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आपातकाल में जुलूस निकालने पर गए थे जेल

आपातकाल में जुलूस निकालने पर गए थे जेल

By JagranEdited By: Published: Wed, 24 Jun 2020 11:03 PM (IST)Updated: Thu, 25 Jun 2020 06:03 AM (IST)
आपातकाल में जुलूस निकालने पर गए थे जेल
आपातकाल में जुलूस निकालने पर गए थे जेल

बृजेंद्र सिंह चौहान, महेबा (जालौन) : देश में 45 साल पहले 26 जून 1975 को आपातकाल लागू किया गया था। तब संविधान की आड़ में तानाशाही के भय से जब लोग घरों से नहीं निकलते थे तब आपातकाल के विरोध में लोकतंत्र सेनानी लालसिंह चौहान ने जुलूस निकाला और जेल चले गये थे।

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महेबा निवासी लोकतंत्र सेनानी लालसिंह चौहान ने बताया कि आपातकाल के दौरान प्रजातंत्र पर नसबंदी को लेकर जबरिया जुल्म ढाए जा रहे थे। उस समय मैं सनातन धर्म इंटर कॉलेज उरई में अर्थशास्त्र विषय का प्रवक्ता था। तत्कालीन जिलाधिकारी पीएल पुनिया ने नसबंदी का लक्ष्य पूरा कराने के लिए शिक्षकों की एक बैठक बुलाई और नसबंदी कराने पर जोर दिया। बैठक में ही सरकारी तंत्र की सामंती व्यवस्था का विरोध किया तब उन्हें जेल में बंद करने की धमकी दी गई और आपातकाल की मीसा सूची में नाम दर्ज हो गया। इसके बाद पुलिस उन्हें खोजती रही। हमने क्रांतिकारियों के गांव मुसमरिया में जाकर लोगों से संपर्क किया था। 16 नवंबर 1976 को उरई के कम्युनिस्ट कार्यालय में क्रांतिकारी साथी एक-एक करके इकट्ठा हुए और वहीं से इंकलाब जिदाबाद जबर्दस्ती नहीं होगी नसबंदी के नारे लगाते हुए कलेक्ट्रेट जा रहे थे। उन्हें कोतवाली के सामने गिरफ्तार कर लिया था। उस समय उनके साथ लोकतंत्र सेनानी रमेश गुप्ता मुसमरिया, रणवीर सिंह जादौन मुसमरिया, वासुदेव दुबे, रामप्रकाश गुप्ता, भगौरा, भानु सिंह उरई, मोहन तिवारी कालपी, यशवंत यादव निपनियां आदि क्रांतिकारी साथी थे। सभी आपातकाल के विरोध में जेल गए थे। जेल में एक समय ही भोजन दिया जाता था।

लालसिंह चौहान ने बताया कि क्रांतिकारी नेता पुखरायां के केशव सचान, कामरेड कैलाश पाठक उरई के साथ कई आंदोलनों में सम्मिलित हुए। सामंत शाही व्यवस्था के विरोध में 1968 में शिक्षक आंदोलन में 35 दिन लखनऊ की जेल में रहे थे। इस तरह वह तीन बार लखनऊ की जेल व 17 बार उरई की जेल में बंद रहे। आपातकाल के बाद विधायक का चुनाव लड़े

विधानसभा चुनाव में कालपी विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी को प्रत्याशी नहीं मिला। पूर्व मंत्री चौधरी शंकर सिंह के खिलाफ कम्युनिस्ट पार्टी से चुनाव लड़े केवल 600 मतों से पराजित हुए। आज भी वह सामंत शाही व्यवस्था के विरोधी हैं।


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