कन्नौज के लाल पंकज दुबे को मिली शहादत
जागरण संवाददाता कन्नौज कश्मीर घाटी में 23 मार्च को सर्च ऑपरेशन के दौरान आतंकियों की
जागरण संवाददाता, कन्नौज : कश्मीर घाटी में 23 मार्च को सर्च ऑपरेशन के दौरान आतंकियों की गोली से घायल हुए जिले के बहादुर जवान पंकज दुबे ने गुरुवार को अंतिम सांस ली। 12 दिन तक जिदगी-मौत से संघर्ष करने के बाद पंकज दुबे को शहादत मिली तो पूरे जिले में शोक की लहर दौड़ गई।
सदर कोतवाली क्षेत्र के ग्राम गंगधरापुर निवासी शांतिस्वरूप दुबे के 22 वर्षीय पुत्र पंकज दुबे भारतीय सेना की आर्टिलरी कोर में रेडियो ऑपरेटर के पद पर कश्मीर घाटी के तंगधार सेक्टर में तैनात थे। 23 मार्च की सुबह चार बजे के करीब उनके भाई जवाहरलाल दुबे को जेसीओ (जूनियर कमीशंड आफिसर) ने सूचना दी कि रात में चले सर्च ऑपरेशन में पंकज आतंकियों की गोली से घायल हो गए। गोली सिर में लगी थी। इसके बाद ऊधमपुर के कमांड हॉस्पिटल में उनका ऑपरेशन किया गया और उनकी हालत में सुधार हो गया था। गुरुवार शाम को जिदगी-मौत से संघर्ष करते हुए पंकज ने अंतिम सांस ली। यूनिट से उनकी शहादत की सूचना मिलते ही परिजनों में कोहराम मच गया।
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दो दिन पहले ही लौटे भाई
शहीद पंकज दुबे के बड़े भाई रामू दुबे ने बताया कि दो दिन पहले ही भाई से मिलकर श्रीनगर से लौटे थे। उस समय तक उनकी हालत में सुधार था। शुक्रवार को वह फिर कमांड हॉस्पिटल जाने वाले थे कि गुरुवार को बड़े भाई जवाहरलाल दुबे के मोबाइल पर शहादत की सूचना मिली। भाई ने बताया कि अभी पार्थिव शरीर आने के बारे में सूचना नहीं दी गई है।
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दिसंबर में छुट्टी पर घर आए थे पंकज
पंकज दुबे अगस्त 2015 में कानपुर से सेना में भर्ती हुए थे। मार्च 2017 में उन्हें ट्रेनिग पर भेजा गया। नवंबर 2018 में उसकी तैनाती रेडियो आपरेटर के पद पर कश्मीर घाटी के तंगधार इलाके में हुई थी। दिसंबर में वह 55 दिन की छुट्टी लेकर घर आए थे और 31 जनवरी को छुट्टी काटकर वापस गए थे। गोली लगने से एक दिन पहले ही मां और भाई से फोन पर बात की थी। शहादत की जानकारी मिलते ही दिव्यांग पिता शांतिस्वरूप दुबे, दिव्यांग भाई जवाहर लाल दुबे, भाई रामू दुबे, बहन रुचि दुबे व्याकुल हो गई। शहीद पंकज दुबे की अभी शादी नहीं हुई थी।