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चौका-चूल्हा से निकल रहा रोजगार का रास्ता

आपने कभी सोचा था कि चौका-चूल्हा से होकर भी रोजगार का रास्ता निकल सकता है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 01 Nov 2021 12:38 AM (IST)Updated: Mon, 01 Nov 2021 12:38 AM (IST)
चौका-चूल्हा से निकल रहा रोजगार का रास्ता
चौका-चूल्हा से निकल रहा रोजगार का रास्ता

योगेश शर्मा, हाथरस: आपने कभी सोचा था कि चौका-चूल्हा से होकर भी रोजगार का रास्ता निकल सकता है? महिलाएं चौका-चूल्हा के संग स्वावलंबी बन सकती हैं? मगर, समाज बदलने के साथ उसकी सोच बदल रही है। महिलाओं के कदम घर की देहरी से बाहर निकलकर कामयाबी की उड़ान भर रहे हैं। चौंकाने वाला आंकड़ा ये है कि हाथरस जिले में सात, आठ सालों में 20 हजार से भी अधिक महिलाएं स्वयं सहायता समूह से जुड़कर आत्मनिर्भर बन चुकी हैं। वह पुरुषों की तरह से ही लघु उद्योग चला रही हैं।

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राष्ट्रीय आजीविका मिशन के तहत गांव-गांव महिला स्वयं सहायता समूह के गठन करने की आधार शिला अप्रैल 2013 में रखी गई थी। इन समूह से महिलाएं जुड़कर आत्मनिर्भर बनने को लघु उद्योग गांव में चला रही थीं। बड़ी चुनौती ये थी कि वह चौका चूल्हा और बच्चों के परवरिश के साथ छोटे धंधे भी कर रही हैं। तेज रफ्तार तब मिली जब वर्ष 2017 में उप्र में भाजपा की योगी सरकार आई। सरकार का पूरा फोकस महिलाओं को स्वावलंबी बनाना रहा। इसका लाभ भी ग्रामीण महिलाओं को मिला। वह महिलाएं जो रोजगार करना तो चाहती थीं, मगर उनको आर्थिक मदद नहीं मिल पा रही थी। मगर सरकार अब प्रोत्साहन के साथ पैसा भी दे रही है और बड़ी रकम कम ब्याज में बैंक से उपलब्ध करा रही है। समूह से जुड़कर क्या सोचती हैं महिलाएं आइए , जानिये उन्हीं की जुबानी..।

परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। परिवार के सदस्य मेहनत मजदूरी करते हैं। ऐसे में गांव में ही काम की तलाश थी। ज्यादा पढ़ी लिखी न होने पर नौकरी भी नहीं मिल पा रही थी मगर स्वयं सहायता समूह से जुड़ी तो गांव में सामुदायिक शौचालय के रखरखाव का काम मिल गया।

कोमल चौहान, समूह सदस्य।

कभी सोचा भी नहीं था कि वह मेठ के रूप में भी काम कर पाएगी। मेठ यानि चल रहे काम की सुपरवाइजिग करना। स्वयं सहायता समूह से जुड़कर उसे मेठ के रूप में काम मिल गया। ये काम अब तक पुरुष ही करते थे मगर योगी सरकार में महिलाओं को आगे बढ़ने का मौका मिल रहा है।

सुमन देवी, समूह सदस्य ।

महिलाएं समूह से जुड़कर अचार, मोमबत्ती बनाने से लेकर सिलाई, कढाई, बिजली बिल, बीसी सखी और पुष्टाहार का वितरण कर रही हैं। महिलाएं अपने काम से पूरी तरह से खुश हैं। अब आधी आबादी यानि महिलाओं को खूब काम मिल रहा है। छोटे धंधे से लेकर बड़े धंधे के लिए भरपूर पैसा बैंक दे रहे हैं।

माधवी सिंह, समूह सदस्य

राष्ट्रीय आजीविका मिशन के तहत गांव-गांव महिला स्वयं सहायता समूह का गठन किया जा रहा है। जनपद में अप्रैल 2013 से लेकर अब तक 2056 स्वयं सहायता समूह का गठन हो चुका है। इस साल एक हजार समूह गठित हो चुके हैं, जबकि 2016 का लक्ष्य था।

अशोक कुमार, उपायुक्त राष्ट्रीय आजीविका मिशन हाथरस


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