रेलवे का प्रदूषण दूर करेगा आइआइटी, मेथनॉल से दौड़ाएगा रेल इंजन
मेथनॉल से चलने वाले इंजन बनाने पर रेलवे और आइआइटी मिलकर काम कर रहे हैं। इस प्रोजेक्ट की कुल लागत करीब 70 करोड़ रुपये है।
कानपुर (शशांक शेखर भारद्वाज)। वायु प्रदूषण के बढ़ते खतरे से निपटने और भविष्य में ईंधन की जरूरत पूरी करने को लेकर कवायद तेज हो गई हैं। इसमें जहां बैटरी चलित वाहनों की लांचिंग हो रही है, वहीं पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को भी ईको फ्रेंडली बनाया जा रहा है। सबसे पहले भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ कही जाने वाली रेलवे को प्रदूषण मुक्त किया जाएगा। उसके डीजल चलित इंजन को मेथनॉल से दौड़ाने की तकनीक विकसित की जा रही है। इस काम में आइआइटी और रेलवे मिलकर काम कर रहे हैं। संस्थान को तकनीक विकसित करने की जिम्मेदारी मिली है, जिसके प्रोजेक्ट की कुल लागत करीब 70 करोड़ रुपये है। इसमें इंजन का डिजाइन और मॉडीफिकेशन (परिवर्तन) भी शामिल है।
तीन चरणों में विकसित होगी तकनीक
मेथनॉल चलित इंजन का निर्माण तीन चरणों में किया जाएगा। पहले चरण में कंप्यूटराइज्ड सिमुलेशन होगा। इसमें ग्राफ और डाटा के माध्यम से एफिकेसी (प्रभावोत्पादकता) देखी जाएगी। दूसरे चरण में सिंगल सिलिंडर से मेथनॉल का एवरेज और माइलेज जांचा जाएगा। तीसरा चरण पूरी तरह फंक्शनल (कार्यात्मक) होगा। इसमें 16 सिलिंडर के लोकोमोटिव इंजन को ट्रैक पर चलाकर देखा जाएगा।
साढ़े तीन करोड़ रुपये मिले
संस्थान को पहले चरण के लिए केंद्र सरकार के डिपार्टमेंट आफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (डीएसटी) से साढ़े तीन करोड़ रुपये मिल गए हैं। बाकी की राशि रेलवे की ओर से आइआइटी और अनुसंधान अभिकल्प एवं मानक संगठन (आरडीएसओ) को मिलेगी। आरडीएसओ रेल मंत्रालय के अधीन आता है।
कचरे और बायोमॉस से होगा तैयार
मेथनॉल को घर से निकलने वाले कचरे और बायोमॉस से तैयार किया जाएगा। सरकार लखनऊ में निजी कंपनी के सहयोग के बायोमॉस प्लांट लगाने जा रही है। यह देश का पहला प्लांट होगा। एक लीटर मेथनॉल की कीमत करीब 23 रुपये है। नए इंजन को चलाने के लिए 85 फीसद मेथनॉल और 15 फीसद डीजल का प्रयोग किया जाएगा। विशेषज्ञों के मुताबिक मेथनॉल की ऊर्जा डीजल से आधी होती है। जहां एक लीटर डीजल का प्रयोग होता है, वहां दो लीटर मेथनॉल की आवश्यकता रहती है।
डीएमई की भी टेस्टिंग जारी
आइआइटी के विशेषज्ञ डाईमिथाइल ईथर (डीएमई) को डीजल के विकल्प के तौर पर देख रहे हैं। इसमें कंबशन के बाद बिल्कुल भी पार्टिकुलेट मैटर नहीं निकलते हैं। यह आसानी से गैस के रूप में परिवर्तित हो जाता है, जिससे एलपीजी की तरह खाना बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है। आइआइटी के मैकेनिक इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. अविनाश कुमार अग्रवाल कहते हैं कि डीजल के विकल्प के रूप में मेथनॉल बेहतर ईंधन है। रेलवे और आइआइटी की ओर से मिलकर तकनीक विकसित की जा रही है। मेथनॉल चलित इंजन से प्रदूषण न के बराबर होता है।