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काँच ही बाँस के बहँगिया, बहँगी लचकत जाए

फोटो :: 12 बीके 103 व 104 कहाँ से सूरज के जन्मीया, कहाँ भइले अन्जोर छठ पूजा में गूँजेंगे छठ मईय

By JagranEdited By: Published: Tue, 13 Nov 2018 01:08 AM (IST)Updated: Tue, 13 Nov 2018 01:08 AM (IST)
काँच ही बाँस के बहँगिया, बहँगी लचकत जाए
काँच ही बाँस के बहँगिया, बहँगी लचकत जाए

फोटो :: 12 बीके 103 व 104

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कहाँ से सूरज के जन्मीया, कहाँ भइले अन्जोर

छठ पूजा में गूँजेंगे छठ मईया के गाने।।

झाँसी : छठ पूजा कार्तिक माह में मनाया जाने वाला बेहद महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व लोगों की लोक आस्था से जुड़ा हुआ है। इसकी तैयारी महीने भर पहले से ही शुरू हो जाती है। कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली के बाद मनाये जाने वाले इस चार दिवसीय पर्व की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है।

आस्था से जुड़ा पर्व

इस व्रत में सूर्योपासना करने का सबसे ज्यादा महत्व है। नदी में खड़े होकर उगते व डूबते हुए सूर्य को अ‌र्घ्य दिया जाता है। यह पर्व बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। इस दिन देश के कोने- कोने में रहन रहे बिहारी लोग घट को सजाने में महीने भर से लग जाते हैं, जिससे कि घाट पर कोई घास न रहे। उसे गोबर से लीपते हैं फिर पूजा से दिन गन्ने से सजाते हैं। बड़ा ही भव्य नजारा देखते को मिलता है इस दिन घाटों का।

यह पर्व वर्ष में दो बाद मनाया जाता है। पहला चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाने वाला पर्व जिसे चैती छठ कहते हैं व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाला छठ व्रत, जिसे कार्तिकी छठ कहा जाता है। व्रताधारी महिलाएं अपने घर की पारिवारिक सुख समृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिये व्रत रखती हैं। छठ पूजा को लेकर अनेक कथाएं प्रचलित हैं। इस दिन महिलाएं जिस दिन से व्रत रखना शुरू करती हैं, पहले दिन से ही घर में कोई भी काम कर रही हों, छठ के गीत अवश्य गाती हैं।

काँच ही बाँस के बहँगिया, बहँगी लचकत जाए।

छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है, जिसमें व्रतधारी महिलाएं लगातार 36 घण्टे का व्रत रखती हैं। इस दौरान वह पानी भी ग्रहण नहीं करती हैं। इस व्रत को चार रूपों में दर्शाया गया है। पहला नहाय खाय- पहले दिन महिलाएं कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय खाय के रूप में मनाती हैं। सबसे पहले घर की साफ- सफाई व पूजा के स्थान को पवित्र किया जाता है। इसके बाद व्रतधारी महिला स्नान करके शुद्ध शाकाहारी भोजन करके व्रत की शुरू करती है। उसके बाद ही घर के सभी सदस्य भोजन ग्रहण करते हैं। संध्या को सेंधा नमक, लौकी कद्दू और चने की दाल के साथ शुद्ध घी का उपयोग किया जाता है। दूसरा है- खरना। इसमें पूरा दिन निर्जला व्रत रखते हैं। इसमें व्रतधारी दिनभर उपवास रखने के बाद शाम को भोजन में गन्ने के रस में चावल की खीर दूध डालकर बनाई जाती है।

संध्या अ‌र्घ्य तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को छठ का प्रसाद बनाया जात है। जिसमें प्रसाद में मुख्य ठैकुआ होता है और फल के साथ सभी सब़्िजयां जो भी आपको बजार मिल जाएं, उसे प्रसाद के रूप में शामिल किया जाता है। शाम को अ‌र्घ्य देने के लिए पूरी तैयारी की जाती है सूप व डलिये में प्रसाद लगाया जाता है तथा नदी के किनारे सभी इकट्ठा होकर जल और दूध से अ‌र्घ्य देते है। चौथे दिन पुन: शाम जैसी प्रक्रिया करते हैं। ताजे फल- फूलों से डलिया सजाकर उगते हुए सूर्य को अ‌र्घ्य देते हैं। फिर पूजा सम्पन्न हो जाने के पश्चात गाँव मोहल्ले में प्रसाद बाँटा जाता है। कहते हैं कि छठ के प्रसाद को जितना बाँटा जाए, उतना ही फलदायी होता है। साथ ही व्रतधारी अपना व्रत ठेकुये से ही खोलती है।

