जालौन के किसान पराली न जलाकर बनाएं जैविक खाद
संवाद सूत्र आटा पर्यावरण तथा मानव स्वास्थ्य के लिए पराली जलाना एक बड़ी चुनौती बनती जा रही ह
संवाद सूत्र, आटा : पर्यावरण तथा मानव स्वास्थ्य के लिए पराली जलाना एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। किसान फसल काटने के बाद फसल के बचे अवशेष पराली को खेत में जला देते हैं जिससे अगली फसल के लिए खेत जल्दी तैयार हो जाए जिससे किसान पर्यावरण के साथ अपने खेत की मिट्टी को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। इसी को रोकने के लिए कृषि विभाग द्वारा किसानों को निश्शुल्क वेस्ट डी कंपोजर दिया जा रहा है जिसके बारे में आटा बीज गोदाम प्रभारी ने ग्राम करमचंदपुर में किसानों को इसके प्रयोग की जानकारी दी।
आटा बीज गोदाम प्रभारी मुनेंद्र शर्मा ने बताया कि एक डब्बी वेस्ट डी कंपोजर को 200 लीटर पानी में घोल लें और उसमें दो किलो गुड़ मिला दें। इसके बाद बने हुए मिश्रण को सात दिन के लिए रख लें। सात दिन के बाद उस मिश्रण को पराली वाले या फसल अवशेष वाले खेत में छिड़क दें यह मिश्रण एक एकड़ खेत के लिए पर्याप्त होता है। इससे खेत के फसल अवशेष जल्द ही सड़ जाते हैं और खेत में जैविक खाद तैयार हो जाती है। कार्बनिक खाद की मात्रा बढ़ जाती है साथ ही उन्होंने अवशेष न जलाने के फायदे भी बताए। उन्होंने बताया कि अगर अवशेष को न जलाया जाए तो मृदा की जलधारण क्षमता में बढ़ोत्तरी होती है। मृदा वायु संचारण में वृद्धि होती है। फसल अवशेष कंपोस्ट खाद बनाने में सहायक होते हैं। इसके बाद कहा कि अगर किसान इस प्रक्रिया के बजाय फसल अवशेष को खेत में जलाता है तो उसके खिलाफ एफआईआर के साथ जुर्माना वसूला जाएगा।