गुलामी की मानसिकता त्यागे बिना राष्ट्र का पुनर्निर्माण असंभव
प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय सह संयोजक श्रीकांत काटदरजी ने कहा कि गुलामी की मानसिकता त्यागे बिना राष्ट्र का पुनर्निर्माण नहीं किया जा सकता है। यह बातें उन्होंने सोमवार को पूर्वांचल विश्वविद्यालय के महंत अवैधनाथ संगोष्ठी भवन में सोमवार को राष्ट्र के पुनर्निर्माण में बुद्धिधर्मी जनों की भूमिका विषयक व्याख्यानमाला में कही।
जागरण संवाददाता, मल्हनी (जौनपुर): प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय सह संयोजक श्रीकांत काटदरे ने कहा कि गुलामी की मानसिकता त्यागे बिना राष्ट्र का पुनर्निर्माण नहीं किया जा सकता है। यह बातें उन्होंने सोमवार को पूर्वांचल विश्वविद्यालय के महंत अवैधनाथ संगोष्ठी भवन में सोमवार को राष्ट्र के पुनर्निर्माण में बुद्धिधर्मी जनों की भूमिका विषयक व्याख्यानमाला में कही।
उन्होंने कहा कि हमें अपनी राष्ट्रभाषा का अनुसरण कर अपनी शिक्षा पद्धति में बदलाव करना होगा, कहने का मतलब हमारी शिक्षा में हमारी संस्कृति, वेशभूषा और राष्ट्रभाषा की झलक दिखनी चाहिए।
विषय प्रवर्तन करते क्षेत्रीय संगठन मंत्री राम आशीष ने कहा कि भारतीय शिक्षा व्यवस्था के मूल्यों एवं संस्कृति के अध्ययन में गिरावट आई है, इसीलिए शिक्षा के क्षेत्र में द्वंद की स्थिति बनी है। बीएचयू के प्रो.आरएन त्रिपाठी ने कहा कि चरित्र की शिक्षा लिए बिना व्यक्ति के व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास नहीं हो सकता। उनका मानना है कि मानव संक्रमित नहीं मानस संक्रमित हो गया है, इसे रोकना होगा। अध्यक्षीय संबोधन में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.राजाराम यादव ने कहा कि बड़े पदों पर बैठे लोग ऊंचे पद पाने के लिए जब तक बोलने में संकोच करते रहेंगे तब तक प्रज्ञा प्रवाह में बाधा आती रहेगी। उन्मेष प्रज्ञा प्रवाह के अध्यक्ष डा.राधेश्याम सिंह वार्षिक प्रगति आख्या प्रस्तुत की और उदय सिंह ने मंचासीन लोगों का परिचय कराया।
संचालन प्रो.अजय दिवेद्वी ने किया। स्वागत संयोजक प्रो.बीबी तिवारी ने किया।