गन्ना की खेती से किसानों ने मोड़ा मुंह
संवाद सहयोगी, माधौगढ़ : कभी क्षेत्र के गुड़ की मिठास राजस्थान व मप्र के साथ कई जनपदों ने पहु
संवाद सहयोगी, माधौगढ़ : कभी क्षेत्र के गुड़ की मिठास राजस्थान व मप्र के साथ कई जनपदों ने पहुंच जाया करती थी लेकिन आज स्थिति यह है कि गन्ने की पैदावार बहुत कम होने से 80 के दशक में बनाया गया मील बंद हो चुका है और कुछ निजी मील चल रहे हैं जिन पर भी पर्याप्त मात्रा में गन्ना नहीं पहुंच पाता जिससे क्षेत्र के प्रसिद्ध गुड़ की मिठास दूर तक नहीं पहुंच पा रही है।
ब्लाक क्षेत्र में 1970 से 1980 तक गन्ने की पैदावार अधिक हुआ करती थी। क्योंकि इस फसल में न तो ओलों से नुकसान था और न अधिक बारिश से। जिससे हर किसान अपने खेत में गन्ना बोया करता था। गन्ना अधिक होने के कारण डिकौली के पास 1980 में गन्ना लगवा दिया गया था जिससे किसानों को काफी लाभ मिलने लगा था जिससे किसानों के गुड़ की मिठास दूर-दूर तक पहुंचने लगी थी। यहां का गुड़ मप्र, राजस्थान, कानपुर, इटावा, लखनऊ सहित कई जगह व्यापारी ले जाया करते थे। समय के साथ प्रकृति भी बदली और धीर-धीरे बारिश कम हुयी और गन्ने की पैदावारी कम होने लगी जिस कारण 1986 में गल्ला मील बंद हो गया। जब किसानों को लगा कि अब बारिश कम होने लगी है तो किसानों ने भी धीरे-धीरे गन्ने की खेती से मुंह मोड़ लिया। वर्तमान में हालत यह है कि यहां केवल 10 प्रतिशत किसान ही गन्ने की फसल कर रहे हैं।
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निजी मीलों पर पेरा जा रहा गन्ना
डिकौली के पास 2006 में कामिल खान ने निजी मील लगाया है जो कि स्वयं संचालन कर गन्ना खरीदकर गुड़ बनाकर बेचते हैं। इसमें कई कारीगर व मजदूर भी गुड़ बनाने का काम करते हैं। अगर सरकार प्रयास करके बंद मील को चालू करा देती तो शायद गन्ने की खेती को फिर से संजीवनी मिल सकती थी। इस समय ब्लाक क्षेत्र में 10 निजी गन्ना मील चल रहे हैं।
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किसानों की बात
क्षेत्र के गन्ने व यहां के गुड़ की मांग दूर-दूर थी। यहां का गुड़ काफी प्रसिद्ध है। अगर सरकार प्रयास करके यहां के बंद गुड़ मील को चालू करा दे किसानों को काफी लाभ मिलने लगेगा।
अर¨वद ¨सह
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किसानों को गन्ने की फसल में अच्छी आमदनी है इसीलिए 80 के दशक में हर किसान अपने खेत में गन्ने का फसल बोता था लेकिन बारिश कम होने की वजह से किसान ने इस फसल से मुंह मोड़ लिया।
छोटे भइया
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यहां पर जो भी किसान गन्ने की खेती करते हैं उनके पास गन्ना पेराई का कोई साधन नहीं है। जब यहां पर मील लगा था तो किसान सीधा गन्ना वहां बेच दिया करते थे जिससे उनकी आमदनी दो गुनी थी।
प्रदीप
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इस समय बाजार में गुड़ 30 से 40 रुपए किलो बिक रहा है और निजी मील संचालक सीधे किसान का अपनी मर्जी के हिसाब से गन्ना खरीद लेते हैं और उसका गुड़ बनाकर स्वयं बेचते हैं। जिससे किसान को नुकसान भी होता है।
महेश ¨सह
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कामिल खान निवासी जिला हरिद्वार का कहना है कि जबसे गन्ना मील लगाया है तो करीब चार माह तक गन्ना मिलता था लेकिन अब पैदावार कम होने से केवल दो माह ही गन्ना मिल पाता है जिससे गुड़ कम बनता है।