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बाजार में फैली ये खबर....और काली कोठरी से बाहर आने लगे 2000 के नोट

काला धन छिपाना हो या लोकसभा चुनाव की तैयारी, बीते वर्ष में ही दो हजार रुपये डंप होने लगे थे।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Wed, 09 Jan 2019 09:29 PM (IST)Updated: Thu, 10 Jan 2019 11:24 AM (IST)
बाजार में फैली ये खबर....और काली कोठरी से बाहर आने लगे 2000 के नोट
बाजार में फैली ये खबर....और काली कोठरी से बाहर आने लगे 2000 के नोट
जागरण संवाददाता, कानपुर : कालेधन को सहेजने और लोकसभा चुनाव की तैयारी के चलते काली कोठरी में चला गया गुलाबी नोट फिर बाहर निकलने लगा है। कारण, भारतीय बाजार में प्रचलित नोटों में एक तिहाई से अधिक की हिस्सेदारी करने वाले इस सबसे बड़े नोट की भरतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) द्वारा छपाई सीमित करने की सूचना के बाद बाजार इस नोट के भी प्रचलन को लेकर आशंकित है। नतीजा, अभी तक जो भुगतान सौ रुपये और पांच सौ रुपये के नोट में हो रहा था, वह सबसे बड़े नोट यानी 2000 रुपये के नोट में हो रहा है। बाजार में इस नोट के लिए सरगर्मी का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि बैंक में पिछले दिनों के मुकाबले 2000 रुपये के नोट की आवक दो गुने से ज्यादा हो गई है। अभी तक बैंकों के पास कुल पहुंचने वाले नोटों में दो हजार रुपये के नोट की संख्या महज 10-12 फीसद ही थी।
काला धन छिपाना हो या लोकसभा चुनाव की तैयारी, बीते वर्ष में ही दो हजार रुपये डंप होने लगे थे। आरबीआइ से जितना रुपया बैंक को जारी हो रहा थी और बैंक, बाजार में जितनी सप्लाई कर रहे थे, उसके मुकाबले वापसी काफी कम थी। हर बार नोटों की संख्या गिर रही थी। बीते जुलाई अगस्त में तो यह घटकर 15 फीसद से भी नीचे आ गई थी, जबकि तब बाजार में इसकी हिस्सेदारी करीब 50 फीसद थी।
बाजार का यह हाल देखकर आरबीआइ ने दो हजार रुपये के नोटों की सप्लाई बंद कर दी थी। इससे ये नोट एटीएम में भी नहीं फीड हो पा रहे थे और कैश जल्दी खत्म हो रहा था। ऐसे में 2000 रुपये के नोट की छपाई सीमित करने की सूचना ने इन नोटों को बाहर निकाल दिया। अंदाजा लगा सकते हैं, एक स्कूल, जो अभी तक केवल 100 और 500 रुपये के नोट में वेतन दे रहा था, वह अब दो हजार रुपये के नोट में दे रहा है।
चलन में दो हजार के नोट
देश में मार्च 2017 के अंत में चलन में रही कुल मुद्रा मूल्य में 2,000 रुपये के नोटों की हिस्सेदारी 50.2 फीसद थी, जो मार्च 2018 के अंत में 37.3 फीसद रह गई थी। मार्च 2017 में बाजार में 13 लाख करोड़ रुपये से अधिक मुद्रा प्रचलित थी, जो दिसंबर 2018 में बढ़कर करीब बीस लाख करोड़ रुपये हो गई थी।

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