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कन्नौज में रहे थे बुंदेली वीर आल्हा-ऊदल

जागरण संवाददाता, कन्नौज : महोबा व कन्नौज से लेकर दिल्ली तक चर्चा में रहे बुंदेली वीर आल्हा-ऊ

By JagranEdited By: Published: Sat, 08 Sep 2018 07:52 PM (IST)Updated: Sat, 08 Sep 2018 07:52 PM (IST)
कन्नौज में रहे थे बुंदेली वीर आल्हा-ऊदल
कन्नौज में रहे थे बुंदेली वीर आल्हा-ऊदल

जागरण संवाददाता, कन्नौज : महोबा व कन्नौज से लेकर दिल्ली तक चर्चा में रहे बुंदेली वीर आल्हा-ऊदल की गाथाओं के साथ उनकी स्मृतियां आज जमींदोज हो चुकी हैं। 12वीं शताब्दी में आल्हा-ऊदल की वीरगाथाओं का जिक्र है। दोनों भाई महोबा (बुंदेलखंड) चंदेल राजघराने के आखिरी शासक परमाल देव चंदेल की सेना के वीर योद्धा थे। कुछ बातों को लेकर आल्हा के मामा माहील ने परमाल देव को उन दोनों वीरों के खिलाफ भड़का दिया था। इसके बाद दोनों वीरों को परमाल देव ने राज्य से निकाल दिया। इसके बाद कन्नौज के राजा जयचंद के भतीजे लाखन से गहरी मित्रता होने पर यहां के रिजगिर (राजगृह) में पनाह दी थी।

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आल्हा को सेनापति का सम्मान

रिजगिर में बसने के बाद राजा जयचंद ने आल्हा को सेनापति का सम्मान दिया था। दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान ने महोबा पर चढ़ाई की तो दोनों वीर योद्धाओं ने हमीरपुर की बेतवा नदी तट पर मोर्चा संभाल मात दी थी। इस कारण महोबा राज्य कन्नौज व दिल्ली से आंखें मिलाने में कभी हिचका नहीं था। आल्हा खंड काव्य लोक गायन में 52 लड़ाई लिखी हैं।

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टीले में सिमटा 20 एकड़ का किला

बुंदेली आल्हा-ऊदल की वीर गाथाओं के साथ आज उनका कन्नौज सदर के रिजगिर में 20 एकड़ से ज्यादा जगह में बना किला पांच से छह एकड़ जमीन में सिमट कर टीले में तब्दील हो चुका है। किले के ऊपर खेत व मकान बने हैं। अवशेष भी अवैध खनन से मिट रहे हैं। यहां सुरंग भी दिखती है। संस्कृति, पर्यटन व लोक परंपराओं को बचाने की तमाम कवायद सिर्फ कागजों पर चली। प्रशासन व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने धरोहर बचाने की पहल नहीं की है।

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राजगृह में राजा बलि ने किया 100 अश्वमेघ यज्ञ

वरिष्ठ राम नाथ गुप्ता बताते हैं कि पौराणिक काल में रिजगिर का नाम राजगृह फिर राजगीर पड़ा। राजगृह में इंद्रासन मांगने के लिए राजा बलि ने 100 अश्वमेघ यज्ञ किया। इससे इंद्रलोक हिला तो देवताओं के आग्रह पर भगवान विष्णु वामन रूप धारण कर राजगृह आए थे। वहां राजा बलि से उल्टा तीन पग जमीन मांगी थी। राजा की स्वीकृति पर भगवान ने पहले पग में आकाश व दूसरे पग में पृथ्वी लोक नापा था। तीसरे पग में कुछ नहीं बचा तो राजा बलि ने भगवान को निराश न कर उनके चरणों में अपना सिर झुकाया था। इस पर भगवान विष्णु ने तीसरे पग में पाताल नाप राजा बलि को पाताल लोक का राजा बनाकर भेज दिया था।


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