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गंगा सफाई में खेल, नमामि गंगे फेल

यहां गंगा स्वच्छता की कवायद फेल है। योजनाओं के नाम पर सिर्फ खेल होता आया है। अब तक नदी के

By JagranEdited By: Published: Thu, 15 Nov 2018 11:36 PM (IST)Updated: Thu, 15 Nov 2018 11:36 PM (IST)
गंगा सफाई में खेल, नमामि गंगे फेल
गंगा सफाई में खेल, नमामि गंगे फेल

यहां गंगा स्वच्छता की कवायद फेल है। योजनाओं के नाम पर सिर्फ खेल होता आया है। अब तक नदी के बजाय कागजों पर गंगा की सफाई हुई है। इसलिए घाट के आसपास गंदगी और शहर का गंगा पानी गिरने से गंगा मैली हैं। यूं तो गंगा का अस्तित्व बचाने के लिए केंद्र सरकार की 32 परियोजनाएं हैं। जिला हाईप्रायरिटी में नहीं है इसलिए नमामि गंगे व गंगा स्वच्छता अभियान की जिम्मेदारी है। सफाई के नाम पर जैसे-जैसे रुपये खर्च हुए वैसे-वैसे गंगा घाट छोड़ चली हैं। आलम यह है कि जिम्मेदार विभाग व अफसर नहीं हैं। इसलिए बजट व कार्ययोजना की जानकारी किसी को नहीं है। गंगा के रखवाले अब झांकने आए हैं। जागरण संवाददाता, कन्नौज : बड़े सौभाग्य की बात है यहां गंगा के साथ करोड़ों रुपये का सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट भी बना है। लेकिन इस्तेमाल नहीं करते हैं। जल निगम ने जलालपुर अमरा में 2017 में लगभग 21 करोड़ रुपये का ट्रीटमेंट प्लांट बनाया था।प्लांट का मकसद गंगा में गिर रहे शहर के सीवर को ट्रीट कर तब छोड़ना है। एकांत में होने के कारण प्लांट खानापूरी में चल रहा है। घरों के कनेक्शन तक नहीं हो पाए हैं। निर्माण भी कई जगह अधूरा है। इसलिए सीवर का पानी शहर के सबसे बड़े पाटा नाला, टंपी नाला व अड़ंगापुर नाला काली नदी में गिरता है। गंदगी से बचाने के लिए तीनों नाले नमामि गंगे में शामिल कर प्लांट से जोड़े गए। लेकिन नाले का 30 से 40 फीसद ही पानी प्लांट में लेते हैं। बाकी पानी सीधे काली नदी के सहारे गंगा में जाता है। पाटा नाला में छोड़ देते साफ पानी

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सीवरेज प्लांट के पास से पाटा नाला गुजरा है। यहां पाटा नाला व अड़ंगापुर नाले का पानी पं¨पग सेट में आटोमेटिक मशीनों में साफ करते हैं। इसके बाद पानी में घुलित आक्सीजन व क्लोरीन मिलाते हैं। फिर साफ पानी पाटा नाला में छोड़ देते हैं। प्लांट के पास देखा जाए तो पाटा नाला में एक तरफ गंदा तो दूसरी तरफ साफ पानी काली नदी में जाता है। और काली नदी से यह गंदा पानी मेहंदीघाट पर गंगा में मिलता है। 13 मिलियन लीटर क्षमता

सीवरेज प्लांट की क्षमता रोजाना 13 मिलियन लीटर की है। इसके बाद भी क्षमता का इस्तेमाल नहीं होता है। प्लांट जल निगम के अधीन है। गंगा प्रदूषण नियंत्रण का कोई कार्यालय नहीं है। गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई प्रथम कानपुर परिक्षेत्र से खानापूरी होती है। प्लांट भी शहर से काफी दूर बना है। चार पहिया वाहन पहुंचने के लिए रास्ता नहीं है। इसलिए कोई नहीं जाता है। बकाया बिल, काट दी जाती बिजली

जल निगम कार्यालयों के साथ प्लांट भी बिजली विभाग का बकायेदार है। लाखों रुपये का बिल बकाया है। हाल में प्लांट का कनेक्शन काटा जा चुका है। जबकि अक्सर बिजली की समस्या व तकनीकी खराबी के कारण प्लांट बंद रहता है। या फिर किसी अधिकारी के पहुंचने पर प्लांट चलता है। --

24 लाख रुपये बिजली बिल बकाया होने के कारण कनेक्शन काट दिया गया। इससे कुछ दिन प्लांट बंद रहा। बिल की कार्यवाही शासन से होती है। जो चल रही है। पानी पं¨पग स्टेशन से ही साफ होकर जाता है।

-पंकज यादव, परियोजना प्रबंधक, गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई प्रथम, कानपुर

तीनों नाले का पानी साफ कर काली नदी में छोड़ते हैं। प्लांट 24 घंटे चालू रहता है। किसी तरह की गड़बड़ी नहीं है।

-प्रशांत कनौजिया, अवर अभियंता, जल निगम


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