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आरोग्य देवता के रूप में जाने जाते है सूर्य देवता

पौराणिक काल में सूर्य देवता को आरोग्य देवता माना जाता था। कहते हैं कि सूर्य की किरणों में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता है, जिसमें कुष्ठ रोग से लेकर सभी रोग दूर हो जाते हैं। सूर्य की पहली किरण से कई रोगों से मुक्ति मिल जाती है।

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इन्होंने कहा ::

सुमन सेंगर का कहना है कि इसमें सबसे ज्यादा अगर ध्यान देने की ़जरूरत है, तो यह है कि व्रताधारी का स्थान व पूजा करने का स्थान स्वच्छ होना चाहिए और वस्त्र भी साफ- सुथरा होना चाहिए। उन्होंने बताया कि छठ का व्रत करने वाली स्त्रियों को काले वस्त्र नहीं पहनने चाहिए। अधिकतर महिलाएं पीले वस्त्र पहनती हैं, क्योंकि वह बहुत शुभ माना जाता है। इन्होंने यह भी बताया कि बाँस की डलिया और बाँस का सूपा बहुत ़जरूरी होता है। डलिया में सभी फल और सब़्िजयाँ व सूपा से सूरज देवता को अ‌र्घ्य दिया जाता है, जो कि अ‌र्घ्य पण्डित के द्वारा दिया जाता है। सुमन का मानना है कि यह व्रत करने से सभी मनोकामनाएं ़जरूर पूरी होती हैं। उन्होंने बताया कि छठ के दिन महिलाएं जो भी मन्नतें माँगती हैं और उनकी मन्नतें पूरी हो जाने पर वे कोशी भरती हैं, जिसमें मिट्टी के हाथी और सारे फल- सब़्िजयाँ रखकर रात भर जागरण किया जाता है छठ पूजा के गीत गाए जाते हैं। साथ ही अखण्ड ज्योत भी जलाई जाती है। यह भी बताया कि व्रतधारी महिला व्रत के दौरान बिस्तर पर नहीं, ़जमीन पर चादर बिछा कर सोती हैं। उसके खाने पीने से लेकर वस्त्र तक साफ-सुथरे होने चाहिए। इस व्रत में अगर जरा सी भी चूक हो गई, तो छठ मईया क्रोधित हो जाती हैं। इसलिए साफ-सफाई का विशेष ध्यान देना होता है।

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ऊ जे करेवाले फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए।

मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।

ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।।

सुमन बताती हैं कि इस व्रत को पहली बार करने वाली स्त्रियों को बहुत से विधि- विधान को समझकर ही व्रत रखना चाहिए क्योंकि इसमें किसी भी पक्षी का झूठा फल या फिर किसी भी जानवर का झूठा किया हुआ अनाज का प्रसाद नहीं चढ़ाया जाता सकता है। तभी यह गीत गया है। छठ पूजा के हर एक गीत विधि को ध्यान में रखकर बनाया गया है।

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हर दिन ताजे फल चढ़ाएं

सुमन सेंगर ने बताया कि जो पहले दिन प्रसाद चढ़ाया था, वो दोबारा नहीं चढ़ाया जाता है।

नाक से माथे तक सिन्दूर लगाने की है मान्यता

उन्होंने बताया कि खासतौर पर छठ पर नाक से माथे तक सिन्दूर अवश्य महिलाएं लगाती हैं, जिसे जोड़ा सिन्दूर कहते हैं।

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विक्रेता का कहना है

मक्खो वंशकार का कहना है कि शादियों के साथ छठ में भी डलिया ज्यादा ख़्ारीदे जाते है। उन्होंने बताया कि डलिया छोटे से लेकर बड़े आकार में उपलब्ध है, जिसके मूल्य 40 रुपए से लेकर 200 तक और सूप 140 रुपए तक मिल जाता है।

फाइल : पिंकी मिश्रा

दिनांक : 12 नवम्बर 2018

समय : 6:00


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