर में नाना साहब को सिंहासन पर बैठाया गया। यह स्थिति बहुत दिन नहीं रही। 15 जुलाई को अंग्रेज सेना फिर शहर में आने लगी तो बीबीघर में बंद अंग्रेज महिलाओं व बच्चों को मार दिया गया। 17 जुलाई को अंग्रेज सेना दोबारा शहर में आई और कानपुर में फिर अंग्रेजों का कब्जा हो गया।