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हाथरस में ब्राह्मण व दलित वोटों पर सभी की नजरें

28 साल से भाजपा के कब्जे में है सीट बसपा रही दूसरे स्थान पर

By JagranEdited By: Published: Mon, 08 Apr 2019 01:19 AM (IST)Updated: Mon, 08 Apr 2019 01:19 AM (IST)
हाथरस में ब्राह्मण व दलित वोटों पर सभी की नजरें
हाथरस में ब्राह्मण व दलित वोटों पर सभी की नजरें

जासं, हाथरस : हाथरस लोकसभा क्षेत्र में सभी दलों की नजरें ब्राह्मण व दलित वोटों पर हैं। पिछले तमाम चुनावों में ब्राह्मण व दलित का समीकरण हावी रहा है। इन वोटों की जीत-हार में अहम भूमिका रही।

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यूं तो हाथरस संसदीय क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ रहा, लेकिन 1984 के बाद कांग्रेस यहां पर अपना परचम नहीं फहरा सकी। 1989 में यहां से जनता दल के डॉ. बंगाली सिंह जीते। 1991 के बाद से इस सीट पर भाजपा का कब्जा हुआ। वर्तमान में करीब 18 लाख से अधिक मतदाता हैं। इसमें 9.90 लाख पुरुष व 8.40 लाख महिलाएं हैं। करीब तीन लाख जाटव व ढाई लाख ब्राह्मण मतदाता हैं। भाजपा से सबसे पहले डॉ. लाल बहादुर रावल जीते और उस समय जनता दल के मूल चंद दूसरे नंबर पर रहे। इसके बाद 1996 से 2004 तक भाजपा के किशन लाल दिलेर जीते। बसपा दूसरे स्थान पर रही। 2009 में भाजपा व रालोद गठबंधन प्रत्याशी सारिका सिंह बघेल और 2014 में भाजपा के राजेश दिवाकर सांसद रहे। इस संसदीय क्षेत्र में हाथरस, सादाबाद, सिकंदराराऊ, छर्रा व इगलास विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। दलित समाज का अधिकांश वोट बसपा के साथ माना जाता रहा है। विधानसभा चुनाव में बसपा के दिग्गज रामवीर उपाध्याय के चलते बड़ी संख्या में ब्राह्मण वोट भी बसपा को मिलता रहा है। इसका असर लोकसभा चुनावों पर भी रहा था, जिसके चलते बसपा बसपा प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहे। इस बार दलित व ब्राह्मण वोटों को गठबंधन अपनी ओर करना चाहता है तो ऐसे प्रयासों में कांग्रेस व भाजपा भी पीछे नहीं है। कब किस दल को कितने फीसद मिले वोट

वर्ष भाजपा बसपा

1991 40.62 24.18

1996 48.59 22.36

1999 38.77 23.89

2004 35.57 30.99

2009 38.31 32.55

2014 51.88 20.77

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रामवीर के भाजपा में जाने की चर्चाओं से असमंजस

बसपा के कद्दावर नेता रामवीर उपाध्याय के भाजपा में जाने की खबरों से ब्राह्मण समाज व उनके समर्थन असमंजस में हैं। हालांकि, रामवीर उपाध्याय का आगे भविष्य क्या होगा, यह तो समय ही बताएगा, इससे अभी ब्राह्मण समाज का रुझान स्पष्ट नहीं हो पा रहा है।


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