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'जिस दिन 100 गद्दार वतन के सूली पर टंग जाएंगे.'

दैनिक जागरण के संयोजन में मेला श्री दाऊजी महाराज में हुआ अखिल भारतीय कवि सम्मेलन क्रासर. -हास्य की बौछार गीत की फुहार और ओज की हुंकार से रातभर गूंजता रहा मेला पंडाल -काव्य सुधि श्रोता तालियों की गड़गड़ाहट से वाणीपुत्रों का बढ़ाते रहे उत्साह

By JagranEdited By: Published: Sun, 22 Sep 2019 01:26 AM (IST)Updated: Sun, 22 Sep 2019 06:24 AM (IST)
'जिस दिन 100 गद्दार वतन के सूली पर टंग जाएंगे.'
'जिस दिन 100 गद्दार वतन के सूली पर टंग जाएंगे.'

जागरण संवाददाता, हाथरस: ब्रज क्षेत्र के लक्खी मेला श्री दाऊजी महाराज में एक बार फिर दैनिक जागरण के संयोजन में शनिवार की रात हास्य की बौछार हुई, गीतों की फुहार चली और ओज की हुंकार भरी गई। देश भर से आए नामचीन कवियों ने भोर की प्रथम किरण तक काव्य पाठ किया। वाणीपुत्रों ने अपनी रचनाओं में सामयिक मुद्दों को उठाकर श्रोताओं को कभी गंभीर किया तो कभी ठहाके लगाने के लिए मजबूर कर दिया। श्रृंगार की सुरलहरियों से भी श्रोताओं को सराबोर किया। एक से बढ़कर एक कवियों को सुनने के लिए श्रोता दिल थामे बैठे रहे और तालियों की गड़गड़ाहट से उत्साह वर्धन करते रहे।

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अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का शुभारंभ मुख्य अतिथि आगरा उत्तर से विधायक व भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष पुरुषोत्तम खंडेलवाल, सिकंदराराऊ विधायक वीरेंद्र सिंह राणा, भाजपा जिलाध्यक्ष गौरव आर्य, डीएम प्रवीण कुमार लक्षकार, दैनिक जागरण, अलीगढ़ के यूनिट हेड नीतेश कुमार झा, संपादकीय प्रभारी अवधेश माहेश्वरी ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर व मां सरस्वती के छवि चित्र पर माल्यार्पण कर किया। कवि सम्मेलन की अध्यक्षता गीतकार संतोषानंद ने की। संचालन हास्य कवि अशोक सुंदरानी ने किया। कवि व अतिथियों के सम्मान के बाद काका हाथरसी व निर्भय हाथरसी के मंच से काव्य रस की बरसात शुरू हुई।

दिल्ली से आईं शायरा मुमताज नसीम ने सरस्वती वंदना के साथ कवि सम्मेलन की शुरुआत की। इसके बाद कोटा से आए हास्य कवि अर्जुन अल्हड़ ने चुटकुले व हास्य व्यंग से लोगों को गुदगुदाया। देश के शहीदों पर पढ़ते हुए उन्होंने सुनाया: 'माना जरूरी है जिदगी में हंसना और हंसाना,

माना जरूरी है इंसान को गमों में मुस्कराना।

पर जिन शहीदों ने आजादी के हवन कुंड में खुद को आहुत किया

सबसे ज्यादा जरूरी है, उनकी चिताओं पर श्रद्धा पुष्प चढ़ाना।' इटावा से आए वीर रस कवि गौरव चौहान ने कवि सम्मेलन में जोश भरने का काम किया-

'भारतवंशी हृदय में शेर सा अभिमान बोलेगा,

जवानी की जुबानी पर वही अक्षगान बोलेगा।

फना हो जाएंगे लेकिन कभी खामोश नहीं,

हमारे खून के कतरों में हिदुस्तान बोलेगा।

गीतकार नितिन मिश्रा ने काव्य पाठ करते हुए पढ़ा: 'रूप का श्रृंगार तेरा बार-बार हो रहा है,

कह दे ये प्रेम का खुमार मरता नहीं।

एक बार प्रेम से जो बोल देती तू मुझे,

तो रोम-रोम प्रेम का प्रसार मरता नहीं।

मरके भी मरना जो बार-बार पड़ा मुझे

यूं तो प्रीति का ये व्यवहार मरता नहीं।' इनके बाद श्रृंगार रस की कवयित्री शिवांगी सिंह सिकरवार ने मंच संभाला। तालियों की गड़गड़ाहट के साथ श्रोताओं ने उनका स्वागत किया। उन्होंने सुनाया-

