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यहां रामलीला का मंच परदेस से भी खींच लाता है किरदारों को

जागरण संवाददाता सिकरारा (जौनपुर) आधुनिकता के दौर में भी खानापट्टी की रामलीला अपनी विश्ि

By JagranEdited By: Published: Sat, 24 Oct 2020 05:11 PM (IST)Updated: Sat, 24 Oct 2020 05:11 PM (IST)
यहां रामलीला का मंच परदेस से भी खींच लाता है किरदारों को
यहां रामलीला का मंच परदेस से भी खींच लाता है किरदारों को

जागरण संवाददाता, सिकरारा (जौनपुर) : आधुनिकता के दौर में भी खानापट्टी की रामलीला अपनी विशिष्टता बनाए हुए है। अपने आप में अनेकों इतिहास समेटे इस ऐतिहासिक रामलीला की शुरुआत लगभग आठ दशक पूर्व काशी नरेश ने कराई थी, जो अब तक अनवरत होती चली आ रही है। तकनीक के जमाने में भी उसी सनातनी परंपरा का रूप लिए यहां की रामलीला आज भी जिदा है। यहां आधुनिकता को रंगमंच पर रंचमात्र भी प्रवेश की अनुमति नहीं मिल सकी है। रामलीला की दीवानगी पात्रों के चयन के समय से ही बढ़ जाती है। वैश्विक महामारी कोरोना के संक्रमण के बीच गाइड लाइन का अनुपालन करते हुए रामलीला का शुभारंभ 22 अक्टूबर को किया गया है। यहां दर्शकों को मास्क वितरण के साथ ही हाथ सैनिटाइज किया जा रहा है।

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आजादी से पहले सिकरारा बाजार के समीप ताहिरपुर गांव में राजा बनारस की छावनी थी। स्थानीय लोगों के कहने पर काशी नरेश ने खर्च देकर अपनी देखरेख में रामलीला का मंचन शुरू कराया था। आजादी के बाद जमींदारी प्रथा समाप्त होने पर खानापट्टी गांव निवासी बृजमोहन सिंह व उनके बड़े भाई राम लखन सिंह, ताहिरपुर से रमेश सिंह, भरतपुर से राज बहादुर सिंह, इटहवां गांव से तिलकधारी सिंह के साथ बाजार निवासी रामप्रसाद गुप्ता व मदन सेठ की देखरेख में उसी स्थान पर मंचन कार्य जारी रखा।

रामलीला आज भी जीवंत

उक्त स्थान पर कुछ वर्षों तक मंचन कार्य उत्साहपूर्वक चलता रहा। धीरे-धीरे कुछ सदस्यों की निष्क्रियता के चलते रामलीला मंचन कार्य बंद होने के कगार पर पहुंचा तो खानापट्टी गांव निवासी बृजमोहन सिंह अपने बड़े भाई रामलखन सिंह के सहयोग से वर्ष 1954 में श्री राधाकृष्ण मंदिर पर मंचन शुरू करा दिया। वर्ष 1961 में गांव में चकबंदी के दौरान रामलीला मैदान हेतु विश्वंभर नाथ योगेंद्र आश्रम मंदिर के समीप भूमि आवंटित कराकर मिट्टी का चबूतरा बना वहीं पर सरायहरखू से किताब मंगाकर रामलीला का मंचन शुरू करा दिया।

गांव निवासिनी बैजनाथ कुंवर ने अपने पति स्व. रामनाथ की स्मृति में वर्ष 1976 में एक मंच बनावाया। मंच जर्जर होने पर उनके पौत्र समाजसेवी विनय कुमार सिंह और उनकी पत्नी किरन सिंह ने रामलीला मैदान के पूर्वी छोर पर ग्रामीणों की मदद से भव्य मंच बनवाया जिस पर मंचन आज भी जारी है। परदेस से खींचे चले आते हैं कलाकार

रामलीला के कुछ ऐसे भी कलाकार हैं जो नौकरी करने के लिए मुंबई, दिल्ली, गुजरात, हैदराबाद, पूना आदि महानगरों में रहते हैं। अपने गांव की इस परंपरा को बचाए रखने के लिए यह लोग अवकाश लेकर रामलीला का मंचन करने आ जाते हैं। राम का अभिनय करने वाले सुनील सिंह मुंबई में एक टेलीकाम कंपनी में काम करते हैं। राम के सखा व गंधी का अभिनय करने वाले अश्वनी सिंह मुंबई में निजी कंपनी में कार्यरत हैं। खर-दूषण व दुष्ट राजा सहित रावण का सेनापति बनने वाले अवनीश सिंह टोनी पूना में ग्लास कंपनी में मैनेजर के पद पर हैं। सीता की सखी, तारा, सुलोचना का अभिनय करने के लिए दिल्ली से सूरज सिंह आते हैं। नहीं बदले मारीचि, जामवंत व सुखेन वैद्य

इस साल अधिकतर कलाकारों की भूमिका और दायित्व में बदलाव हो गया है। रावण का किरदार निभाने वाले शरद सिंह इस बार केवट का अभिनय करेंगे। अधिकतर पात्र बदले गए, लेकिन मारीच और बालि का पाठ करने वाले शैलेंद्र सिंह, जामवंत का रणविजय, सुखेन वैद्य का आशुतोष व विभीषण का रोल निभाने वाले कमलेश सिंह नहीं बदले गए।


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