मेरी मेहनत खरीदो, मेरे घर भी है दीपावली
जागरण टीम: एक समय था, जब दीपावली पर लोगों के घर मिट्टी के दीयों से न सिर्फ रोशन होते थे,
जागरण टीम: एक समय था, जब दीपावली पर लोगों के घर मिट्टी के दीयों से न सिर्फ रोशन होते थे, बल्कि मिट्टी की सोंधी खुशबू से महकते भी थे। मगर भारत के बाजार में ड्रैगन ने सेंध क्या लगाई कि कुम्हारों के घरों की रोशनी निगल ली। कुम्हार फिर से आस पाले हुए हैं कि कोई उनकी मेहनत खरीद ले, ताकि उनके घर भी रोशन हो सकें।
छिबरामऊ के गांव अकबरपुर निवासी अमित अपने साथ करीब दो से तीन हजार दीये बिक्री के लिए लेकर आया था। वह इन रुपयों से खरीदारी करना चाहता है। वहीं मोहल्ला बनवारी नगर निवासी सोनी व स्वाती दोनों बहनें हैं। वह शाम तक करीब एक हजार दीये बेचने की आस में बैंठी थीं। ये बच्चे तो बानगी थे, इसी तरह कन्नौज, तिर्वा, गुरसहायगंज में भी बच्चे दीये बेचते नजर आए। ये लोग आने-जाने वाले लोगों को टोके बगैर ऐसे देख रहे थे, जैसे उनकी आंखें लोगों से उनकी मेहनत खरीदने की इल्जिता कर रहीं हों। ड्रैगन पर भारी पड़े देशी दिये
छिबरामऊ : धनतेरस से ही दीपावली की खरीदारी शुरू हो जाती है। ऐसे में सोमवार को लोगों की भीड़ उमड़ी। इस बार पिछले वर्षो की अपेक्षा बाजार का रुख बदला था। लोग स्वदेशी चीजों को खरीदने में अधिक रुचि दिखा रहे थे। इसका सबसे अधिक प्रभाव मिट्टी के दीपक पर पड़ा। लोगों ने 50 से 60 रुपये में मिट्टी के 100 दिए खरीदे। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों से दीये बनाकर लाए लोगों के चेहरों पर भी मुस्कान छाई रही।