नेता टहरैं दर-दर, वोटर ताकैं एहर-ओहर
शहर का पूरा माहौल ही इन दिनों अलहदा सा दिखा। भ्रमण पर निकले नागरिक को हर आमोखास बस
शहर का पूरा माहौल ही इन दिनों अलहदा सा दिखा। भ्रमण पर निकले नागरिक को हर आमोखास बस चुनावी चकल्लस में तल्लीन मिला। शहर की सरकार के लिए फैसला अभी भले ही एक दिसंबर को आना है लेकिन बतकुच्चन का आलम यह है कि दिन के आठों प्रहर, शहर में एहर से ओहर बस कौन जीतेगा, कौन हारेगा इसी की घोषणा हो रही है।
कचहरी तिराहे से आगे बढ़े तो चाय की एक दुकान पर अलग-अलग वर्गों से ताल्लुक रखने वाले लोगों के बीच हार-जीत ही नहीं बल्कि तीसरे, चौथे नंबर पर आने वाले संभावित उम्मीदवारों के भी प्रदर्शन का लेखा -जोखा सार्वजनिक करने की मानो होड़ मची रही।
इस बीच एक प्रत्याशी का काफिला वहां पहुंचा तो जहां कुछ लोग समर्थन की मुद्रा में आ गए तो कुछ अभी इस कदर तने रहे जैसे कि वह चाह रहे हों कि उन्हें अलग से जाना पहचाना जाय।
वहां यू टर्न लेती सियासी परिचर्चा सुनकर नागरिक आगे बढ़ा तो सद्भावना पुल से लगायत सुतहट्टी तिराहे तक प्रत्याशियों व उनके समर्थकों की फौज भागते-दौड़ते दिखलाई पड़ी। दर-दर दौड़ लगा रहे नेताओं-कार्यकर्ताओं को अधिकांश लोगों द्वारा न केवल भरपूर आश्वासन दिया जाता रहा बल्कि इससे दो कदम आगे बढ़कर कौन कहां गड़बड़ है इसकी मनमाफिक व्याख्या भी कर दी जाती रही ताकि विश्वास जम जाए। हालांकि उस प्रत्याशी के जाते ही न केवल उसकी चुटकी लेते बल्कि इधर -उधर ताक-झांक कर कमेंट करते रहे।
नागरिक को ताज्जुब तो तब हुआ जब कुछ पार्टियों से जुड़े प्रमुख लोग सार्वजनिक स्थानों पर अपने दल के प्रत्याशी का प्रचार करने का दिखावा तो करते रहे लेकिन अपनी Þबाडी लैंग्वेज' से मानो वह खुद टिकट न मिलने का मलाल जताकर इशारों-इशारों में ही मन की बात भी कह देते रहे।
बहरहाल प्रत्याशी व उनके खांटी समर्थक जहां खुद की टेंपो हाई करने में भटकते दिखे दर-दर वहीं मतदाता अभी देख रहे इधर-उधर। ऐसे में चुनावी गुत्थी में उलझा नागरिक परिणाम के बारे में अपने कयास लगाते हुए वापस गरीबखाने की ओर लौट पड़ा।
-नागरिक