बस्ते के बोझ ने बढ़ाई बच्चों की पीड़ा
किताबों-कॉपियों के साथ पानी की बोतल के बोझ से बचे परेशान
संवाद सहयोगी, हाथरस : विकसित देशों में छोटे स्कूली बच्चों पर बस्ते का बोझ नहीं डाला जाता। उन्हें खेल-खेल में ही प्राथमिक शिक्षा दी जाती है, लेकिन हमारे यहां छोटे बच्चों पर बस्ते का वजन इतना ज्यादा होता है कि वे कई बार दर्द से कराह उठते हैं। इससे बच्चों के स्वास्थ्य पर तो बुरा असर पड़ता ही है, साथ ही उनका शारीरिक विकास भी समय से नहीं हो पाता। यही वजह है कि वजनदार बस्तों के कारण अभिभावकों की टेंशन लगातार बढ़ती जा रही है। स्कूलों की रहती है मनमानी
छोटी क्लॉस में किताबों की संख्या काफी अधिक होती है। यह सारा खेल स्कूल संचालकों के द्वारा कमीशन की खातिर किया जाता है। अधिक किताबों के होने से बच्चों को जहां परेशानी होती है, वहीं अभिभावकों की जेब पर भी अतिरिक्त भार पड़ता है। कुछ ही स्कूल ऐसे हैं, जहां किताबों की संख्या छोटी कक्षाओं में कम है। तंत्र चाहे तो कम हो जाए वजन
प्रशासनिक और शिक्षा विभाग के अधिकारी यदि चाहें तो छोटे बच्चों के बस्तों का बोझ कम करा सकते हैं। संचालकों के कमीशन के खेल पर अंकुश यदि पूरी तरह से लग जाए तो केंद्रीय विद्यालय की तरह ही कम किताबें छोटे बच्चों की क्लासों में हो। इसके साथ ही बच्चों की किताबें स्कूल में ही रखवाई जाएं और छोटी क्लास में होमवर्क न दिया जाए। पानी की व्यवस्था भी हर क्लास में यदि हो तो बच्चों को बोतल के बोझ से राहत मिल सकती है। स्कूल संचालकों की मनमानी
स्कूल संचालकों की मनमानी इस कदर हावी है कि सेलेबस निर्धारण में भी हस्तक्षेप अधिक है। मनमानी के कारण बच्चों के बस्तों का वजन हर सत्र में बढ़ता ही जा रहा है। हर साल कोर्स में कुछ न कुछ बदलाव कर दिया जाता है, जिसके कारण बच्चों के बस्ते का बोझ भी बढ़ता ही जा रहा है। एक ही विषय की कई-कई किताब और कॉपी होती हैं, जिसके कारण बच्चों के बस्ते का बोझ बढ़ जाता है। बस्ते की स्थिति
कक्षा एक से लेकर पांच तक के बच्चों का स्कूल बैग तीन से पांच किलोग्राम तक के होते हैं। इसके अलावा बस्ते में पेंसिल बॉक्स के अलावा एक लीटर की पानी की बोतल होती है। अभी तक एक ही लंच बॉक्स बस्तों में होता था, लेकिन अब तमाम स्कूल फलों का लंच बाक्स अलग से मंगवाते हैं। इससे भी वजन बढ़ता है। चिकित्सक की राय
दूसरे देशों में छोटे बच्चों पर अधिक भार नहीं दिया जाता। हमारे यहां भारी बस्ते उठाने के कारण समय से पहले ही बच्चों के कंधे झुक जाते हैं। इसके अलावा उनके शरीर में थकान और दर्द होता है, जिसके कारण वे पढ़ाई पर फोकस नहीं कर पाते। मानसिक तनाव से भी बच्चे ग्रसित हो जाते हैं। बच्चों के स्वास्थ्य को देखते हुए कम वजन का बस्ता होना चाहिए।
-डॉ. पीके श्रीवास्तव, वरिष्ठ हड्डी रोग विशेषज्ञ, बागला अस्पताल।
अभिभावकों की राय
बच्चों का बस्ता काफी कम होना चाहिए, स्कूलों को चाहिए कि वे बच्चों की किताबें स्कूल में रखवाने की व्यवस्था करें। टाइम टेबिल के अनुसार किताबें मंगाई जाए तो कुछ राहत मिल सकती है।
सिद्धार्थ शर्मा किताबों की संख्या छोटी कक्षाओं में अधिक होती है। किताबों की जगह बच्चों को खेल-खेल में शिक्षा देनी चाहिए, ताकि उनका शारीरिक और मानसिक विकास समय से हो सके।
राजकुमार बच्चों के बैग का वजन कम नहीं होने से बच्चे मानसिक तनाव में आ जाते हैं। कमीशन के कारण अधिक किताबें छोटी क्लास में लगाई जाती हैं। इस खेल पर रोक अधिकारियों को लगानी चाहिए।
-चंद्रमोहन