यहां तो मोबाइल की लत बच्चों को बना रही मनोरोगी
उरई शहर के एक नामी स्कूल में हाईस्कूल के छात्र को लेकर पिता जिला अस्पताल पहुंचे। चिकित्सक को बताया कि बेटे का भविष्य अंधकारमय हो रहा है। पढ़ाई की जगह पबजी गेम की लत लग गई है। मोबाइल छीनने पर लड़ाई झगड़ा करने लगता है। आक्रामक हो जाता है। स्कूल नहीं जाता है। खाना-पीना सब छूट गया है। चिकित्सक ने बच्चे की काउसिलिग की। पिता को बताया कि ठीक नहीं होने पर दवा दी जाएगी।
केस एक
उरई शहर के एक नामी स्कूल में हाईस्कूल के छात्र को लेकर पिता जिला अस्पताल पहुंचे। चिकित्सक को बताया कि बेटे का भविष्य अंधकारमय हो रहा है। पढ़ाई की जगह पबजी गेम की लत लग गई है। मोबाइल छीनने पर झगड़ने लगता है। स्कूल नहीं जाता है, खाना-पीना सब छूट गया है। चिकित्सक ने बच्चे की काउंसिलिग की। पिता से कहा कि ठीक नहीं होने पर दवा दी जाएगी।
केस दो
एट कस्बा निवासी 13 साल का किशोर मोबाइल के लिए मां से झगड़ता है। पिता नौकरी के सिलसिले में ज्यादातर बाहर रहते हैं। बच्चे की जिद पूरी करने के लिए मां ने अपना मोबाइल देना शुरू कर दिया। बाद में उसने स्कूल जाना बंद कर दिया। पढ़ाई से मन उचाट हो गया। घंटों मोबाइल में ही लगा रहता है। पिता ने यह देखा तो बात की। घर में तोड़फोड़ करते देख माथा ठनका तो शनिवार को बेटे के साथ जिला अस्पताल पहुंचे, जहां चिकित्सक की सलाह ली।
केस तीन
इंटरमीडिएट में पढ़ने वाला 17 वर्षीय छात्र घंटों मोबाइल और लैपटॉप में समय गंवाता है। मोबाइल व लैपटॉप छीनने पर उग्र हो जाता है और झगड़ा करने लगता है। पिता द्वारा जिला अस्पताल लाए जाने पर मनोचिकित्सक ने छात्र से पूछा तो उसने बताया कि वह मोबाइल के बगैर नहीं रह सकता है। मोबाइल छोड़ने पर उसे बेचैनी रहती है और नींद भी नहीं आती है। इस पर उसकी काउंसिलिग की गई और उसे क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट अर्चना विश्वास के पास भी भेजा गया। शैलेंद्र शर्मा, उरई
ये मामले तो महज बानगी भर हैं, हकीकत में ऐसी स्थिति से करीब हर अभिभावक गुजर रहे हैं। दरअसल, बच्चों की इस आदत के लिए घर वाले ही जिम्मेदार हैं। एकल परिवार होने के नाते काम के दौरान बच्चे को मोबाइल देना मुसीबत बन गया है। पता ही नहीं चलता कि बच्चे कब मोबाइल रूपी नशे के शिकार हो गए।
कहीं आपका बच्चा भी ऐसी बीमारी की चपेट में तो नहीं है? मोबाइल से ही तो खेल रहा है, यह सोच आप पर भारी पड़ सकती है। मोबाइल की लत में फंसकर बीमार होने वालों की बढ़ती संख्या को देखते हुए नशा मुक्ति केंद्र की तर्ज पर जिला अस्पताल में मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र शुरू किया गया है। यहां ऐसी बीमारी से ग्रसित लोगों का इलाज किया जाता है। युवा वर्ग बहुत तेजी से इसकी गिरफ्त में आ रहा है। राह चलते अगल-बगल से बेखबर, बस कान में लीड और हाथ में मोबाइल लेकर तल्लीन छात्र-छात्राएं नजर आते हैं। ट्रेन हो या बस, ऐसे नजारे आम हैं।
दो दिन में आए छह केस
शारीरिक और मानसिक रूप से अपनी गिरफ्त में ले रही इस बीमारी से निपटने के लिए शासन ने सभी जिला अस्पतालों में मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र खोलने का निर्णय लिया है। जिला अस्पताल के मनोरोग कक्ष में इसकी शुरुआत की गई है। डॉ. तारा शहजानंद के मुताबिक दो दिन मे छह केस आ चुके हैं। सभी छात्र हैं, जिनके पिता उन्हें लेकर केंद्र पर आए। यहां पहले काउंसिलिग होगी। यदि सुधार नहीं होता है तो दवा दी जाएगी।
ये हैं लक्षण
- चिड़चिड़ापन
- भूख न लगना
- ज्यादा सोना या नींद न आना
- अवसाद
- पढ़ाई में मन न लगना
- हमेशा भय सताना
- सिर भारी होना