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25 शैय्या वाले अस्पताल में ओपीडी के बाद बंद हो जाता है ताला

देश की प्राचीन चिकित्सा पद्धति शासन-प्रशासन की अनदेखी के कारण वेंटीलेटर पर है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 02 Aug 2021 05:28 PM (IST)Updated: Mon, 02 Aug 2021 05:28 PM (IST)
25 शैय्या वाले अस्पताल में ओपीडी के बाद बंद हो जाता है ताला
25 शैय्या वाले अस्पताल में ओपीडी के बाद बंद हो जाता है ताला

जागरण संवाददाता, शाहगंज (जौनपुर) : देश की प्राचीन चिकित्सा पद्धति शासन-प्रशासन की अनदेखी के कारण वेंटीलेटर पर है। आयुर्वेदिक चिकित्सालयों के लिए जहां संसाधनों व दवाओं के लिए पर्याप्त बजट नहीं अवमुक्त हो रहा है, वहीं चिकित्सकों व कर्मचारियों में सेवाभाव का अभाव है। खामी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है। जनपद में 25 बेड के सबसे बड़े अस्पताल में ओपीडी के बाद ताला लग जाता है। शाहगंज नगर के आजमगढ़ मार्ग पर स्थित महिला चिकित्सालय कैंपस में आयुर्वेदिक अस्पताल है। जर्जर भवन में स्थित चिकित्सालय में तमाम खामियां हैं। जिससे न सिर्फ मरीज परेशान होते हैं, कर्मचारियों को भी समस्याओं से दो चार होना पड़ता है। बेडों से निकलती है दुर्गध

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कहने को तो चिकित्सालय में 25 बेड की सुविधा उपलब्ध है, लेकिन अस्पताल में महज सात बेड ही पड़े हैं। वह भी दु‌र्व्यवस्था से ग्रस्त हैं। इनसे दुर्गध निकलती है। इन पर लोगों को लिटाकर कैसे उपचार किया जा सकता है सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। अस्पताल के कमरों में खड़े हो पाने में ही परेशानी होती है। उपकरण तक उपलब्ध नहीं

अस्पताल से कितनी सुविधा उपलब्ध हो पाती होगी। इस बात को ऐसे ही समझा जा सकता है कि मरीजों को देखने के लिए आला और बीपी नापने के उपकरण तक खराब पड़े हैं। आने वाले मरीजों को उनके बताए गए लक्षणों और परेशानियों को सुनकर ही चिकित्सक दवा देते हैं। टूटी हैं खिड़कियां और बंद पड़ा शौचालय

अस्पताल के कमरों की खिड़कियां टूटी पड़ी हैं। इतना ही नहीं शौचालय भी बंद रहता है। तमाम परेशानियों के बीच लोगों के उपचार का काम चलता रहता है। डाक्टर बोले, नहीं सुनते हैं उच्चाधिकारी

आयुर्वेदिक अस्पताल के चिकित्सा अधिकारी डा. प्रेम कुमार यादव ने दु‌र्व्यवस्थाओं के सवाल पर कहा कि 25 बेड की बजाए महज सात बेड जर्जर हालत में उपलब्ध होने और टूटी खिड़की, बंद पड़े शौचालय व उपकरणों को लेकर क्षेत्रीय आयुर्वेदिक व यूनानी अधिकारी को पत्र लिखा गया, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। अब ऐसे में उपलब्ध संसाधनों से ही आने वाले मरीजों का उपचार किया जाना मजबूरी है।


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