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6 घण्टे में ही गायब हो गया विवादित ढाँचा

फोटो : 3 बीकेएस 106 ::: - 6 दिसम्बर को विवादित ढाँचा विध्वंस की घटना के प्रत्यक्षदर्शी हैं भाजपा

By JagranEdited By: Published: Tue, 04 Aug 2020 05:30 PM (IST)Updated: Tue, 04 Aug 2020 07:12 PM (IST)
6 घण्टे में ही गायब हो गया विवादित ढाँचा
6 घण्टे में ही गायब हो गया विवादित ढाँचा

फोटो : 3 बीकेएस 106

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- 6 दिसम्बर को विवादित ढाँचा विध्वंस की घटना के प्रत्यक्षदर्शी हैं भाजपा नेता संजीव बुधौलिया

- कहा- साध्वी ऋतम्भरा की हुंकार ने दिलाया जोश

झाँसी : भारतीय जनता युवा मोर्चा के पूर्व ़िजलाध्यक्ष आवास विकास में रहने वाले संजीव बुधौलिया 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में घटी घटना के प्रत्यक्ष गवाह हैं। संजीव बताते हैं कि अयोध्या में राम मन्दिर निर्माण के लिए जोश था। 4 दिसम्बर 1992 को ताऊ राम प्रकाश बुधौलिया, मामा उमेश चन्द उपाध्याय, प्रमोद निरंजन, पवन कौशिक, अरविन्द कौशल समेत 15 लोगों के साथ वह भी अयोध्या के लिए रवाना हो गए। 5 दिसम्बर को जब अयोध्या पहुँचे तो वहाँ ह़जारों कारसेवक डेरा डाले थे। 6 दिसम्बर को प्रात: 9 विवादित ढाँचे से कुछ दूरी पर सभा शुरू हो गई। मंच पर पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष भाजपा लाल कृष्ण आडवाणी, विहिप के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीष चन्द दीक्षित, संगठन मन्त्री अशोक सिंहल, उमा भारती, विनय कटिया व साध्वी ऋतम्भरा थे। वक्ता ओजस्वी भाषण दे रहे थे, लेकिन अधिकांश इस पूरी कारसेवा को सांकेतिक रखने की कह रहे थे। इसमें कहा गया कि कारसेवक सरयू नदी से एक मुट्ठी बालू लाकर मन्दिर पर रखेंगे और वापस लौट जाएंगे। इससे लाखों कारसेवक निराश हो गए, लेकिन इसके बाद साध्वी ऋतम्भरा ने माइक सँभाला और ऐसा उद्बोधन दिया कि कारसेवकों का जोश आसमान पर पहुँच गया और विवादित ढाँचा ध्वस्त करने का निर्णय लिया। 12 बजे कारसेवक ढाँचे पर चढ़ गए और तोड़ना शुरू कर दिया। शाम 6 बजे तक ढाँचे के साथ मलबा भी ़जमीन से सा़फ कर दिया गया था।

स्थानीय लोगों ने उपलब्ध कराए गैंती, फावड़ा

बिपिन बिहारी इण्टर कॉलिज के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष व भाजपा नेता संजीव बुधौलिया ने बताया कि कारसेवक अपने साथ कोई सामान नहीं ले गए थे। स्थानीय लोगों ने ही फावड़ा, गैंती, कुदाल उपलब्ध कराए, जिससे ढाँचे को तोड़ा गया।

रस्सी से बाँधकर ढहाया गया था ढाँचा

संजीव बताते हैं कि ढाँचे की दीवार काफी मजबूत थी, लेकिन कुछ कारसेवकों ने इसे तोड़ने का तरीका पहले ही सोच रखा था। ढाँचे में जगह-जगह सुराख कर रस्सी बाँधी गई, जिसे ह़जारों लोगों ने खींचा और ढाँचा ध्वस्त हो गया। उन्होंने बताया कि 2-3 बड़े पेड़ अड़चन कर रहे थे। कारसेवकों ने इन पेड़ों को भी रस्सी से बाँधकर जड़ से उखाड़ दिया।

ईट और मलबा भर ले गए कारसेवक

संजीव बुधौलिया ने बताया कि ढाँचा ध्वस्त होते ही मंच से एलान किया गया कि यहाँ मलबा नहीं रहना चाहिए, इसलिए कारसेवक मलबा व ईट साथ लेकर जाएं। इसके बाद कारसेवकों ने एक घण्टे में ही मलबा भी सा़फ कर दिया। इसके बाद विवादित स्थल पर आधा घण्टे तक रामसेवकों ने झूमकर नृत्य किया, जिसमें ह़जारों महिलाएं भी शामिल थीं।

हाथ से ही बना दिया मन्दिर

विवादित ढाँचा ध्वस्त होने के बाद माइक से उद्घोणना होने लगा कि कारसेवक वापस लौट जाएं, क्योंकि कभी भी गोली चल सकती है। दरअसल, विवादित ढाँचा ध्वस्त होने के बाद शाम को तत्कालीन मुख्यमन्त्री कल्याण सिंह ने इस्तीफा दे दिया था और सरकार गिर गई थी। इस उद्घोषणा के बाद भी रामभक्त नहीं माने और 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कारसेवक पुरम् में मसाला बनाया गया। कतार लगाकर स्थल तक लाया गया, जहाँ हाथ से ही लगभग 7 फीट ऊँची दीवार खड़ी कर मूर्ति की स्थापना कर दी गई। छत पर टेण्ट लगा दिया गया। इसके बाद लगभग 28 साल भगवान राम इसी टेण्ट में रहे।

जाते-जाते त्रिशूल भेंट कर गए 2 कारसेवक

संजीव बुधौलिया ने बताया कि 1990 में वह राजकीय इण्टर कॉलिज में 12वीं के छात्र थे और हॉस्टल में रहते थे। शाम को शाखा लगाते थे। कॉलिज को अस्थाई जेल बनाया तो ह़जारों कारसेवक आ गए। इनमें से कई कारसेवक शाखा में आने लगे। इनमें गुजरात के करुणेत पटेल व विश्वास जोशी भी थे। दोनों कारसेवक अति उत्साही थे और विभिन्न तरह की योजना बना रहे थे। कई और कारसेवक भी हथियारों से लैस थे। जेल से रिहाई होने पर यह कारसेवक उन्हें त्रिशूल उपहार के रूप में दे गए। इनमें से एक कारसेवक बाद में गुजरात में विधायक भी चुना गया।

फाइल : राजेश शर्मा

4 अगस्त 2020

4.15 बजे


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