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श्रीराम के परित्याग के बाद वन देवी के रूप में यहां रहीं थी माता सीता, रसोई में अाज भी रखे हैं बर्तन

कानपुर में एतिहासिक और पौराणिक थाती समेटे बिठूर में माता सीता का उपासना स्थल और स्वर्ग नसेनी भी दे रही उस काल की गवाही।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Wed, 05 Aug 2020 04:00 PM (IST)Updated: Wed, 05 Aug 2020 04:00 PM (IST)
श्रीराम के परित्याग के बाद वन देवी के रूप में यहां रहीं थी माता सीता, रसोई में अाज भी रखे हैं बर्तन
श्रीराम के परित्याग के बाद वन देवी के रूप में यहां रहीं थी माता सीता, रसोई में अाज भी रखे हैं बर्तन

कानपुर, [प्रदीप तिवारी]। पौराणिक व ऐतिहासिक थाती संजोए बिठूर, वन देवी के रूप में यहां रहीं माता सीता के पद-रज का साक्षी है। उनकी रसोई के बर्तन, उपासना स्थल के साथ स्वर्ग नसेनी भी आकर्षण का केंद्र है। अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर निर्माण से इनका दीदार करने के लिए सैलानियों की संख्या बढऩी तय है। पर्यटन विभाग में हलचल भी दिखने लगी है।

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ब्रह्मांड के केंद्र बिंदु के रूप में पहचान

महर्षि वाल्मीकि आश्रम बिठूर को ब्रह्मांड के केंद्र बिंदु के रूप में पहचाना जाता है। यहां पर ब्रह्म खूंटी भी है। इसी के नाम पर गंगा तट पर ब्रह्मावर्त घाट भी है। लव-कुश की जन्मस्थली में त्रेता युग की कई आकर्षक धरोहर हैं।

सघन वन में पशु-पक्षी और पेड़-पौधों तक था उल्लास 

वाल्मीकि आश्रम का मुख्य द्वार काफी ऊंचाई पर स्थित है। माता सीता इसके ही पास वन देवी के रूप में रहती थीं। पर्यटन विभाग की तरफ से देखरेख करने वाले प्रदीप यादव बताते हैं कि वन देवी का मंदिर वर्तमान में भी है। तब घने जंगल में पीलू व करेल के पेड़ अधिक थे। वर्षों पुराना एक पीलू का पेड़ अभी भी है। वाल्मीकि रामायण में पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों के अंदर भी माता सीता के वहां वास करने का उल्लास दिखता था। वह वन से लकड़ी लाकर भोजन बनाती थीं।

मान्यता, गहरे कुएं से लेती थीं जल

वाल्मीकि आश्रम के ठीक नीचे सीता रसोई में अब भी उनके पौराणिक काल के बर्तन, चूल्हा, लकड़ी के चम्मच, चिमटा, बेलन व कढ़ाई रखे हैं। इसी के पास गहरा कुआं है। माता सीता यहीं से जल लेती थीं।

स्वर्ग नसेनी से दिखता बिठूर का आकर्षक नजारा

पंडित नंद किशोर दीक्षित बताते हैं कि यहां स्वर्ग नसेनी में 49 सीढिय़ां हैं। 365 दीप रखने के स्थान हैं, जिनमें दीप जलाए जाते हैं। उन्हें दीप मालिका कहा जाता है। कालांतर में ऐतिहासिक काल में यहां लगे घंटे को बजाते ही दुश्मन से भिडऩे के लिए सेना तैयार होने लगती थी। स्वर्ग नसेनी की आखिरी सीढ़ी पर पहुंचने से बिठूर का विहंगम दृश्य दिखता है। इसमें चढऩे के लिए सात फेरे हैं, जिससे भाई-बहन को एक साथ चढऩा मना है।

क्या कहते हैं अधिकारी

  • स्वदेश दर्शन योजना के तहत वाल्मीकि आश्रम में कई कार्य कराएं जा चुके हैं। बेंच, पाथवे, लाइटिंग, टर्फ ग्रास आदि कार्य हुए हैं। रामायण सर्किट में आने से बिठूर धाम में कई कार्य होने की संभावना बनेगी। भविष्य में रामलला स्मृतियों से जुड़ा यह पावन धाम पूरे विश्व में आकर्षण का केंद्र बनेगा। -अर्चिता ओझा, जिला पर्यटक अधिकारी।
  • अभी फिलहाल वाल्मीकि आश्रम व सीता रसोई के लिए कोई भी निर्माण कार्य योजना प्रभावी नहीं है। अयोध्या शिलान्यास के बाद यहां बड़े स्तर पर निर्माण व पर्यटन को बढ़ावा मिलने की संभावना जागी है। -प्रदीप यादव, स्मारक परिचर, पुरातत्व विभाग।

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