ऐसा है विकास भवन, यहां नहीं करता आने का मन
भवन के कोनों को बना दिया गया है पीकदान पान व गुटखा खाने वालों ने शौचालय को भी नहीं बक्शा बुरा हाल -हाकिम ने 24 घंटे पहले ही खंगाली थी विकास भवन में स्टाफ की हाजिरी -अफसरों कर्मियों की उपस्थिति तो देखी मगर कोनों की गंदगी नहीं देखी
जागरण संवाददाता, हाथरस : एक ओर सरकारें स्वच्छता अभियान चला रही हैं, वहीं दूसरी ओर जिले के आला अधिकारियों की बिल्डिग विकास भवन के कॉर्नरों को पीकदान बना दिया गया है। कोनों को छोड़िए शौचालय तक को नहीं छोड़ा। यह हाल तब है जब इन कोनों पर साफ लिखा है, 'दीवारों पर न थूकें'। सोमवार को ही मुख्य विकास अधिकारी ने पूरे विकास भवन को स्टाफ की हाजिरी के लिए खंगाल मारा था, मगर तब भी हाकिम की नजर यहां नहीं गई।
17 विभागों का विकास भवन
तालाब चौराहे से मुरसान रोड पर छठवें किलोमीटर पर विकास भवन है जहां सीडीओ समेत डेढ़ दर्जन से अधिक अफसर अपने स्टाफ के साथ बैठते हैं। इनमें कई ऐसे अफसर हैं जिनका काम ही स्वच्छता से जुड़ा है। स्वच्छता सर्वेक्षण में हाथरस का स्थान प्रदेश में सातवें स्थान पर आया है, मगर, विडंबना देखिए कि गांव-गांव सफाई पर ध्यान देने का ढिंढोरा पीटने वाले अफसरों के खुद के दफ्तरों की गैलरियों के कॉर्नर पीकदान बन चुके हैं। ऐसा नहीं है कि यहां सफाई कर्मचारी नहीं हैं, बल्कि उन्हें ये सब देखने की फुर्सत कहां है। कर्मचारी से लेकर यहां आने वाले ठेकेदार और ग्रामीणों तक को पान-गुटखे की पीक मारते देखा जा सकता है।
बताते हैं कि विकास भवन की सफाई के लिए आठ से 10 सफाई कर्मचारी हैं। तीन मंजिला विकास भवन के हर फ्लोर पर दो से तीन कर्मचारियों की तैनाती है। इनमें स्थाई कम अस्थाई ज्यादा हैं। अस्थायी कर्मचारियों को काफी कम मजदूरी दी जाती है जिसके चलते वे मन से सफाई कार्य नहीं करते हैं। टोंके जाने पर वे न्यूनतम दिहाड़ी का रोना शुरू कर देते हैं।
वर्जन-
हमारे पास सफाई कर्मचारियों का अभाव है। कुछ अस्थाई कर्मचारियों से ही काम चलाया जा रहा है। पीकदान बने विकास भवन के कॉर्नरों की जल्द सफाई कराई जाएगी।
-आरबी भास्कर, सीडीओ हाथरस
यहां आएं तो रूमाल जरूर लाएं
कलक्ट्रेट आफिस आने से पहले आपको रूमाल साथ में लाना होगा। कलक्ट्रेट आफिस की गैलरी में आते ही ऐसी बदबू उठती है, मानो यहां बने शौचालयों की महीनों से सफाई ही न हुई हो। लोग यहां मुंह पर रूमाल रखने को मजबूर हो जाते हैं। शौचालय के आसपास बने दफ्तर में तो कर्मचारियों का ड्यूटी करना भी मुश्किल हो जाता है। कई बार अपने विभागाध्यक्ष से शिकायत कर चुके हैं, मगर नतीजा शून्य निकला।