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मोबाइल व टावर से रेडिएशन का खतरा, ग्रामीण क्षेत्रों में निगरानी बहुत जरूरी

एचबीटीयू की ओर से आयोजित वेबिनार में बोले गवर्नमेंट गल्र्स इंजीनियङ्क्षरग कॉलेज अजमेर के डॉ. संजीव यादव।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Mon, 25 May 2020 11:58 PM (IST)Updated: Mon, 25 May 2020 11:58 PM (IST)
मोबाइल व टावर से रेडिएशन का खतरा, ग्रामीण क्षेत्रों में निगरानी बहुत जरूरी
मोबाइल व टावर से रेडिएशन का खतरा, ग्रामीण क्षेत्रों में निगरानी बहुत जरूरी

कानपुर, जेएनएन। मोबाइल और उसके टावर रेडिएशन का प्रमुख कारण हैं। हालांकि देश में मानक काफी बेहतर रखे गए हैं, लेकिन कई बार कंपनियां सिग्नल के चक्कर में चोरी छिपे पावर बढ़ा देती हैं। इससे रेडिएशन का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। यह बात गवर्नमेंट गल्र्स इंजीनियङ्क्षरग कॉलेज, अजमेर के डॉ. संजीव यादव ने कही। वह सोमवार को एचबीटीयू की ओर से मोबाइल और मोबाइल टावर के रेडिएशन व बचाव के तरीकों पर आयोजित वेबिनार में बोल रहे थे।

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सिग्नल के चक्कर में कंपनियां बढ़ा देती हैं कंपनियां

उन्होंने कहा कि टॉवरों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए, लेकिन उनकी अत्याधुनिक तरीके से मॉनीटङ्क्षरग होनी चाहिए। सरकार को टॉवरों का ऑनलाइन डाटा अपने पास रखना होगा। पावर बढ़ाने का खेल ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में होता है। इससे एंटीना की दिशा की ओर आने वाले घरों पर रेडिएशन का खतरा रहता है। इससे अनिद्रा, तनाव, चिड़चिड़ापन, सिरदर्द, बेचैनी हो सकती है। मोबाइल को कान पर 10 मिनट से अधिक समय तक नहीं लगाना चाहिए। यह कई तरह की समस्याएं पैदा करता है। बच्चों और गर्भवती महिलाओं को मोबाइल कम से कम इस्तेमाल करना चाहिए। कान से सटाकर बतियाने से कान, दिमाग और अन्य हिस्से गर्म होने लगते हैं। 20 मिनट तक लगातार बातें करने से मोबाइल का तापमान एक डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है। इससे पहले वेबिनार के अंतिम दिन का शुभारंभ डॉ. आंबेडकर इंस्टीट््यूट ऑफ टेक्नोलॉजी फॉर हैंडीकैप्ड की निदेशक प्रो. रचना अस्थाना ने किया।

फाइव जी में रेडिएशन अधिक

एचबीटीयू के प्रति कुलपति प्रो. मनोज शुक्ला ने बताया कि वन जी, टू जी नेटवर्क में रेडिएशन न के बराबर था, जबकि थ्री जी और फोर जी में ये काफी बढ़ गया। फाइव जी नेटवर्क में रेडिएशन काफी अधिक रहता है। रेडिएशन की वजह से ही जापान, इंग्लैंड समेत कई देशों ने इसे अपनाया नहीं है। चीन और कोरिया में फाइव जी की शुरूआत हो गई है। अमेरिका सिर्फ सेना के लिए इसका इस्तेमाल कर रहा है।

मैटेलिक पर्दों पर करेंगे काम

एचबीटीयू और गवर्नमेंट गल्र्स इंजीनियङ्क्षरग कॉलेज, अजमेर मिलकर मैटेलिक पर्दों पर काम करेंगे। इसमें पर्दों पर एक तरह से कॉपर और अन्य मैटल्स की कोङ्क्षटग की जाएगी। कॉलेज के विशेषज्ञों ने इसका प्रोटोटाइप विकसित किया है। इसकी कीमत दो से ढाई हजार रुपये है। यह बाहर से आने वाले रेडिएशन को रोकने के सक्षम है।  


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