किसानों के दम पर हिमाचल में बिखरेगी इत्र की खुशबू
जागरण संवाददाता, कन्नौज : इत्र नगरी के रूप में भी विख्यात है कन्नौज। फूलों की खेती तो अन्य
जागरण संवाददाता, कन्नौज : इत्र नगरी के रूप में भी विख्यात है कन्नौज। फूलों की खेती तो अन्य राज्यों में भी होती है लेकिन इत्र बनाने की विधि इस जिले जैसी कहीं नही दिखती। देश-विदेश के विशेषज्ञ यहां प्रशिक्षण लेने आते हैं, इत्र बनाने की बारीकियां सीखने आते हैं। इसी संदर्भ में, कन्नौज के प्राकृतिक इत्र निर्माण की परंपरा को अब हिमाचल प्रदेश तक ले जाने की कवायद की जा रही है। वहां फूलों की खेती करने वाले किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए विशेषज्ञों द्वारा भूमिका बनाई जा रही है। जी हां, वहां से आए वैज्ञानिकों के दल ने कन्नौज स्थित सुगंध एवं सुरस विकास केंद्र में एक सप्ताह तक खुशबू निर्माण की बारीकी सीखी। शनिवार को प्रशिक्षण समापन के बाद केंद्र के अफसरों ने वैज्ञानिकों को कारोबारी संबंध मजबूत बनाने को लेकर सुझाव दिए। इससे जिले के कारोबारियों को भी नया बाजार मिलने की आस जगी है।
एफएफडीसी के प्रधान निदेशक शक्ति विनय शुक्ल, सहायक निदेशक एपी ¨सह सेंगर, उप निदेशक नदीम अकबर की मौजूदगी में केंद्र के वैज्ञानिकों ने इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन बायो रिसोर्स टेक्नोलॉजी (आइएचबीटी) पालमपुर हिमाचल प्रदेश के 12 वैज्ञानिकों को एक सप्ताह तक प्रशिक्षण दिया। वैज्ञानिकों को नए उत्पादों के निर्माण, अरोमा मिशन से जुड़ी बारीकियां समझाने के साथ कारोबारी तरीके, प्राकृतिक इत्र की पहचान करने के गुर सिखाए गए। अब यह वैज्ञानिक प्रशिक्षण के तौर-तरीके सीखने के बाद हिमाचल प्रदेश में नए विशेषज्ञ तैयार करेंगे। वहां पर गेंदा, गुलाब, लैवेंडर से सुगंध बनाने की बारीकियां सभी तक पहुंचाएंगे। इसके साथ किसानों को सुगंधित पौधों की खेती को लेकर भी जागरूक करेंगे।
जल्द जाएगा एफएफडीसी का दल
एफएफडीसी के प्रधान निदेशक ने बताया कि केंद्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) गिरिराज ¨सह की संस्तुति के बाद समझौता कर वहां के वैज्ञानिकों को प्रशिक्षण देने की शुरुआत हुई है। निकट भविष्य में अलग-अलग चरण में वैज्ञानिकों की टीमें यहां पर आएंगी। इसके बाद केंद्र के विशिष्ट वैज्ञानिकों का दल हिमाचल प्रदेश का दौरा करेगा। इसमें वहां के प्रगतिशील किसानों को सुगंध की खेती की बारीकी सिखाई जाएगी। इससे धीरे-धीरे हर क्षेत्र में किसानों तक जानकारी पहुंचेगी। कुछ दिन बाद प्रशिक्षित किसानों व वैज्ञानिकों की मदद लेकर क्लस्टर बनाने पर भी काम होगा। इसका सीधा फायदा हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश समेत अन्य जगहों के कारोबारियों व किसानों को होगा।