मैं मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना..
मैं मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना लहू से मेरी पेशानी पे हिदुस्तान लिख देना। दो गज ही सही ये मेरी मिल्कियत तो है ऐ मौत तूने मुझे जमींदार कर दिया। अपनी उक्त रचना ख्यातिलब्ध साहित्यकार राहत इंदौरी ने गत 24 फरवरी को जिला मुख्यालय स्थित प्रसाद इंस्टीट्यूट द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में सुनाई थी। तब भला लोगों को कहां पता था कि यह प्रख्यात साहित्यकार अपनी इस जुबान को बहुत जल्दी यथार्थ में तब्दील करने वाला है।
जौनपुर: मैं मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना, लहू से मेरी पेशानी पे हिदुस्तान लिख देना। दो गज ही सही ये मेरी मिल्कियत तो है, ऐ मौत तूने मुझे जमींदार कर दिया। अपनी उक्त रचना ख्यातिलब्ध साहित्यकार राहत इंदौरी ने गत 24 फरवरी को जिला मुख्यालय स्थित प्रसाद इंस्टीट्यूट द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में सुनाई थी। तब भला लोगों को कहां पता था कि यह प्रख्यात साहित्यकार अपनी इस जुबान को बहुत जल्दी यथार्थ में तब्दील करने वाला है। संभवत: अपने जीवन काल के इस अंतिम सार्वजनिक कार्यक्रम में वे यहां शरीक हुए थे। कोरोना वायरस के संक्रमण ने साहित्य के जाने-माने इस सशक्त हस्ताक्षर को मंगलवार को हम सबसे छीन लिया। उनके निधन की दुखद खबर मिलते ही यहां उनके चाहने वालों में शोक की लहर है। वे अनायास ही इंदौरी साहब के उस आखिरी कार्यक्रम में पेश की गई उनकी रचना को गुनगुनाते सुने गए।