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विवेकानंद ने हाथरस में बनाया था पहला शिष्य

स्वामी विवेकानंद की जयंती विशेष 133 साल पहले वर्ष 1888 में वृंदावन से लौटते समय रुके थे हाथरस विवेकानंद के कहने पर स्टेशन मास्टर ने कुलियों से मांगी थी भिक्षा स्वामी विवेकानंद पर बनी फिल्म में भी दिखाया गया है यह प्रसंग।

By JagranEdited By: Published: Tue, 12 Jan 2021 01:30 AM (IST)Updated: Tue, 12 Jan 2021 01:30 AM (IST)
विवेकानंद ने हाथरस में बनाया था पहला शिष्य
विवेकानंद ने हाथरस में बनाया था पहला शिष्य

जासं, हाथरस : युवाओं के प्रेरणाश्रोत स्वामी विवेकानंद का हाथरस से भी अनूठा नाता था। 133 साल पहले वर्ष 1888 में वे हाथरस आए थे। यहां के तत्कालीन रेलवे स्टेशन मास्टर को उन्होंने अपना पहला शिष्य बनाया था। इस बात का जिक्र इतिहास के पन्नों में दर्ज है। स्वामी विवेकानंद फिल्म में भी यह प्रसंग दिखाया गया है।

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स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। वर्ष 1888 में वे वृंदावन से लौट रहे थे, तब वे हाथरस में भी रुके थे। तब हाथरस के स्टेशन मास्टर शरतचंद्र गुप्ता उनसे मिले। स्वामी विवेकानंद से प्रभावित होकर उन्होंने शिष्य बनने की इच्छा जाहिर की थी। दीक्षा देने से पहले उन्होंने शरतचंद्र की परीक्षा ली। स्टेशन मास्टर को अपने ही स्टेशन पर कुलियों से भिक्षा मांगनी पड़ी। इस परीक्षा में सफल होने पर ही उन्हें पहला शिष्य बनाया था। दीक्षा के बाद स्टेशन मास्टर ने त्यागपत्र देकर हाथ में कमंडल ले गेरुआ वस्त्र धारण कर उनके साथ यात्रा पर चल दिए थे। दीक्षा के बाद शरतचंद्र गुप्ता को उन्होंने 'सदानंद' नाम दिया। यहां से वह सदानंद को साथ लेकर ऋषिकेश गए। वहां बुखार में पीड़ित होने पर हाथरस लौट आए। यहां एक दिन प्रवास करने के बाद वह फिर से बनारस की ओर रवाना हो गए थे। फिल्म में हाथरस स्टेशन का जिक्र

1998 में रिलीज हुई फिल्म स्वामी विवेकानंद में भी इस प्रसंग का जिक्र है। श्रीकृष्णा सीरियल में भगवान कृष्ण का रोल करने वाले सर्वदमन डी. बनर्जी फिल्म में स्वामी विवेकानंद की भूमिका में थे। वहीं अनुपम खेर स्टेशन मास्टर शरतचंद्र गुप्ता बने थे। जीवी अय्यर की निर्देशन में बनी इस फिल्म में मिथुन चक्रवर्ती, शम्मी कपूर, हेमा मालिनी, जयाप्रदा समेत कई मशहूर कलाकारों ने अभिनय किया है। बिसार दीं सारी स्मृतियां

स्वामी विवेकानंद का यह किस्सा उनसे जुड़ी कई किताबों में बेशक जीवित हो, लेकिन हाथरस सिटी स्टेशन पर उनसे जुड़ा कोई संस्मरण नहीं सहेजा गया। इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि इतने बड़े संत के जीवन से जुड़ी कृतियों को विभाग यहां आने-वाले यात्रियों को बताने में असमर्थ है। इस संस्मरण को यात्रियों को बताने की कभी कोई कोशिश नहीं की गई। पूर्व सांसद राजेश दिवाकर ने हाथरस सिटी स्टेशन का नाम स्वामी विवेकानंद के नाम पर रखने की मांग जरूर उठाई थी। इनका कहना है

वर्ष 1991 में कन्या कुमारी से स्वामी विवेकानंद भारत परिक्रमा यात्रा निकाली गई थी। तब तत्कालीन संयोजक डॉ. टीएन विमल व मैं इज्जतनगर डीआरएम से अनुमति लेकर आए थे। हाथरस स्टेशन पर स्वामी विवेकानंद का शिलालेख लगवाया था। स्टेशन के सुंदरीकरण के चलते यह शिलालेख हटा दिया गया। काका हाथरसी का शिलालेख भी हटाया गया था। काका का शिलालेख तो मिल गया लेकिन स्वामी विवेकानंद का नहीं मिला। यह रेलवे की उदासीनता का द्योतक है।

-हरीश कुमार शर्मा, तत्कालीन सह संयोजक, स्वामी विवेकानंद भारत परिक्रमा यात्रा


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