रंगों की फुहार के साथ लड़ते पतंगों के 'पेंच'
जागरण संवाददाता कन्नौज बसंत पंचमी पर पतंगबाजी का प्रचलन तो देखा है लेकिन इत्र नगरी में होली
जागरण संवाददाता, कन्नौज: बसंत पंचमी पर पतंगबाजी का प्रचलन तो देखा है, लेकिन इत्र नगरी में होली पर रंगों की फुहार के बीच पतंगबाजी परंपरा काफी पुरानी है, जो आज भी बदस्तूर चली आ रही है। इस दिन युवा और बच्चे रंग खेलने के साथ छतों से पतंग उड़ाकर पेंच लड़ाते हैं।
पतंगबाजी राजा-महाराजाओं का शौक रहा है और पुरातन काल से पतंग उड़ाने और प्रतियोगिताओं का आयोजन होता है। रंगों के त्योहार होली पर पतंगबाजी की परंपरा सिर्फ इत्र नगरी में ही है। यह प्रचलन कब से शुरू हुआ, इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। पहले जो युवा पतंगबाजी करते थे, वह आज बुजुर्ग हो चुके हैं। इस परंपरा को सहेजने का काम पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहा। मकरंदनगर के महेश प्रताप मिश्रा बताते हैं कि पतंगबाजी का शौक सदियों से रहा है, लेकिन होली के त्योहार पर पतंगबाजी कब शुरू हुई, इस बारे में कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है। केवल एक परंपरा के तहत लोग निभाते चले आ रहे हैं। इसी तरह ग्वाल मैदान के वीरेंद्र कुमार ने बताया कि रंगों के साथ पतंगबाजी होने से होली का उल्लास दोगुना हो जाता है। बड़े-बुजुर्ग जहां होली मिलते हैं, वहीं बच्चे और युवा रंग खेलते हुए पतंगबाजी करते हैं। इससे होली के त्यौहार पर चार चांद लग जाते हैं। रात में होती पतंगों की बिक्री
पतंग विक्रेता शिवकुमार बताते हैं कि होली से एक दिन पहले पूर्णिमा की रात को पतंगों की बिक्री होती है। पतंगबाजी के शौकीन युवा रात में ही पतंग, मांझा और चरखी खरीद कर रख लेते हैं। दुकानदार करन कुमार ने बताया कि होली पर चांदतारा, बद्दीपार, गुटकन, लटियाला, गिलहरा, मोदी, ढप्प आदि पतंगों की बंपर बिक्री होती है। इस दिन मुस्लिम युवा भी जमकर पतंगबाजी करते हैं।