मई में बिन बादल अगर बरसात हो तो चौंकिएगा नहीं, आइआइटी और एचएएल करने जा रहा परीक्षण
आइआइटी और एचएएल मिलकर एयरक्राफ्ट से बारिश का परीक्षण करने जा रहे हैं।
कानपुर, जेएनएन। कृत्रिम बारिश कराने में अब आइआइटी को एचएएल का साथ मिल गया है। एचएएल के एयरक्राफ्ट के सहयोग से आइआइटी मई में कृत्रिम बारिश का परीक्षण करा सकता है। लखनऊ में चल रहे डिफेंस एक्सपो में एचएएल टेड कानपुर के जनरल मैनेजर अपूर्बा रॉय व आइआइटी के उप निदेशक प्रो. मणींद्र अग्रवाल ने इसे लेकर एक करारनामे पर हस्ताक्षर किए हैं।
डोर्नियर-228 एयरक्राफ्ट का हो चुका परीक्षण
करार के तहत कृत्रिम बारिश कराने में एचएएल के डीओ-228 व एचएस-748 एयरक्राफ्ट आइआइटी कानपुर का सहयोग करेंगे। कृत्रिम बारिश कराने की इस परियोजना में अब एचएएल के अधिकारी, तकनीशियन व आइआइटी के वरिष्ठ प्रोफेसर मिलकर काम करेंगे। उपनिदेशक प्रो. मणींद्र अग्रवाल व सिविल इंजीनियङ्क्षरग विभाग के प्रो. सच्चिदानंद त्रिपाठी कृत्रिम बारिश कराने की तकनीक पर लंबे समय से काम कर रहे हैं। इसी के तहत पिछले वर्ष आइआइटी में एचएएल में निर्मित डोर्नियर-228 एयरक्राफ्ट का परीक्षण भी किया गया था।
खर्च आएगा काफी कम
आइआइटी की योजना बुंदेलखंड क्षेत्र के हमीरपुर व ललितपुर समेत ऐसे जिलों में कृत्रिम बारिश कराने की है, जो गर्मी के दिनों में सूखे से जूझते हैं। आइआइटी ने अपने परीक्षण में पाया कि स्वदेशी एयरक्राफ्ट व सीमित संसाधनों से बारिश कराने का खर्च बहुत कम हो जाएगा। विदेशों से आने वाले एयरक्राफ्ट व उसमें लगने वाले उपकरण के जरिए अगर कृत्रिम बारिश कराई जाती है तो उसका खर्च साल भर में 50 से 60 करोड़ रुपये आता है। स्वदेशी एयरक्राफ्ट व स्वदेशी उपकरणों के जरिए इसका खर्च घटाकर पाच से छह करोड़ पर लाया जा सकता है।
प्रोजेक्ट में छह विभागों के सचिव शामिल
कृत्रिम बारिश कराने के प्रोजेक्ट में छह विभागों के सचिव के अलावा उपनिदेशक प्रो. मणींद्र अग्रवाल, एयरोस्पेस विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. एके घोष, सिविल इंजीनियङ्क्षरग विभाग के प्रो. सच्चिदानंद त्रिपाठी शामिल हैं। कृत्रिम बारिश कराने के लिए प्रदेश सरकार की ओर से गठित कमेटी आइआइटी में बैठक कर चुकी है। एचएएल की टीम ने भी दो बार आइआइटी की एयर-स्ट्रिप का दौरा किया है।