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Janmashtami Special: कहां है कान्हा की ससुराल, जहां आज भी जीवंत है बरसों पुरानी प्राचीन विरासत

Krishna Janmashtami 2020 औरैया के कुदरकोट तब कुंदनपुर राज्य आकर पांडु नदी के रास्ते भगवान श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का हरण करके अपने साथ द्वारिका नगरी लेकर चले गए थे।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Wed, 12 Aug 2020 02:46 PM (IST)Updated: Wed, 12 Aug 2020 03:04 PM (IST)
Janmashtami Special: कहां है कान्हा की ससुराल, जहां आज भी जीवंत है बरसों पुरानी प्राचीन विरासत
Janmashtami Special: कहां है कान्हा की ससुराल, जहां आज भी जीवंत है बरसों पुरानी प्राचीन विरासत

औरैया, [शंकर पोरवाल]। श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ और बचपन नंदगांव में बीता था लेकिन बहुत कम ही लोग जानते होंगे उनकी ससुराल कहां पर है। उस समय का कुंदनपुर राज्य आज औरैया का कुदरकोट है, यहीं पांडु नदी के रास्ते उन्होंने रुक्मिणी का हरण किया था। इसका उल्लेख श्रीमद्भगवत गीता में भी मिलता है और यहां पर पांच हजार साल पुरानी विरासत के निशां अाज भी जीवंत हैं।

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राजा भीष्मक की पुत्री थी रुक्मिणी

श्रीमद्भागवत में उल्लेख मिलता है कि पांच हजार साल पुराना कुंदनपुर वर्तमान में कुदरकोट के नाम से जाना जाता है। यहां के राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मिणी व रुक्मी समेत पांच पुत्र थे। रुक्मी की मित्रता शिशुपाल से थी, इसलिए वह अपनी बहन रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल से करना चाहता था, जबकि राजा और उनकी पुत्री रुक्मिणी की इच्छा भगवान श्रीकृष्ण से विवाह करने की थी। जब राजा की पुत्र के आगे नहीं चली तो उन्होंने बेटी की शादी शिशुपाल से तय कर दी थी। यह बात नागवार गुजरने पर रुक्मिणी ने द्वारिका नगरी में दूत भेजकर भगवान कृष्ण को बुलाया था। यहां पर नदी पार करने के बाद कान्हा ने रुक्मिणी का हरण किया था।

रुक्मिणी के जाते ही गौरी माता हो गई थीं अलोप

मान्यता है कि कुंदनपुर महल में स्थित गौरी माता रुक्मिणी हरण के बाद अलोप हो गई थीं। इसीलिए वहां पर अलोपा देवी मंदिर की स्थापना हुई। मंदिर के पश्चिम दिशा में राजा भीष्मक के द्वारा स्थापित द्वापर कालीन शिवलिंग है, जिसकी अब पहचान बाबा भयानक नाथ के नाम से है। मंदिर के पुजारी सुभाष चौरसिया बताते हैं, यहां चैत्र व आषाढ़ की नवरात्र में प्रतिवर्ष मेला लगता है। 116 साल से भव्य रामलीला का आयोजन हो रहा है। दशहरा पर रावण वध का मंचन होता है। मां अलोपा देवी मंदिर जमीन से 60 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। प्रतिवर्ष फाल्गुनी अमावस्या पर 84 कोसी परिक्रमा का भी आयोजन होता है।

50 एकड़ में फैले महल के अवशेष

मुगल शासनकाल में कुंदनपुर का नाम कुदरकोट पड़ गया। यहां राजा भीष्मक के महल के अवशेष 50 एकड़ क्षेत्र में फैले हैं। वर्तमान में जहां कुदरकोट का माध्यमिक स्कूल है, वहां कभी राजा भीष्मक का निवास स्थान था। ऐसा उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। सरकारी उदासीनता के कारण मथुरा वृंदावन की तरह कुदरकोट को पहचान नहीं मिल सकी है।


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