शोध में सामने आए चौंकाने वाले तथ्य, गंगा से विलुप्त हो रहीं मछलियां
सीएसजेएमयू के बीएसबीटी विभाग की ओर से रीटा-रीटा मछली पर किया गया शोध। नदी में मौजूद कीटनाशक लेड पारा अन्य हानिकारक तत्वों की अधिकता से नुकसान
समीर दीक्षित, कानपुर : गंगे तव दर्शनात मुक्ति यानि गंगा के दर्शन मात्र से मुक्ति मिल जाती है। ऐसा पुराणों से वर्णित है। शायद इसीलिए श्रद्धा और अगाध आस्था के चलते गंगा में पुण्य की डुबकी लगाने के लिए श्रद्धालु लालायित रहते हैं। जानकार हैरानी होगी कि पाप दोषों से मुक्ति दिलाने वाली इसी गंगा नदी में मछलियां विलुप्त हो रही हैं। पानी में हानिकारक तत्वों की अधिकता से न सिर्फ मछलियों की मौत हो रही है बल्कि वे कानपुर में गंगा का ठौर भी छोड़ रही है।
यह जानकारी छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के बायो साइंस एंड बायो टेक्नालॉजी (बीएसबीटी) विभाग की ओर से रीटा-रीटा मछली पर किए गए हालिया शोध में सामने आई है। करीब आठ माह तक चले अध्ययन में नदी के पानी का नमूना लेकर जांच की गई। गंगाजल के नमूने में क्रोमियम, लेड, आर्सेनिक, पारा आदि हानिकारक तत्व मिले ही। साथ मेंडीडीटी, मैलाथियान, गैमेक्सीन की मात्रा भी बहुतायत में मिली।
गुर्दे, लीवर की कोशिकाएं,गिल्स व फिन हो रहे प्रभावित
शोध में सामने आया कि गंगाजल में रहने वाली मछलियों कैटफिश, बैग्रिड, मांगुर, रीटा-रीटा प्रजातियों पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। गंगाजल में मौजूद ये हानिकारक तत्व मछलियों के गुर्दे, लीवर और कोशिका प्रभावित कर रहे हैं। उनके गिल्स और फिन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इससे भारी तादाद में मछलियों की मौत हो रही है।
ऐसे पहुंच रहा क्रोमियम, आर्सेनिक, लेड व पारा
- औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले दूषित उत्प्रवाह से
- पशुओं को नदियों में स्नान कराने से
- छोटी-छोटी नालियों के माध्यम से पहुंचने वाले गंदे पानी से
- फूल-पत्ती, कूड़ा-कचरा फेंके जाने से
ईकोसिस्टम होगा प्रभावित
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर मछलियां गंगा में नहीं रहेंगी तो जलीय जैव विविधता प्रभावित होगी। यह पर्यावरण के लिए नुकसानदेह है।
मानव जीवन पर भी असर
आर्सेनिक: गाल ब्लेडर को खराब करता है। कैंसर होने का खतरा।
क्रोमियम: यह मनुष्य व जीवों की खाल गला देता है।
लेड: लिवर, किडनी को क्षतिग्रस्त करता है।
पारा: अंगों को नष्ट करता है। कोशिकाएं मार देता है।
कॉपर: शरीर की मेटाबॉलिक प्रक्रिया धीमी कर देता है। इम्यून सिस्टम कमजोर होने पर बीमारियां तेजी से घेरती हैं।
गंगा में मौजूद भारी तत्वों के चलते हो रहे प्रदूषण से मछलियां विलुप्त हो रही हैं। यह बेहद गंभीर और चिंतनीय है। हमें बढ़ते प्रदूषण को रोकना होगा।
डॉ.वर्षा गुप्ता, असिस्टेंट प्रोफेसर बीएसबीटी विभाग सीएसजेएमयू
गंगा में बढ़ते प्रदूषण से जलीय भोज्य पदार्थों की कमी, बढ़ती आबादी से भी मछलियां विलुप्त हो रही हैं। ऐसा कहा जा सकता है। प्रदूषण रोकने के लिए विभाग युद्धस्तर पर काम कर रहा है।
-कुलदीप मिश्रा, मुख्य पर्यावरण अधिकारी, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड