बच्चों को अपनत्व के साथ पढ़ातीं हैं ममता
जागरण संवाददाता, उरई : बच्चे स्नेह, प्यार के भूखे होते हैं, जिससे अपनत्व मिला उसी के हो गए।
जागरण संवाददाता, उरई : बच्चे स्नेह, प्यार के भूखे होते हैं, जिससे अपनत्व मिला उसी के हो गए। कुछ इसी तरह से शिक्षिका डा. ममता स्वर्णकार ने किया। बच्चों को प्यार से समझाकर पढ़ाना शुरू किया तो स्कूलों में छात्र संख्या बढ़ गई। धीरे-धीरे संसाधन जुटाने शुरू किए तो छह माह में ही विद्यालय आदर्श स्कूल के रूप में स्थापित हो गया। अब यह विद्यालय अंग्रेजी माध्यम से संचालित होने लगा है। यहां रोज नई गतिविधियों से शिक्षण कार्य किया जाता है।
डा. ममता की गृह जनपद में नियुक्ति वर्ष 2006 में हुई थी। उन्होंने प्राथमिक विद्यालय खरूसा में प्रधानाध्यापक के पद पर ज्वाइन किया। उस समय विद्यालय खराब हालत में था। लगभग ग्यारह वर्ष तक कड़ी मेहनत कर इन्होंने स्कूल को संवारा। विभाग के अधिकारियों और जनसहभागिता से संसाधन जुटाए। नई विधियों से शिक्षण कार्य आरंभ किया। बच्चों को प्यार से पढ़ाना शुरू किया तो जिस स्कूल में बच्चे आते नहीं थे वहां बच्चों की संख्या बढ़ गई। अब यह स्कूल अंग्रेजी माध्यम हैं और मॉडल स्कूलों में चयनित है।
वर्तमान में ममता प्राथमिक विद्यालय मौखरी में तैनात हैं। अब इसे संवारने के प्रयास में जुटी है। स्कूल में कोई संसाधन नहीं थे और बच्चों की संख्या भी अधिक नहीं थी। सबसे पहले इन्होंने ग्राम प्रधान और ग्राम विकास अधिकारी से संपर्क कर विद्यालय परिसर में इंटरला¨कग कराई। इसके बाद घर-घर जाकर लोगों से बच्चों को स्कूल भेजने के लिए संपर्क किया। पहले इस स्कूल में कुल 40 बच्चे थे जो अब बढ़कर 88 हो गए हैं। छह माह में ही विद्यालय को आदर्श स्कूल के रूप में स्थापित हो गया है। अब इसमें अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई होती है।
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डा. ममता एक अनुभवी और कर्मठ शिक्षिका हैं। उनको जिस स्कूल में भेजा जाता है वे वहां शैक्षिक वातावरण तैयार कर देती हैं। यह बात शिक्षा विभाग के अधिकारी और शिक्षक जानते हैं। नियमित विद्यालय जाना और शिक्षण कार्य को प्राथमिकता देना उनकी कर्मठता को साबित करता है।
-भगवत पटेल प्रभारी बीएसए