इंटरसेप्टर वाहन को लेकर ट्रैफिक पुलिस के हाथ खाली
वाहनों की रफ्तार पर लगाम लगाने के लिए ट्रैफिक पुलिस के पास इंटरसेप्टर कार नहीं है। विभाग की ओर से शासन से कई बार मांग तो की गई लेकिन अभी तक यह उपलब्ध नहीं हो सका। आधुनिक संसाधनों से युक्त इंटरसेप्टर कार बढ़ रही सड़क दुर्घटना को रोकने में मदद मिल सकती है। इसकी खूबी यह है कि सड़क पर तेज गति से जाने वाले वाहनों की गति माप लेती है जिससे फौरन वाहन को पकड़कर चालान कर दिया जाता है।
जागरण संवाददाता, जौनपुर: वाहनों की रफ्तार पर लगाम लगाने के लिए ट्रैफिक पुलिस के पास इंटरसेप्टर कार नहीं है। विभाग की ओर से शासन से कई बार मांग तो की गई, लेकिन अभी तक यह उपलब्ध नहीं हो सका। आधुनिक संसाधनों से युक्त इंटरसेप्टर कार बढ़ रही सड़क दुर्घटना को रोकने में मदद मिल सकती है। इसकी खूबी यह है कि सड़क पर तेज गति से जाने वाले वाहनों की गति माप लेती है, जिससे फौरन वाहन को पकड़कर चालान कर दिया जाता है।
आबादी के लिहाज से ट्रैफिक पुलिस के पास जवानों की संख्या भी कम है। ट्रैफिक विभाग महज 16 ट्रैफिक पुलिस कर्मियों के हवाले चल रहा है। इसमें एक यातायात उपनिरीक्षक, पांच मुख्य आरक्षी जबकि 10 कांस्टेबल हैं। शहर की आबादी के लिहाज से 40 कांस्टेबल की जरूरत है। बुनियादी संसाधनों के अभाव में ट्रैफिक व्यवस्था को व्यवस्थित रखना किसी चुनौती से कम नहीं है। नियमों का पालन नहीं करने व रफ्तार के कहर से सड़क दुर्घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। हादसों पर नियंत्रण लगाने के लिहाज से इंटरसेप्टर कार की मांग कई बार की गई है। हाल में यातायात पुलिस को जरूरी उपकरण खरीदने को पांच लाख रुपये मिले थे। इंटरसेप्टर वाहन की कीमत काफी अधिक है। यही वजह है कि इसे खरीदने में वक्त लग रहा है। फिलहाल आम लोगों को जाम के झाम से निजात दिलाने को शहर में वन-वे सिस्टम लागू किया गया है, जो कारगर है। टीएसआई विजय प्रताप का कहना है कि आधुनिक वाहन मिलने से यातायात व्यवस्था सुधारने को मदद मिल सकती है।