'तेरा हंसता हुआ चेहरा मेरे मन को यूं भाता है

मेरी मंजिल का हर रस्ता तुझ तक ही आता है यूं बैठा है समंदर प्रेम का तुझमें मेरे यारा

मेरे लेहरों की कशिश सी है, मेरा तुझसे एक नाता है।' उन्होंने आगे काव्य पाठ करते हुए सुनाया:-

'तुम मुझे लौट के आवाज दो प्यार करो।

मैं न आऊं तो मेरा नाम, इंतजार करो।। रख के बैठी हूं तेरे नाम के दीप जले।

दीप के तले अपना नाम मेरे नाम करो।।'

गीतकार गजेंद्र प्रियांशु ने सुनाया: 'इतने निर्मोही कैसे सजन हो गए,

किस की बाहों में जाकर मगन हो गए।

लौटकर के फिर न आए परदेस से,

आदमी न हुए काला धन हो गए।'

शायरा मुमताज नसीम ने काव्य पाठक के दौरान खूब तालियां बटोरीं। उन्होंने सुनाया:

'तुझे कैसे इल्म न हो सका बड़ी दूर तक ये खबर गई,

कि तेरे ही शहर की शायरा तेरे इंतजार में मर गई।' उन्होंने आगे पढ़ते हुए कहा:

'जब से तेरी नजर मुझसे बरहम हुई

बेकली बढ़ गई, जिदगी कम हुई।

मिट गईं मेरी दुनिया की रंगीनियां

ईद मेरी तेरे बिन मोहर्रम हुईं।'

हास्य कवि अशोक सुंदरानी ने भी अपने हास्य व्यंग से लोगों को झंकझोरने का काम किया। उन्होंने धारा 370 पर पढ़ा:

'मेरे शेर दे पुत्तर धारा 370 हटाई मजा आ गया,

चाहे भारत के हों, पाक-चीन के, सांप पकड़े गए सारे आस्तीन के।

फिर लाल चौक पर उन सभी को ठोक के नाग पंचमी मनाएं, मजा आ गया। '

अंतरराष्ट्रीय वीर रस कवि हरिओम पंवार के इंतजार में श्रोता सीटों से जमे रहे। देर रात उनके माइक संभालते ही दर्शकों ने तालियों की गड़गड़ाहट से उनका स्वागत किया। हरिओम पंवार ने दहाड़ते हुए कहा:

'जिनके कारण पूरी घाटी जली दुल्हन सी लगती थी,

पूनम वाली रात चांदनी चंद्रग्रहण सी लगती थी।

जिनके कारण मां की बिदी दाग दिखाई देती थी,

वैष्णो देवी मां के घर में आग दिखाई देती थी।

उनके पैरों बेड़ी जकड़ी गई बधाई देता हूं,

उनके फन पर एड़ी रगड़ी गई बधाई देता हूं।

शेष उसी दिन सभी तिरंगे के रंग में रंग जाएंगे,

जिस दिन 100 गद्दार वतन के सूली पर टंग जाएंगे।' सूली पर टंग जाएंगे कहते ही समुचा प्रांगण तालियों व भारत माता की जय के नारों से गूंज उठा। काफी देर तक लोगों ने नारे लगाए। हरिओम पंवार की कविता सुन लोग जोश से लवरेज दिखाई दिए। उन्होंने सुनाया- 'मैं ताजों के लिए समर्पण वंदन गीत नहीं गाता,

दरबारों के लिए कभी अभिनंदन गीत नहीं गाता।

कौन भले हो जाऊं, लेकिन मौन नहीं हो सकता मैं,

पुत्र मोह में शस्त्र त्याग कर द्रोण नहीं हो सकता मैं।'

अंत में प्रसिद्ध गीतकार व फिल्मफेयर पुरस्कार प्राप्त संतोषानंद ने अपने गीतों से कवि सम्मेलन को जीवंत कर दिया।

उन्होंने गीत सुनाए: 'इक प्यार का नगमा है, मौजों की रवानी है,

जिदगी और कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी है..।' इसके अलावा उन्होंने क्रांति फिल्म का जिदगी की ना टूटे लड़ी., रोटी कपड़ा और मकान फिल्म का गीत मैना भूलूंगा, आदि गीत सुनाए। भोर तक चले कवि सम्मेलन में श्रोताओं ने संतोषानंद के गीतों पर खड़े होकर ताल से ताल मिलाई तथा कवि सम्मेलन का भरपूर आनंद लिया।


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