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धोखा है रासायनिक और जैविक खेती : पालेकर

झाँसी : ़जीरो बजट खेती के प्रणेता और 'कृषि ऋषि' के नाम से विख्यात पद्मश्री सुभाष पालेकर ने आज यहाँ प

By JagranEdited By: Published: Fri, 21 Sep 2018 01:16 AM (IST)Updated: Fri, 21 Sep 2018 01:16 AM (IST)
धोखा है रासायनिक और जैविक खेती : पालेकर
धोखा है रासायनिक और जैविक खेती : पालेकर

झाँसी : ़जीरो बजट खेती के प्रणेता और 'कृषि ऋषि' के नाम से विख्यात पद्मश्री सुभाष पालेकर ने आज यहाँ पत्रकारों के साथ बात करते हुए रासायनिक और जैविक तौर-तरीकों से की जाने वाली खेती को धोखा बताते हुए इसे किसानों का असल गुनहगार बताया। उन्होंने कहा- 'किसानों की आय दोगुनी करने की क्षमता न तो इन पद्धतियों में है और न ही परम्परागत खेती में, जबकि प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी का प्रमुख अजेण्डा वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करना है।' वो यहाँ 21 से 26 सितम्बर तक रानी लक्ष्मीबाई पैरामेडिकल कॉलिज में होने वाले शून्य लागत प्राकृतिक कृषि प्रशिक्षण शिविर में प्रशिक्षण देने आए हुए हैं।

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उन्होंने कहा कि अगस्त 2017 को प्रधानमन्त्री मोदी ने जब वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य तय किया, तो अधिकांश की समझ में ही नहीं आया कि यह होगा कैसे? रासायनिक उर्वरक के माध्यम से की जाने वाली खेती में बढ़ती लागत के कारण यह सम्भव ही नहीं। जैविक तरीके से की जाने वाली खेती में भी इस समस्या का निदान नहीं। सुभाष जी कहते हैं- 'रासायनिक खेती के जाल से बचने के लिए जैविक खेती अपनाना तो और भी ख़्ातरनाक है। इसमें लागत बढ़ती है, उत्पादन नहीं।' कुछ ऐसी ही स्थिति परम्परागत खेती की है। परम्परागत खेती, यानी गोबर से तैयार खाद को खेत में डालकर अनाज उपजाना। परम्परागत खेती के लिए किसान जो उपाय करते हैं, उससे उनका खर्च बढ़ना स्वाभाविक है। उन्होंने उदाहरण दिया- 'एक एकड़ खेत के लिए आमतौर पर 18 से 20 बैलगाड़ी कम्पोस्ट खाद इस्तेमाल किया जाता है, और इसके लिए कम से कम 10 जानवर तो पालने ही होंगे। और इससे उत्पादन तो बढ़ने वाला नहीं। किसानों की आय दोगुनी करने का एकमात्र उपाय शून्य लागत प्राकृतिक खेती है। नीति आयोग ने इस पद्धति को स्वीकार किया है और राज्य सरकारों से कहा है कि वो इस पर काम करें।'

हिमाचल के राज्यपाल ने दिखायी राह

सुभाष जी बताते हैं कि तमाम सरकारी-गैर सरकारी संगठनों ने जब किसानों की आय दोगुनी करने के उपाय सुझाने से हाथ खड़े कर दिए, तब हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने राष्ट्रपति के साथ राज्यपालों की हुई एक बैठक ़जीरो बजट खेती के बारे में जानकारी दी। बताते चलें कि हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल कुरुक्षेत्र में अपनी ़जमीन पर 5 साल से सुभाष पालेकर द्वारा विकसित की गई ़जीरो बजट खेती कर रहे हैं। यह जानकारी नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार को हुई, तो उन्होंने कृषि विभाग के साथ ही अन्य सरकारी महकमों को मौके पर जाकर स्थिति परखने को कहा। इसके बाद नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने कृषि विभाग के विशेषज्ञों की टीम के साथ सुभाष पालेकर से मिले, उनसे समस्या का समाधान पूछा। पूरे दिन चली इस मैराथन बैठक में तमाम विशेषज्ञों ने ़जीरो बजट खेती को चमत्कार की संज्ञा दी। कृषि विभाग ने माना कि इसके अलावा और कोई विकल्प ही नहीं है किसानों की आय दोगुनी करने का। चूँकि कृषि राज्य सरकार का मामला है, इसलिए नीति आयोग ने देश के सभी राज्यों को एक पत्र लिखकर ़जीरो बजट खेती के तौर-तरीके अपनाने को कहा है। इस समय जो 5 राज्य इस पर काम कर रहे हैं, उनमें आन्ध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ और मेघालय शामिल हैं। ़जीरो बजट खेती पर अंग्रे़जी में 18, हिन्दी में 22 और मराठी में 25 किताबें लिखने वाले सुभाष जी ने कहा कि रासायनिक उर्वरक के माध्यम से की जाने वाली खेती बा़जारवाद का नतीजा है। यह विकसित देशों द्वारा फेंका गया जाल है, जिसमें भारत बुरी तरह फँस गया है और किसान बर्बादी की कगार पर पहुँच गए हैं। ऐसे देश रासायनिक खाद के जरिये ़जमीन के उन जीवाणुओं को मार रहे हैं, जो हमारी खेती और उपज के मुख्य आधार हैं। उन्होंने कहा कि किसी के पास इस बात का जवाब नहीं कि जंगल में पेड़-पौधे बिना रासायनिक उर्वरक के कैसे पलते-बढ़ते हैं और खेत बंजर होते चले जा रहे हैं।

कर लो दुनिया मुट्ठी में

सुभाष पालेकर कहते हैं- ग्लोबल वॉर्मिग, खाद्य असुरक्षा जैसी तमाम समस्याओं का समाधान ़जीरो बजट खेती में है। भारत इस पद्धति को अपना कर दुनिया पर राज कर सकता है। रासायनिक उर्वरक की मदद से उपजने वाले अनाज में मिले हानिकारक तत्वों से पूरी दुनिया अवगत है। शून्य लागत खेती को अपनाकर भारत न केवल इस समस्या का समाधान कर सकता है, बल्कि अपना उत्पाद पूरी दुनिया को बेचकर लाभ अर्जित कर सकता है।

फाइल : सुरेन्द्र सिंह

समय : 7.15

20 सितम्बर 2018


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