खौफ के साथ चेहरे पर झलक रही थी घर पहुंचने की खुशी
जागरण संवाददाता जौनपुर आमतौर पर परदेश से घर पहुंचने के लिए सभी के मन में खुशी होती है लेकिन कोरोना संकट के बीच घर पहुंचने वाले श्रमिकों के माथे पर खौफ के साथ खुशी भी झलक रही थी। स्टेशन पर कदम रखते मानों जैसे उनके मन की मुराद पूरी हो गई हो। हालांकि संकट की घड़ी में सरकार द्वारा किराया वसूलने को लेकर श्रमिकों के मन में कसक भी दिखी। सभी से 710 रुपये लिए गए। 24 घंटे के सफर में श्रमिकों को महज खिचड़ी दी गई। भूख से बिलबिलाए श्रमिकों को जंक्शन पर भी महज चाय बिस्किट व पानी देकर चलता कर दिया गया। इससे सबसे अधिक दिक्कत महिलाओं व बच्चों को हुई। ....... खिचड़ी के अलावा बस दो बोतल पानी श्रमिकों से अहमदाबाद से जौनपुर की यात्रा के लिए 710 रुपये लिए गए। बताया गया कि 60 रुपये खाना-पानी के लिए लिया गया है लेकिन 24 घंटे के
गुजरात से वापसी
कभी न भूलने वाला सफर बना अहमदाबाद से जौनपुर की यात्रा
- टिकट का लिया गया 710 रुपये, रास्ते में खाने में मिली महज खिचड़ी
- स्टेशन से जाते समय दिया गया चाय-बिस्किट, बच्चों को हुई दिक्कत
जासं, जौनपुर: आमतौर पर परदेश से घर पहुंचने के लिए सभी के मन में खुशी होती है, लेकिन कोरोना संकट के बीच घर वापसी कर रहे श्रमिकों के माथे पर खौफ के साथ खुशी भी झलक रही थी। जौनपुर स्टेशन पर कदम रखते मानों जैसे उनके मन की मुराद पूरी हो गई हो। हालांकि संकट की घड़ी में सरकार द्वारा किराया वसूलने को लेकर श्रमिकों के मन में कसक भी दिखी। सभी से टिकट का 710 रुपये लिया गया लेकिन रास्ते में 24 घंटे के सफर में महज खिचड़ी दी गई। भूख से बिलबिलाए श्रमिकों को जंक्शन पर भी महज चाय, बिस्किट व पानी देकर चलता कर दिया गया। सबसे अधिक दिक्कत महिलाओं व बच्चों को हुई।
खिचड़ी के अलावा बस दो बोतल पानी
अहमदाबाद से जौनपुर तक की यात्रा के लिए 710 रुपये लिए गए। बताया गया कि इसमें 60 रुपये खाना-पानी के लिए भी है, लेकिन 24 घंटे के सफर में उन्हें खिचड़ी व पानी की बोतल दी गई। ट्रेन का टिकट 630 रुपये का है, जबकि यात्रियों से 710 रुपये लिये गये। हालांकि यात्रा की तमाम चुनौतियों के बाद भी सभी के मन में घर पहुंचने का सुकून था। कोई परदेश हाल के दिनों में गया था, तो कई वर्षों से वहां रह रहा था। घर पहुंचने को जल्दबाजी में पड़ते उनके पांव को स्टेशन पर मौजूद सुरक्षा जवान रोक रहे थे। बसों में सवार होने को लेकर उनमें आतुरता भी दिखी।
थर्मल स्क्रीनिग के अलावा लेखपाल जुटा रहे थे डाटा
स्टेशन पर ट्रेन के पहुंचने के साथ ही श्रमिकों को बिना किसी निर्देश के नहीं उतरने का अनाउंसमेंट किया जा रहा था। सबसे पहले आखिरी व पहली बोगी खोलकर श्रमिकों को कतारबद्ध किया गया। श्रमिकों के स्वास्थ्य जांच के लिए दोनों छोर पर आठ काउंटर बनाए गए थे। इसमें मेडिकल स्टॉफ की ओर से जहां थर्मल स्क्रीनिग की जा रही थी, वहीं लेखपाल सभी की एक-एक जानकारी जुटा रहे थे। प्लेटफार्म पर ही सभी को बता दिया जा रहा कि उन्हें किस बस में बैठना है। बसों में चढ़ने के पूर्व सभी का मिलान किया गया। साथ ही सुरक्षा के लिहाज से सैनिटाइज किया गया।
दोनों ओर तैयार रहे आरपीएफ के जवान
ट्रेन के पहुंचने के पहले आरपीएफ व जीआरपी के जवान ट्रेन के दोनों ओर खड़े हो गए, जिससे कोई भी श्रमिक इधर-उधर भाग न पाए। कुछ समय के लिए पूरा स्टेशन परिसर छावनी में तब्दील रहा। एहतियातन स्थानीय पुलिस की भी मदद ली गई।
बारिश से हुई समस्या
मंगलवार भोर में एकाएक बदले मौसम के मिजाज से कुछ समय के लिए असहज स्थिति उत्पन्न हो गई। स्क्रीनिग का कार्य तकरीबन एक घंटे तक बाधित रहा। श्रमिकों को बारिश थमने तक ट्रेनों में ही रोकना पड़ा।
इनकी रही मौजूदगी
डीएम दिनेश सिंह, एडीआरएम रवि चतुर्वेदी, सीडीओ अनुपम शुक्ला, स्टेशन डायरेक्टर आनंद मोहन सिंह, असिस्टेंट ऑपरेटिग मैनेजर प्रतीक श्रीवास्तव, सहायक सुरक्षा आयुक्त डीके चौहान, आरएम वाराणसी एसके राय व एआरएम विजय कुमार श्रीवास्तव।
बोले श्रमिक
लॉकडाउन के दौरान परदेश में दिन काटने से लेकर यहां पहुंचने तक के समय को जीवन भर नहीं भूल पाएंगे। मुश्किल समय में घर ही काम आया। इसलिए अब परदेश जाने की बजाय गांव में ही रहकर कोई कार्य करूंगा। सबकुछ बंद होने से सेठ पैसा नहीं दे रहे हैं।
अखिलेश यादव, श्रमिक, बलिया।
सरकार की ओर से दावा किया गया था कि श्रमिकों को घर भेजने में आने वाले खर्च को केंद्र व राज्य सरकार मिलकर वहन करेगी, जो नहीं हुआ। काम बंद होने की वजह से श्रमिक सड़क पर हैं और जेब में पैसे नहीं हैं। किराया पड़ोसी से उधार लेना पड़ा। अब 14 दिन तक घर नहीं जाना है तो खाने के पैसे भी नहीं लगेंगे। विषम परिस्थितियों में अपनों तक पहुंचाने के लिए पीएम का धन्यवाद।
-रोहित मौर्या, श्रमिक, अमेठी।