सीड ड्रिल के प्रयोग से लागत में आएगी कमी
सीड ड्रिल से बुआई करने पर जहां लागत में कमी आएगी वहीं उत्पादन भी बढ़ेगा। किसान फसल अवशेष को खेतों में जलाने की बजाय खाद के रूप में उसका उपयोग करें। यह बात कृषि विज्ञान केंद्र अमिहित के प्रभारी वैज्ञानिक डा. नरेन्द्र रघुवंशी ने कही। उन्होंने किसानों को आधुनिक खेती की जानकारी भी दी।
जागरण संवाददाता, केराकत (जौनपुर): सीड ड्रिल से बुआई करने पर जहां लागत में कमी आएगी वहीं उत्पादन भी बढ़ेगा। किसान फसल अवशेष को खेतों में जलाने की बजाए खाद के रूप में उसका उपयोग करें। यह बात कृषि विज्ञान केंद्र अमिहित के प्रभारी वैज्ञानिक डा. नरेन्द्र रघुवंशी ने कही। उन्होंने किसानों को आधुनिक खेती की जानकारी भी दी।
डा. रघुवंशी ने बताया कि किसान अपने खेतों में फसल अवशेष छोड़ देते हैं। कुछ किसान अपनी फसल अवशेष को जला देते हैं जिससे प्रकृति को बहुत नुकसान होता हैं, साथ ही अपने अग्रिम फसल को भी क्षति पहुंचाते हैं। अब धान के खेत में बिना जुताई के सीधी बुआई कर सकेंगे। इस विधि से धान के खेत में कटाई के उपरांत खेत में बचे फसल अवशेष के रहते हुए सीधे गेहूं की बुआई कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि पहले धान के खेत में गेहूं की बुआई के लिए तीन से चार बार जुताई, खेत की भराई, कल्टीवेटर, रोटावेटर से जुताई या फसल को अवशेष को जला देते थे, अब उनके सीड ड्रील मशीन कारगर साबित होगी। फसल अवशेष को जलाए बिना ही सीधे गेहूं की बुआई करें और फसल अवशेष खेतों में खाद का काम करेंगी। इस विधि से फसल की बुआई करने वाले किसान प्रति हेक्टेयर चार से पांच हजार रुपये की बचत कर सकेंगे।
उन्होंने कहा कि धान के खेतों में फसल अवशेष छोड़कर जलाने वाले किसानों के लिए यह तकनीक एक वरदान है। किसानों को अपने फसल अवशेष को कभी नहीं जलाना चाहिए क्योंकि प्रति टन फसल अवशेष जलाने से 5.5 किग्रा नाइट्रोजन, 2.3 किग्रा फास्फोरस, 25 किग्रा पोटाश,1.2 किग्रा सल्फर, 400 किग्रा कार्बन 50-70 प्रतिशत सूक्ष्म तत्वों को नष्ट कर देते हैं। फसल अवशेष जलाने से आगे की फसल की बहुत ज्यादा क्षति होती है।