40 वर्षों से बंद है थाने का रहस्यमयी दरवाजा
आज जब विज्ञान के तरह के चमत्कार हो रहे हैं। 21 वीं सदी में लोग चांद पर बसने की तैयारी कर रहे हैं ऐसे में जौनपुर के मड़ियाहूं सर्किट के नेवढि़या थाने में 40 वर्षों से कायम रहस्य आज भी बरकरार है।
अनिल सिंह
रामपुर (जौनपुर): आज जब विज्ञान के तरह के चमत्कार हो रहे हैं। 21 वीं सदी में लोग चांद पर बसने की तैयारी कर रहे हैं ऐसे में जौनपुर के मड़ियाहूं सर्किट के नेवढि़या थाने में 40 वर्षों से कायम रहस्य आज भी बरकरार है। यह रहस्य आस्था को लेकर है या खौफ, यह आजतक कोई समझ नहीं सका। यहां अनहोनी की आशंका में 40 वर्षों से बंद थाने के एक आफिस का दरवाजा कोई भी दारोगा खोल नहीं सका। पुलिस के अनुसार एक तरफ जहां इस दरवाजे के खुलते ही अप्रिय घटनाएं होने लगती हैं वहीं दूसरी ओर संबंधित थानाध्यक्ष भी दुर्घटना या स्थानांतरण के शिकार हो जाते हैं। यही नहीं आफिस को पीर बाबा का मजार मानकर दरवाजे की पूजा की जाती है और हर गुरुवार को चादर भी चढ़ाया जाता है। मजार मुजारक मुबारक अली ने बताया कि हर वर्ष थाना परिसर में ही उर्स मेले का आयोजन होता है। इस वर्ष 13 मार्च को उर्स मेला होगा। क्या है बंद दरवाजे का रहस्य
1969 में इस थाने का निर्माण कराया गया। थाना परिसर में ही पीर बाबा का मजार था। जहां पर पुलिस का आफिस बनाया गया है। इस आफिस में दो दरवाजे हैं। एक पूर्वी तरफ तो दूसरा पश्चिमी तरफ। पूर्वी दरवाजे के नीचे पीर बाबा के मजार की मान्यता है। 1980 के पहले जब भी पूर्वी दरवाजे को जिसने खोला या तो उसका स्थानांतरण हो गया या वह दुर्घटना का शिकार हो गया। कब क्या हुई घटना
बताया जाता है कि 1978 में तत्कालीन थानाध्यक्ष त्रिवेणी पांडेय द्वारा दरवाजे को खोलवाया गया था। उसी दिन गुतवन बाजार में मेले के दौरान मारपीट में इन्हें गंभीर चोट आ गई। इसके बाद 1978 में ही तत्कालीन थानाध्यक्ष रहे आफताब खां द्वारा भी इस दरवाजे को खोलवाया गया। वह भी उसी दिन क्षेत्र के इटाए बाजार में दो वर्गों के बीच हुई मारपीट की घटना में घायल हो गये और स्थानान्तरण भी हो गया। इसी तरह 1979 में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक द्वारा भी दरवाजा खोलवाया गया तो दूसरे दिन ही उनका स्थानांतरण हो गया। तभी से इस दरवाजे के नीचे पीर बाबा की मजार मानकर पुलिस कर्मियों द्वारा पूजा की जाती है और गुरुवार को चादर भी चढ़ाया जाता है। इस संबंध में थानाध्यक्ष राजनारायण चौरसिया का कहना है कि हम भी परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं। पुराने लोगों के अनुसार दरवाजे के नीचे मजार है और दरवाजा न खुलने से आफिस में कार्य करने में कोई बाधा भी उत्पन्न नहीं हो रही है। इस संबंध में जब पुलिस अधीक्षक अशोक कुमार से बात की गई तो उन्होंने कहा कि इस संबंध में अभी कोई जानकारी तो नहीं है लेकिन अगर यह मामला है तो आज ही देखवाते हैं। वहीं एसपी ग्रामीण संजय कुमार राय ने कहा कि मामला आस्था का है तो कोई बात नहीं है। फिर भी उससे कोई नुकसान नहीं हो रहा है। वर्जन
रूढि़यां हमारे ज्ञान को प्रभावी नहीं होने देती हैं। सुरक्षा का भय हर किसी को प्रभावित करता है। पहले हमारा विज्ञान इतना आगे नहीं था तो बीमारियों का उपचार भूत विज्ञान से ही होता था। जो आज भी कहीं-कहीं प्रभावी है। रही बात पीढि़यों की तो हर कोई सोचेगा ही। लेकिन ऐसा कुछ है नहीं। अब अगर कोई इन सबसे इतर होकर साहस दिखायेगा तो जरूर दरवाजा खुल जायेगा। ऐसा कुछ कहने-सुनने से सिर्फ लोगों में भय का माहौल बन जाता है ताकि आस्था भी जुड़ी रहे।
-प्रो. आरएन सिंह, मनोविज्ञान विभाग, बीएचयू।