Coronavirus से जंग में एक और उपलब्धि, रिवर्स एप बताएगा पाजिटिव मरीज कितनों से मिला और कितने हुए संक्रमित
छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय के छात्र ने एप तैयार करके आइटी विभाग को दिया है।
कानपुर, [जागरण स्पेशल]। कोरोना वायरस से जंग में अस्पतालों में डॉक्टर मोर्चा ले रहे हैं, वहीं दूसरी ओर देश का आविष्कारक दिमाग भी जुट गय है। कानपुर में इस बात की ताजा नजीर आइआइटी और विश्वविद्यालय के छात्रों ने पेश की है। आइआइटी के पूर्व छात्र ने प्रोफेसरों की मदद से जहां पोर्टेबल वेंटिलेटर बनाया है, वहीं दूसरी ओर छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्याल के छात्र ने रिवर्स एप तैयार किया है।
विश्वविद्यालय ने शुरू की थी इनोवेशन चैलेंज फॉर ओवरकमिंग कोरोना
देश दुनिया में कोराेना वायरस के बढ़ते मरीजों को देखते हुए विश्वविद्यालय ने गंभीरता दिखाई और बचाव के लिए पहल शुरू की। विवि के इंक्यूबेशन एंड इनोवेशन सेल द्वारा इनोवेशन चैलेंज फॉर ओवरकमिंग कोरोना मुहिम शुरू की है। इसके जरिए छात्र-छात्राओं को कोरोना से बचाव के लिए आइिडया शेयर करने का मौका दिया। विकास चौरसिया ने भी इसी में हिस्सा लिया है। वे बताते हैं कि 14 दिन से एप तैयार करने में लगे हुए थे। विवि के इंक्यूबेशन एंड इनोवेशन सेल ने इनोवेशन चैलेंज फॉर ओवरकमकोरोना नाम से मुहिम शुरू की तो इसमें आइडिया भेज दिया।
छत्रपति शाहू जी महाराज विवि में बीएससी बायोटेक्नोलॉजी में तीसरे वर्ष के छात्र विकास चौरसिया बताते हैं कि कोरोना वायरस का संक्रमण व्यक्ति से व्यक्ति में फैल रहा है। इसमें सबसे बड़ी समस्या तब होती है जब कोरोना पाजिटिव मरीज की पुष्टि तो हो जाती लेकिन उससे संपर्क में आए लोगों की संख्या का सही पता नहीं लग पाता है। इसे देखते हुए उन्होंने मोबाइल एप बनाया है क्योंकि मोबाइल तकरीबन अब हर दूसरे व्यक्ति के पास रहता है। वह बताते हैं कि अगर किसी व्यक्ति को कोरोना वायरस का संक्रमण है और उसे यह बात चार से पांच दिनों बाद पता चलती है। इतने दिनों में यह व्यक्ति कितने लोगों से मिला, कितने संक्रमित हो गए, यह बात रिवर्स ट्रैकिंग एप से पता की जा सकेगी। उन्होंने अपना यह आइडिया विवि की आइटी विभाग की अध्यक्ष डॉ.राशि अग्रवाल को मेल किया है।
जानें, कैसे काम करता है रिवर्स एप
छात्र विकास चौरसिया बताते हैं कि रिवर्स एप के काम करने का तरीका बिल्कुल अलग है। यह एप जीपीएस और सेल्युलर नेटवर्किंग के आधार पर काम करता है। इसके लिए हर मोबाइल धारक को फोन में एप डाउनलोड करना होगा। इसके बाद यह एप ऑटोमेटिक काम करना शुरू कर देगा। आप कहां जा रहे हैं किससे मिल रहे हैं, सबका डाटा इस एप में ऑटोमिटक फीड होता जाएगा। यह डाटा एप के मेन सर्वर पर फिलहाल 15 दिन पिछला ही दर्शाएगा। इसमें खास बात यह है कि एप सिर्फ सपंर्क में आए उन्हीं लोगों की जानकारी देगा, जिनके मोबाइल पर भी यह एप मौजूद होगा।
विकास कहते हैं कि कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलाने से रोकने के लिए देश के प्रत्येक नागरिक का दायित्व बनता है, ऐसे में हम एप को डाउनलोड करके महामारी के फैलाव को रोक सकते हैं। यदि एप डाउनलोड करने वाला कोई व्यक्ति कोरोना संक्रमित मिलता है तो उससे मिले कितने लोग संक्रमण के खतरे में आ गए है पता चल जाएगा। ऐसे संभावित लोगों को ट्रेस करके उनकी जांच कराई जा सकेगी और संक्रमण के फैलने को रोका जा सकेगा। इतना ही नहीं कोरोना की पुष्टि होने पर मरीज पहले यदि किसी संक्रमित मरीज से मिला होगा तो भी पता लग जाएगा कि उससे ही वह संक्रमित हुआ है। वह अब काम कर रहे कि इस एप से प्राइवेसी भी बरकरार बनी रहे।
आइआइटी, एचबीटीयू भी देगी मदद
विकास को आइआइटी कानपुर, एचबीटीयू और इंक्यूबेशन एंड इनोवेशन सेल के विशेषज्ञ मदद देंगे। इसमें नागपुर की संस्था सृजन संचार के विशेषज्ञ भी सहायता करेंगे। वे विवि के अफसरों से बात कर चुके हैं। आइटी विभागाध्यक्ष डॉ.राशि अग्रवाल ने बताया कि बेस्ट इनोवेटिव आइडिया को दो लाख रुपये की मदद भी की जाएगी। सीएसजेएमयू की कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने बताया कि कोरोना से लड़ने के लिए विवि की चैलेंज मुहिम के सार्थक परिणाम आ रहे हैं, हमारे छात्र-छात्रएं मोबाइल एप तैयार कर रहे हैं।