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Subhash Chandra Bose Jayanti 2021: सिंगापुर से आजादी का नारा हुआ था बुलंद, कानपुर की भूमिका थी अहम

Subhash Chandra Bose Jayanti 2021 वर्ष 1945 में जापान अंग्रेजों से हारा तो नेता जी वहां से सहयोगी हबीबुर्रहमान के साथ विमान से ताईवान जा रहे थे तभी उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इसके बाद से उनका कुछ पता नहीं चला। आजादी की मशाल को भारतीय रणबांकुरों ने जलाए रखा।

By Shaswat GuptaEdited By: Published: Sat, 23 Jan 2021 06:06 AM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 08:59 AM (IST)
Subhash Chandra Bose Jayanti 2021: सिंगापुर से आजादी का नारा हुआ था  बुलंद, कानपुर की भूमिका थी अहम
कानपुर की डॉ. लक्ष्मी सहगल और नेता जी की स्मृति से संबंधित फोटो।

कानपुर, [अनुराग मिश्र]। नेताजी सुभाषचंद्र बोस की वाणी का ही ओज था कि उनके एक बार कहने भर से सिंगापुर की सरजमीं तक भारतीयों ने अपने देश की आजादी का नारा बुलंद कर दिया था। इसमें कानपुर की भूमिका भी अहम रही थी। नेताजी के प्रस्ताव पर ही रानी झांसी रेजीमेंट में विदेश में रहने वाले परिवारों की महिलाओं को जोड़ा गया। इसमें खास बात यह है कि तीसरी पीढ़ी की वो युवतियां-महिलाएं आजादी के इस समर में कूद पड़ी थीं, जिन्होंने कभी भारत को देखा तक नहीं था। उनके संघर्ष की बुनियाद पर ही आजादी की शानदार इमारत खड़ी हुई।

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सिंगापुर में गढ़ा था आजादी का नारा 

वर्ष 1943 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस सिंगापुर पहुंचे तो वहां सभागार में ही उन्होंने तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा का नारा बुलंद कर कहा था कि अगर भारत की आजादी चाहिए तो भारतीय मूल के लोगों को बहुत सारा धन देने के साथ ही फौज में शामिल होना होगा। उन्होंने महिला टुकड़ी बनाने की बात कही तो सबने कहा कि महिलाएं भला इस फौज में कैसे आएंगी। इसके बाद उन्होंने कानपुर की डॉ. लक्ष्मी सहगल को रानी झांसी रेजीमेंट की कमान सौंपी थी। प्रशिक्षण के बाद मलेशिया, बर्मा, रंगून में महिलाओं को रेजीमेंट से जोड़ा गया। वर्ष 1945 में जापान अंग्रेजों से हारा तो नेता जी वहां से सहयोगी हबीबुर्रहमान के साथ विमान से ताईवान जा रहे थे, तभी उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इसके बाद से उनका कुछ पता नहीं चला। हालांकि, आजादी की मशाल को भारतीय रणबांकुरों ने जलाए रखा और देश को आजादी का सवेरा देखने को मिला।

इनका ये है कहना

मां डॉ. लक्ष्मी सहगल अक्सर नेताजी से जुड़े संस्मरण सुनाती थीं। 24 अक्टूबर 1914 को तमिल परिवार में जन्मी मां मद्रास मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस करके वर्ष 1939 में सिंगापुर में अपने ममेरे भाई पीके मेनन के पास चली गई थीं। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उन्होंने चिकित्सा सुविधा दी  और खास तौर पर भारतीय मूल के जरूरतमंदों की सेवा की। इस दौरान उनका इंडिया इंडिपेंडेंस लीग के सदस्यों से जुड़ाव हुआ, जहां से वह नेताजी के साथ जुड़ी थीं। - सुभाषिनी अली, पूर्व सांसद  


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